पलामू/शिमला: झारखंड के नेचर ऑफ हार्ट नेतरहाट में पूरे देशभर के पेंटर जमा हुए हैं. नेतरहाट में प्रथम राष्ट्रीय आदिवासी और लोक चित्रकार शिविर का आयोजन किया जा रहा है. जिसमें देशभर के अलग-अलग राज्य से आए चित्रकार भाग ले रहे हैं. शिविर का समापन 16 फरवरी को होना है. 15 फरवरी को सीएम हेमंत सोरेन शिविर में भाग लेंगे.
शिमला की आंचल ठाकुर एवं उनके गुरु कांगड़ा के बलवेंद्र कुमार लोक रंगों से अपने परंपरागत पहाड़ी लघु चित्रकला को बना रहे हैं. शिमला यूनिवर्सिटी से पहाड़ी लघु चित्रकला में परास्नातक कर रही आंचल ठाकुर और शिमला यूनिवर्सिटी में कार्यरत असिस्टेंट प्रोफेसर बलवेंद्र कुमार ने नेतरहाट की हसीन वादियों की सराहना की है.
आंचल ठाकुर ने कहा कि यह चित्रकला उन्होंने शिमला यूनिवर्सिटी से अपने अध्यापक प्रोफेसर बलविंदर कुमार से सीखी है. उन्होंने कहा कि चित्रकला के क्षेत्र में काम करते हुए उन्हें सिर्फ दो साल ही हुए हैं, लेकिन उनके गरू पिछले बीस वर्षों का अनुभव प्राप्त कर सैकड़ों विद्यार्थियों को चित्रकला की शिक्षा दे रहे हैं.
आंचल ठाकुर ने बताया कि भारत में राजपूत और मुगल लघु चित्रकला शैली बहुत सालों से विख्यात हैं. उनके मुकाबले पहाड़ी लघु चित्रकला हाल ही में बहुचर्चित हुई हैं. पहाड़ी लघु चित्रकला के दो ढंग बताए जाते हैं. गुलेर शैली और कांगड़ा शैली. गुलैर शैली का उगम कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में हुआ. वहीं कांगड़ा घराने के कलाकारों का उगम गुजरात के लघु चित्रकारों से होता है. आचार्य केशव दास के प्रसिद्ध ग्रंथ बारहमासा को उन्होंने लोक चित्रकारी के माध्यम से उकेर रखा है.
पहाड़ी लघु चित्रकला कैसे बनाई जाती है?
आंचल ठाकुर ने बताया कि सबसे पहले कागज की तैयारी करनी पड़ती है. उसके बाद कागज पर चित्र का अनुलेखन किया जाता है. जिसे खाका झाड़ना भी कहते हैं. इसके बाद चित्र के आकार का प्राथमिक रेखांकन कर उनका सटीक रेखांकन किया जाता है. फिर चित्र के पार्श्वभूमी में रंग लेपन कर शंख से चित्र के ऊपर घुटाई की जाती है. इस चित्रकारी में स्वर्ण रंग का बुनियादी काम किया जाता है क्योंकि स्वर्ण रंग से ही सटीक रेखांकन प्रदर्शित होता है.
पहाड़ी लघु चित्रकला का भविष्य
आंचल ठाकुर का कहना है कि चित्रकला के क्षेत्र में पहाड़ी लघु चित्रकला अपनी एक पहचान बना चुकी है. नए उभरते चित्रकार इससे संबंधित कोर्स करके शिक्षा के क्षेत्र में बच्चों को इस चित्रकला का ज्ञान दे सकते हैं साथ ही फैशन डिजाइनिंग, इंटीरियर डिजाइनिंग सहित अन्य माध्यमों से अपनी पहचान बना सकते हैं. इसके अलावा ऐसे राष्ट्रीय आदिवासी एवं लोक चित्रकारी के शिविर से लोगों के बीच लोक चित्रकारी के बारे में जागरूकता आएगी तथा उसके प्रति रुचि बढ़ेगी.
झारखंड आकर खुश हैं कलाकार
आंचल ठाकुर ने बताया कि वह खुद हिमाचल प्रदेश के एक खूबसूरत जिले कांगड़ा के निवासी हैं. उन्हें नेतरहाट की वादियां, कांगड़ा की याद दिला रही है. उन्होंने बताया कि यहां आकर बिल्कुल भी अलग सा महसूस नहीं हो रहा. यहां के लोग बहुत ही विनम्र स्वभाव के हैं जो उन्हें यहां रहने में काफी मददगार साबित हो रहा है.
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