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बरसात में खतरनाक हो जाते हैं पहाड़ और नदी-नाले, 2014 में उफनती ब्यास नदी में समा गए थे हैदराबाद के 24 छात्र

देश और विदेश के सैलानी हिमाचल की सैर के लिए इच्छुक रहते हैं, लेकिन उन्हें सुरक्षा उपायों के प्रति लापरवाही भारी पड़ती है. यहां पहाड़ और बलखाती नदियां बरसात के सीजन में अकसर डेथ पॉइंट बन जाते हैं. किन्नौर (Kinnaur Tribal District of Himachal) के बटसेरी में हुए हादसे (Landslide in batseri) ने बरसात में मिलने वाले जख्म फिर हरे कर दिए हैं. बटसेरी हादसे में नौ सैलानी मौत का शिकार बन गए. सैलानियों के साथ हिमाचल में ये दूसरा बड़ा हादसा है.

mountains and rivers become dangerous in the rainy season
बरसात में खतरनाक हो जाते हैं पहाड़
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Published : Jul 27, 2021, 6:26 PM IST

Updated : Jul 28, 2021, 10:45 PM IST

शिमला: फोटो में बेहद खूबसूरत दिखने वाले पहाड़ और बलखाती नदियां बरसात के सीजन में अकसर डेथ पॉइंट बन जाते हैं. देश और विदेश के सैलानी हिमाचल की सैर के लिए इच्छुक रहते हैं, लेकिन उन्हें सुरक्षा उपायों के प्रति लापरवाही भारी पड़ती है. अकसर नदी-नालों और भूस्खलन के प्रति संवेदनशील पहाड़ियों के आसपास चेतावनी बोर्ड लगे होते हैं, किंतु दुस्साहसी सैलानी उन्हें नजर अंदाज कर देते हैं. सुरक्षा उपायों को लेकर प्रशासन और सरकार की गलतियां भी हर बार देखने में आती हैं. सात साल पहले एक दुखद हादसे में हैदराबाद के एक इंजीनियरिंग संस्थान के 24 छात्र उफनती ब्यास नदी में समा गए थे.

मंडी के थलौट में हुए इस हादसे में देश को झकझोर कर रख दिया था. हादसे के एक दिन बाद ही हिमाचल हाईकोर्ट (Himachal High Court) ने इसमें स्वत: संज्ञान लिया था और अदालत ने तब हिमाचल प्रदेश राज्य बिजली बोर्ड (Himachal Pradesh State Electricity Board) को कसूरवार ठहराया था. दिवंगत छात्रों के परिजनों को करोड़ों रुपए मुआवजे के आदेश भी हाईकोर्ट ने दिए थे. अभी हिमाचल के जनजातीय जिला किन्नौर (Kinnaur Tribal District of Himachal) के बटसेरी में हुए हादसे (Landslide in batseri) ने बरसात में मिलने वाले जख्म फिर हरे कर दिए हैं. बटसेरी हादसे में नौ सैलानी मौत का शिकार बन गए. पहाड़ से खिसकी चट्टानों की चपेट में एक टूरिस्ट वाहन आ गया. 9 अनमोल जीवन असमय काल का ग्रास बन गए. सैलानियों के साथ ये दूसरा बड़ा हादसा है.

हालांकि इससे पहले कालका-शिमला मार्ग (Kalka-Shimla Road) पर भी चट्टान खिसकने से एक गाड़ी उसकी चपेट में आ गई थी. चंबा में भी ऐसे हादसे देखने को मिलते हैं. ईटीवी भारत हिमाचल देवभूमि की सैर को आने वाले सैलानियों को सतर्क रहने की सलाह देता है. स्थानीय प्रशासन की चेतावनियों को गंभीरता से लेना चाहिए और किसी भी पहाड़ी जगह पर जाने से पहले स्थानीय लोगों की राय जरूर लेनी चाहिए. यदि सात साल पहले हैदराबाद के इंजीनियरिंग के छात्र-छात्राओं ने भी स्थानीय लोगों की बात मानी होती तो उन्हें अपनी जान न गंवानी पड़ती. हाईकोर्ट ने राज्य बिजली बोर्ड, राज्य सरकार और हैदराबाद के इंजीनियरिंग संस्थान (engineering institutes of hyderabad) को पीड़ित परिवारों को 20-20 लाख रुपए मुआवजा साढ़े सात फीसदी ब्याज के साथ देने के आदेश जारी किए थे.

सात साल पहले के उस हादसे का जिक्र करना इसलिए जरूरी है ताकि सैलानी समझ सकें कि बरसात के समय या फिर डैम के आसपास की जगह में नदी में कम पानी देखकर वहां उतरने से परहेज करना चाहिए. वर्ष 2014 में 24 जून की बात है. हैदराबाद के एक इंजीनियरिंग संस्थान के छात्र-छात्राएं घूमने के लिए हिमाचल आए थे. वे मंडी जिला के थलौट में ब्यास नदी में उतर कर फोटो खिंचवाने लगे. शाम का समय था. न तो उनके साथ कोई स्थानीय गाइड था और न ही इंजीनियरिंग संस्थान का कोई जिम्मेदार व्यक्ति. अचानक लारजी डैम से बिजली बोर्ड प्रबंधन ने पानी छोड़ा और देखते ही देखते ब्यास नदी में जलस्तर बढ़ने लगा. खतरे से अनजान छात्र-छात्राएं फोटो खींचते रहे और फिर अचानक से पानी का बहाव तेज हुआ. छात्रों को संभलने का मौका तक नहीं मिला और वे उफनती ब्यास नदी में समा गए.

इस हादसे में 22 छात्र-छात्राएं और दो शिक्षक काल का शिकार हुए. मौत के मुंह में समाने वालों में छह लड़कियां भी थीं. ये सभी उत्तर प्रदेश की निजी ट्रैवल बसों में यहां आए थे. प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया था कि हादसे के स्थान पर कोई चेतावनी बोर्ड नहीं लगा था. शवों की तलाश में एनडीआरएफ की टीमें लगाई गईं. काफी दिनों तक शव मिलने का सिलसिला जारी रहा. इस हादसे ने पूरे देश को झकझोर दिया था.

ये भी पढ़ें: किन्नौर लैंडस्लाइड में 9 पर्यटकों की मौत, मंजर देख कांप जाएगी रूह

बाद में लापरवाही का ये मामला हाईकोर्ट पहुंचा. हाईकोर्ट ने पूरी सुनवाई के बाद हिमाचल सरकार, राज्य बिजली बोर्ड और इंजीनियरिंग संस्थान के प्रबंधन को फटकारा था. बिजली बोर्ड को हादसे का मुख्य कसूरवार ठहराया गया था. तब हिमाचल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of Himachal High Court) न्यायमूर्ति मंसूर अहमद मीर थे. अदालत में पेश तथ्यों के अनुसार लारजी डैम से सवा छह बजे के करीब पानी छोड़ा गया. इस दौरान सायरन भी नहीं बजाया गया था. बांध से पानी छोड़ने को लेकर डिविजनल कमिश्नर मंडी (Divisional Commissioner Mandi) की जांच रिपोर्ट के आधार पर पाया कि अगर इस घटना से पहले हिमाचल प्रदेश राज्य बिजली बोर्ड ने सावधानी बरती होती तो हादसा टाला जा सकता था.

ये भी पढ़ें: GSI की टीम 3 दिन तक छितकुल में करेगी स्टडी, किन्नौर में लैंडस्लाइड की घटनाएं रोकने पर बनेगी रणनीति

हाईकोर्ट ने ये भी माना था कि इंजीनियरिंग संस्थान के प्रबंधन का भी फर्ज बनता था कि वह छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करता. मामले में हाईकोर्ट ने कई अहम टिप्पणियां की थीं. अदालत ने तब हैदराबाद के वीएनआर विज्ञान ज्योति इंस्टीट्यूट के दिवंगत छात्रों के परिजनों को भी मामले में पार्टी बनाए जाने की अनुमति दी थी. इससे ये लाभ हुआ कि परिजन जरूरी तथ्य हाईकोर्ट के समक्ष रख सके. तब परिजनों ने आवेदन के माध्यम से बताया था कि इंजीनियरिंग संस्थान साक्ष्यों से छेड़छाड़ कर रहा था. परिजनों का आरोप था कि कॉलेज और फैकल्टी सदस्य ने पिकनिक पर गए बच्चों की सुरक्षा को लेकर कोई इंतजाम नहीं किया था. स्थानीय गाइड की भी सेवाएं नहीं ली गई थीं.

ये भी पढ़ें: बटसेरी हादसा: इंसान ने पहले बिगाड़ा पहाड़ का पर्यावरण, अब वही जख्मी पहाड़ ले रहे जान

हादसे में बच गए छात्रों पर दबाव डाला गया था कि वे संस्थान के पक्ष में बयान दें. संस्थान इसे प्रकृति का कहर साबित कर अपनी जिम्मेदारी से बचना चाहता था. खैर, सारे मामले में जांच पूरी होने के बाद हाईकोर्ट ने छात्रों के अभिभावकों को 4.80 करोड़ रुपए का मुआवजा देने के आदेश पारित किए थे. मुआवजा राशि का साठ फीसदी हिमाचल सरकार के विद्युत बोर्ड, तीस फीसदी इंस्टीट्यूट प्रबंधन और दस फीसदी हिमाचल सरकार को प्रदान करने के लिए कहा गया था.

ये भी पढ़ें: मौत से चंद लम्हे पहले तक सोशल मीडिया पर तस्वीरें शेयर करती रहीं डॉ दीपा

सात साल बाद भी परिस्थितियां खास नहीं बदली हैं. बरसात में हादसे आम बात हैं. प्रदेश में हर साल सैकड़ों करोड़ की संपत्ति का नुकसान होता है. अनेक लोगों की हादसों में मौत होती है. हिमाचल की सैर को आने वाले सैलानी भी अकसर इन हादसों में मौत का शिकार बनते हैं. हैदराबाद के 22 छात्रों व दो स्टाफ सदस्यों की मौत हुई थी और अब किन्नौर के बटसेरी में 9 सैलानियों की जान गई. पूर्व आईएएस अधिकारी आरएस नेगी (Former IAS officer RS Negi) का कहना है कि संचार क्रांति और सूचना के इस दौर में सैलानियों को इंटरनेट की ही सूचनाओं पर निर्भर नहीं रहना चाहिए. हर हाल में स्थानीय लोगों और लोकल टूर गाइड की सलाह जरूर लेनी चाहिए.

ये भी पढ़ें: ये कैसी लापरवाही! किन्नौर में खतरों के बीच टूटे पुल को पार कर रहे लोग

शिमला: फोटो में बेहद खूबसूरत दिखने वाले पहाड़ और बलखाती नदियां बरसात के सीजन में अकसर डेथ पॉइंट बन जाते हैं. देश और विदेश के सैलानी हिमाचल की सैर के लिए इच्छुक रहते हैं, लेकिन उन्हें सुरक्षा उपायों के प्रति लापरवाही भारी पड़ती है. अकसर नदी-नालों और भूस्खलन के प्रति संवेदनशील पहाड़ियों के आसपास चेतावनी बोर्ड लगे होते हैं, किंतु दुस्साहसी सैलानी उन्हें नजर अंदाज कर देते हैं. सुरक्षा उपायों को लेकर प्रशासन और सरकार की गलतियां भी हर बार देखने में आती हैं. सात साल पहले एक दुखद हादसे में हैदराबाद के एक इंजीनियरिंग संस्थान के 24 छात्र उफनती ब्यास नदी में समा गए थे.

मंडी के थलौट में हुए इस हादसे में देश को झकझोर कर रख दिया था. हादसे के एक दिन बाद ही हिमाचल हाईकोर्ट (Himachal High Court) ने इसमें स्वत: संज्ञान लिया था और अदालत ने तब हिमाचल प्रदेश राज्य बिजली बोर्ड (Himachal Pradesh State Electricity Board) को कसूरवार ठहराया था. दिवंगत छात्रों के परिजनों को करोड़ों रुपए मुआवजे के आदेश भी हाईकोर्ट ने दिए थे. अभी हिमाचल के जनजातीय जिला किन्नौर (Kinnaur Tribal District of Himachal) के बटसेरी में हुए हादसे (Landslide in batseri) ने बरसात में मिलने वाले जख्म फिर हरे कर दिए हैं. बटसेरी हादसे में नौ सैलानी मौत का शिकार बन गए. पहाड़ से खिसकी चट्टानों की चपेट में एक टूरिस्ट वाहन आ गया. 9 अनमोल जीवन असमय काल का ग्रास बन गए. सैलानियों के साथ ये दूसरा बड़ा हादसा है.

हालांकि इससे पहले कालका-शिमला मार्ग (Kalka-Shimla Road) पर भी चट्टान खिसकने से एक गाड़ी उसकी चपेट में आ गई थी. चंबा में भी ऐसे हादसे देखने को मिलते हैं. ईटीवी भारत हिमाचल देवभूमि की सैर को आने वाले सैलानियों को सतर्क रहने की सलाह देता है. स्थानीय प्रशासन की चेतावनियों को गंभीरता से लेना चाहिए और किसी भी पहाड़ी जगह पर जाने से पहले स्थानीय लोगों की राय जरूर लेनी चाहिए. यदि सात साल पहले हैदराबाद के इंजीनियरिंग के छात्र-छात्राओं ने भी स्थानीय लोगों की बात मानी होती तो उन्हें अपनी जान न गंवानी पड़ती. हाईकोर्ट ने राज्य बिजली बोर्ड, राज्य सरकार और हैदराबाद के इंजीनियरिंग संस्थान (engineering institutes of hyderabad) को पीड़ित परिवारों को 20-20 लाख रुपए मुआवजा साढ़े सात फीसदी ब्याज के साथ देने के आदेश जारी किए थे.

सात साल पहले के उस हादसे का जिक्र करना इसलिए जरूरी है ताकि सैलानी समझ सकें कि बरसात के समय या फिर डैम के आसपास की जगह में नदी में कम पानी देखकर वहां उतरने से परहेज करना चाहिए. वर्ष 2014 में 24 जून की बात है. हैदराबाद के एक इंजीनियरिंग संस्थान के छात्र-छात्राएं घूमने के लिए हिमाचल आए थे. वे मंडी जिला के थलौट में ब्यास नदी में उतर कर फोटो खिंचवाने लगे. शाम का समय था. न तो उनके साथ कोई स्थानीय गाइड था और न ही इंजीनियरिंग संस्थान का कोई जिम्मेदार व्यक्ति. अचानक लारजी डैम से बिजली बोर्ड प्रबंधन ने पानी छोड़ा और देखते ही देखते ब्यास नदी में जलस्तर बढ़ने लगा. खतरे से अनजान छात्र-छात्राएं फोटो खींचते रहे और फिर अचानक से पानी का बहाव तेज हुआ. छात्रों को संभलने का मौका तक नहीं मिला और वे उफनती ब्यास नदी में समा गए.

इस हादसे में 22 छात्र-छात्राएं और दो शिक्षक काल का शिकार हुए. मौत के मुंह में समाने वालों में छह लड़कियां भी थीं. ये सभी उत्तर प्रदेश की निजी ट्रैवल बसों में यहां आए थे. प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया था कि हादसे के स्थान पर कोई चेतावनी बोर्ड नहीं लगा था. शवों की तलाश में एनडीआरएफ की टीमें लगाई गईं. काफी दिनों तक शव मिलने का सिलसिला जारी रहा. इस हादसे ने पूरे देश को झकझोर दिया था.

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बाद में लापरवाही का ये मामला हाईकोर्ट पहुंचा. हाईकोर्ट ने पूरी सुनवाई के बाद हिमाचल सरकार, राज्य बिजली बोर्ड और इंजीनियरिंग संस्थान के प्रबंधन को फटकारा था. बिजली बोर्ड को हादसे का मुख्य कसूरवार ठहराया गया था. तब हिमाचल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of Himachal High Court) न्यायमूर्ति मंसूर अहमद मीर थे. अदालत में पेश तथ्यों के अनुसार लारजी डैम से सवा छह बजे के करीब पानी छोड़ा गया. इस दौरान सायरन भी नहीं बजाया गया था. बांध से पानी छोड़ने को लेकर डिविजनल कमिश्नर मंडी (Divisional Commissioner Mandi) की जांच रिपोर्ट के आधार पर पाया कि अगर इस घटना से पहले हिमाचल प्रदेश राज्य बिजली बोर्ड ने सावधानी बरती होती तो हादसा टाला जा सकता था.

ये भी पढ़ें: GSI की टीम 3 दिन तक छितकुल में करेगी स्टडी, किन्नौर में लैंडस्लाइड की घटनाएं रोकने पर बनेगी रणनीति

हाईकोर्ट ने ये भी माना था कि इंजीनियरिंग संस्थान के प्रबंधन का भी फर्ज बनता था कि वह छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करता. मामले में हाईकोर्ट ने कई अहम टिप्पणियां की थीं. अदालत ने तब हैदराबाद के वीएनआर विज्ञान ज्योति इंस्टीट्यूट के दिवंगत छात्रों के परिजनों को भी मामले में पार्टी बनाए जाने की अनुमति दी थी. इससे ये लाभ हुआ कि परिजन जरूरी तथ्य हाईकोर्ट के समक्ष रख सके. तब परिजनों ने आवेदन के माध्यम से बताया था कि इंजीनियरिंग संस्थान साक्ष्यों से छेड़छाड़ कर रहा था. परिजनों का आरोप था कि कॉलेज और फैकल्टी सदस्य ने पिकनिक पर गए बच्चों की सुरक्षा को लेकर कोई इंतजाम नहीं किया था. स्थानीय गाइड की भी सेवाएं नहीं ली गई थीं.

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हादसे में बच गए छात्रों पर दबाव डाला गया था कि वे संस्थान के पक्ष में बयान दें. संस्थान इसे प्रकृति का कहर साबित कर अपनी जिम्मेदारी से बचना चाहता था. खैर, सारे मामले में जांच पूरी होने के बाद हाईकोर्ट ने छात्रों के अभिभावकों को 4.80 करोड़ रुपए का मुआवजा देने के आदेश पारित किए थे. मुआवजा राशि का साठ फीसदी हिमाचल सरकार के विद्युत बोर्ड, तीस फीसदी इंस्टीट्यूट प्रबंधन और दस फीसदी हिमाचल सरकार को प्रदान करने के लिए कहा गया था.

ये भी पढ़ें: मौत से चंद लम्हे पहले तक सोशल मीडिया पर तस्वीरें शेयर करती रहीं डॉ दीपा

सात साल बाद भी परिस्थितियां खास नहीं बदली हैं. बरसात में हादसे आम बात हैं. प्रदेश में हर साल सैकड़ों करोड़ की संपत्ति का नुकसान होता है. अनेक लोगों की हादसों में मौत होती है. हिमाचल की सैर को आने वाले सैलानी भी अकसर इन हादसों में मौत का शिकार बनते हैं. हैदराबाद के 22 छात्रों व दो स्टाफ सदस्यों की मौत हुई थी और अब किन्नौर के बटसेरी में 9 सैलानियों की जान गई. पूर्व आईएएस अधिकारी आरएस नेगी (Former IAS officer RS Negi) का कहना है कि संचार क्रांति और सूचना के इस दौर में सैलानियों को इंटरनेट की ही सूचनाओं पर निर्भर नहीं रहना चाहिए. हर हाल में स्थानीय लोगों और लोकल टूर गाइड की सलाह जरूर लेनी चाहिए.

ये भी पढ़ें: ये कैसी लापरवाही! किन्नौर में खतरों के बीच टूटे पुल को पार कर रहे लोग

Last Updated : Jul 28, 2021, 10:45 PM IST
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