शिमला: एक मां पिछले 18 साल से अपने शहीद बेटे के लिए सरकार की ओर से की गई घोषणाओं को पूरा करने के दफ्तरों के चक्कर काट रही थी. अब मजबूरन प्रशासन और सरकार की ओर से नजरअंदाज होने के बाद सोमवार को बेटे का कीर्ति चक्र वापस करने के लिए राज्यपाल के द्वार पहुंच गई.
इस दौरान मुख्यमंत्री भी राजभवन से बाहर निकले और शहीद परिवार से मिलने पहुंचे और सरकार द्वारा की गई घोषणाओं को पूरा करने का आश्वासन भी दिया. मुख्यमंत्री ने जयराम ठाकुर ने कहा कि उन्हें मामले की जानकारी नहीं है और वह इस मामले की जानकारी लेंगे और जो भी घोषणा उस समय की गई है, उन्हें पूरा किया जाएगा. उन्होंने कहा कि प्रदेश के बेटे ने देश के लिए जान दी है और शहीद को पूरा संम्मान दिया जाएगा.
दरअसल 2002 में कांगड़ा के जयसिंहपुर के चंबी गांव के 23 वर्षीय जवान अनिल चौहान देश की रक्षा करते हुए आसाम में ऑपरेशन रायनो में शहीद हो गए. केंद्र सरकार ने उनकी इस बहादुरी के लिए कीर्ति चक्र से उनकी मां को राष्ट्रपति ने नवाजा.
हिमाचल प्रदेश सरकार ने उनके नाम पर स्मारक बनाने के साथ ही स्कूल का नाम रखने का वादा भी किया, लेकिन आज 18 साल बीत जाने के बाद भी न तो शहीद के नाम पर स्मारक बना और न ही स्कूल का नाम रखा गया.
वहीं, सरकार के वादों से हार कर अब शहीद की मां और अन्य परिजन कीर्ति चक्र वापिस करने के राजभवन पहुंच गए. सोमवार को शहीद के भाई और उनकी मां राजभवन के बाहर बैठ गए. परिजनों ने सरकार पर वादे पूरा न करने के आरोप लगाए. करीब आधे घंटे तक परिजन राजभवन के बाहर ही बेटे की फोटो कीर्ति चक्र लेक्र खड़े रहे.
शहीद अनिल चौहान की मां ने की ये मांग
शहीद अनिल चौहान की मां का कहना है कि बेटे ने देश के लिए अपनी जान दी. सरकार ने स्मारक और स्कूल का नाम रखने के वादे किए थे, लेकिन ये 18 साल बीत जाने के बाद भी वादे आजतक पूरा नहीं हुए और मजबूर हो कर आज उन्हें राज्यपाल को कीर्ति चक्र वापिस करने आना पड़ा है.
उन्होंने कहा कि बेटे देश के लिए जान दी केंद्र सरकार ने तो बेटे की शहादत का सम्मान किया है और 2014 में राष्ट्रपति ने उन्हें कीर्ति चक्र दिया, लेकिन हिमाचल की सरकारो ने केवल घोषणाएं ही की हैं और वह भी आजतक पूरी नहीं की.
शहीद के भाई संदीप चौहान ने याद दिलवाई अधूरी घोषणाएं
शहीद के भाई संदीप चौहान ने कहा कि उनका भाई 21 साल की उम्र में देश के लिए शहीद हो गए. शहीद अनिल 2000 में भर्ती हुए थे और ट्रेनिंग के बाद सबसे पहली पोस्टिंग 2002 में आसाम में मिली और ऑपरेशन रायनो में वे शहीद हो गए. हिमाचल प्रदेश सरकार ने उनकर नाम पर स्कूल का नाम रखने की घोषणा तो स्कूल अपग्रेड भी करवाने का वादा किया था, लेकिन कोई पूरा नहीं किया. जिस कारण मजबूरन आज उन्हें यहां आना पड़ा.
वहीं, समाज सेवी संजीव बड़का का कहना है कि सरकारें शहीदों के नाम पर घोषणाएं तो करती है, लेकिन उन्हें पूरा नहीं किया जाता है. आज कांगड़ा के चंबी गांव का ये शहीद का परिवार सरकार के अश्वशनों से तंग आकर राज्यपाल को कीर्ति चक्र वापस किया जा रहा है. शहीद की मां को दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ेंगे सरकारों से भी बेटे के स्मारक बनाने की गुहार लगाती रही, लेकिन कही सुनवाई नहीं हो रही है.