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औषधीय गुणों से भरपूर है किन्नौरी चाय, कड़ाके की ठंड में देती है गर्माहट का एहसास - special tea of kinnaur

हरी-भरी पहाड़ियों के बीच बसे जनजातीय जिला किन्नौर में खूबसूरती तो बेशुमार है, लेकिन यहां पर्यटन व्यवसाय को चमकाने की अभी भी जरूरत है. हालांकि ईटीवी भारत यहां के चहुमुखी विकास के लिए हरसंभव प्रयास कर रहा है. हमने कई बार यहां की संस्कृति, खान-पान, रीति-रिवाज और समस्याओं के बारे में दुनिया को रुबरू करवाया है. आज हम आपको बताएंगे किन्नौर की स्पेशल नमकीन चाय के बारे में.

Kinnauri tea
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Published : Dec 11, 2019, 7:08 PM IST

Updated : Dec 11, 2019, 7:33 PM IST

किन्नौरः भौगोलिक परिस्थितियों की वजह से अलग किन्नौर का खान-पान भी अलग है. आज हम आपको यहां की नमकीन किन्नौरी चाय के बारे में बताएंगे. इस चाय के लाभ जानकर आप इसे पीने के लिए मजबूर हो जाएंगे. ये चाय पोषण से भरपूर है और इसे पीने के बाद पहाड़ों की ऊंचाई चढ़ते हुए थकावट भी महसूस नहीं होती.

किन्नौरी चाय की उत्तप्ति
किन्नौरी चाय की उत्तप्ति किन्नौर व तिब्बत से हुई है. सैकड़ों वर्ष पूर्व किन्नौर व तिब्बत के व्यापारिक रिश्ते काफी अच्छे थे. किन्नौर के लोग किन्नौर से अनाज तिब्बत ले जाते थे और वहां से नमक किन्नौर लेकर आते थे. चूंकि तिब्बत में अनाज की कमी होती थी और किन्नौर में नमक की कमी होती थी. तिब्बत में लकड़ी की चाय पत्ती नहीं होती थी और इसलिए तिब्बत के लोग इसे किन्नौर से तिब्बत ले जाते थे. इस लकड़ी को किन्नौर में शिंग चा कहते हैं.

औषधीय गुणों से भरपूर है किन्नौरी चाय (वीडियो).

ऐसे में दोनों इलाके अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए व्यापार करते थे. जब दोनों इलाके आर-पार जाते थे तो अपने साथ पारम्परिक तरीके से बनी नमकीन चाय साथ में रखते थे. जिसे पीकर चलते हुए मार्ग पर थकावट नहीं होती थी और सर्दियों में पहाड़ों की बर्फबारी में गर्माहट का एहसास होता था. इस चाय की उत्तप्ति दोनों जगह एक साथ ही हुई है. किन्नौर व तिब्बत का हिस्सा कभी एक ही माना जाता था, लेकिन राजा महाराजाओं के समय में कुछ क्षेत्र किन्नौर व कुछ क्षेत्र तिब्बत की ओर चला गया.

किन्नौरी चाय और तिब्बत की चाय में अंतर
तिब्बत की चाय और किंन्नौर की चाय में काफी अंतर है. तिब्बत की चाय हल्की कड़वी होती है, लेकिन किन्नौरी चाय में कड़वापन बिल्कुल नहीं होता है. तिब्बती चाय बिल्कुल सादे तरीके से बनी होती है और किन्नौरी चाय में बहुत कुछ मिलाया जाता है जो हम आपको आगे बताएंगे.

बॉर्डर पर सेना के जवान भी पीते हैं किन्नौरी चाय
ठंड के दिनों में भारत-चीन सीमा पर तैनात जवान भी इस चाय का सेवन करते हैं. शरीर को गर्म रखने व ऊंचाई पर चढ़ते हुए थकावट न हो इसी कारण सेना के जवान किन्नौरी चाय का सेवन करते हैं.

विशेष चाय पत्ती
किन्नौरी चाय में डलने वाली पत्ती प्राकृतिक होती है, जो काफी दुर्लभ है. ये पत्ती किन्नौर की पहाड़ियों पर करीब 15 से 18 हजार फीट की ऊंचाई पर मिलती है. जिसे लेने के लिए लोगों को वर्ष में एक बार फिर पहाड़ियों पर जाना पड़ता है.

किन्नौर में कहते हैं छाह चा
किन्नौर में नमकीन चाय को छाह चा कहते हैं. छाह मतलब नमक और चा मतलब चाय. इन दोनों शब्दों के मिलने से बना छाह चा मतलब नमकीन चाय. किन्नौर में अधिकतर लोग किन्नौरी चाय ही पीते हैं. यहां की परम्परा व हर घर के कार्यक्रम, मेहमानवाजी में किन्नौरी चाय से ही शुरुआत होती है. किन्नौर में नमकीन चाय को शरीर ऊर्जावान तर्क प्रदार्थ माना जाता है.

बनाने की विधि
नमकीन चाय को बनाने की विधि थोड़ी कठिन जरूर है, लेकिन इसका स्वाद गजब का होता है. किन्नौरी चाय को गैस या चूल्हे पर नहीं बनाया जाता है. इस चाय को मिट्टी के चूल्हे पर बनाया जाता है. सबसे पहले आम चाय की तरह गर्म पानी किया जाता है. इसके बाद पहाड़ों से निकाली गई प्राकृतिक शिंग चा यानी पहाड़ों में पाई जाने वाली लकड़ी चाय को एक स्पेशल कपड़े में बांधकर पानी के बर्तन रखा जाता है, जब तक इसमें एक विशेष रंग न आ जाए. फिर इसे करीब आधा घंटा तक उबाला जाता है.

इसके बाद इस चाय पत्ती के कपड़े को बाहर निकाला जाता है और फिर पानी को उबलने दिया जाता है. चाय में डलने वाली सामग्री को तैयार किया जाता है. इसमें मुख्य रूप से अखरोट, गाय का दूध, किन्नौरी मक्खन और अन्य सूखे मेवों को पीसकर स्पेशल किन्नौरी धूप की लकड़ी से बने एक लंबे बर्तन में एक साथ चढ़ाया जाता है और करीब 15 मिनट लंबी लकड़ी से हिलाकर सामग्री को मिलाया जाता है.

जब इस बर्तन से चाय की सामग्री की खुशबू आने लगती है तो चाय को बर्तन में डालकर हिलाया जाता है और अंत में लकड़ी के लंबे बर्तन से चाय के पतीले में नमकीन चाय को डाला जाता है. इसे खूब उबाला जाता है. जब तक इसकी खुसबू पूरे रसोई में न फैल जाए. बता दें कि इस चाय को मिट्टी से बने कप या कांसे के कप में पीने से इसके स्वाद में चार चांद लग जाते हैं. किन्नौरी चाय को प्लास्टिक या दूसरे बर्तनों में पीना अशुभ माना जाता है.

किन्नौरी चाय के लाभ
किन्नौरी चाय ठंड से बचाती है, शरीर में पानी की कमी पूरी होती है, गर्भवती महिलाओं के सवास्थ्य सही रहता है, बुजुर्गों को हड्डियों का दर्द नहीं सताता. पहाड़ों में चढ़ने से थकावट का एहसास नहीं होता, शरीर में खून की सफाई के लिए लाभदायक, शुगर लेवल ठीक रहता है और शरीर में ठंड से होने वाली बीमारियां नहीं लगती.

किन्नौरः भौगोलिक परिस्थितियों की वजह से अलग किन्नौर का खान-पान भी अलग है. आज हम आपको यहां की नमकीन किन्नौरी चाय के बारे में बताएंगे. इस चाय के लाभ जानकर आप इसे पीने के लिए मजबूर हो जाएंगे. ये चाय पोषण से भरपूर है और इसे पीने के बाद पहाड़ों की ऊंचाई चढ़ते हुए थकावट भी महसूस नहीं होती.

किन्नौरी चाय की उत्तप्ति
किन्नौरी चाय की उत्तप्ति किन्नौर व तिब्बत से हुई है. सैकड़ों वर्ष पूर्व किन्नौर व तिब्बत के व्यापारिक रिश्ते काफी अच्छे थे. किन्नौर के लोग किन्नौर से अनाज तिब्बत ले जाते थे और वहां से नमक किन्नौर लेकर आते थे. चूंकि तिब्बत में अनाज की कमी होती थी और किन्नौर में नमक की कमी होती थी. तिब्बत में लकड़ी की चाय पत्ती नहीं होती थी और इसलिए तिब्बत के लोग इसे किन्नौर से तिब्बत ले जाते थे. इस लकड़ी को किन्नौर में शिंग चा कहते हैं.

औषधीय गुणों से भरपूर है किन्नौरी चाय (वीडियो).

ऐसे में दोनों इलाके अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए व्यापार करते थे. जब दोनों इलाके आर-पार जाते थे तो अपने साथ पारम्परिक तरीके से बनी नमकीन चाय साथ में रखते थे. जिसे पीकर चलते हुए मार्ग पर थकावट नहीं होती थी और सर्दियों में पहाड़ों की बर्फबारी में गर्माहट का एहसास होता था. इस चाय की उत्तप्ति दोनों जगह एक साथ ही हुई है. किन्नौर व तिब्बत का हिस्सा कभी एक ही माना जाता था, लेकिन राजा महाराजाओं के समय में कुछ क्षेत्र किन्नौर व कुछ क्षेत्र तिब्बत की ओर चला गया.

किन्नौरी चाय और तिब्बत की चाय में अंतर
तिब्बत की चाय और किंन्नौर की चाय में काफी अंतर है. तिब्बत की चाय हल्की कड़वी होती है, लेकिन किन्नौरी चाय में कड़वापन बिल्कुल नहीं होता है. तिब्बती चाय बिल्कुल सादे तरीके से बनी होती है और किन्नौरी चाय में बहुत कुछ मिलाया जाता है जो हम आपको आगे बताएंगे.

बॉर्डर पर सेना के जवान भी पीते हैं किन्नौरी चाय
ठंड के दिनों में भारत-चीन सीमा पर तैनात जवान भी इस चाय का सेवन करते हैं. शरीर को गर्म रखने व ऊंचाई पर चढ़ते हुए थकावट न हो इसी कारण सेना के जवान किन्नौरी चाय का सेवन करते हैं.

विशेष चाय पत्ती
किन्नौरी चाय में डलने वाली पत्ती प्राकृतिक होती है, जो काफी दुर्लभ है. ये पत्ती किन्नौर की पहाड़ियों पर करीब 15 से 18 हजार फीट की ऊंचाई पर मिलती है. जिसे लेने के लिए लोगों को वर्ष में एक बार फिर पहाड़ियों पर जाना पड़ता है.

किन्नौर में कहते हैं छाह चा
किन्नौर में नमकीन चाय को छाह चा कहते हैं. छाह मतलब नमक और चा मतलब चाय. इन दोनों शब्दों के मिलने से बना छाह चा मतलब नमकीन चाय. किन्नौर में अधिकतर लोग किन्नौरी चाय ही पीते हैं. यहां की परम्परा व हर घर के कार्यक्रम, मेहमानवाजी में किन्नौरी चाय से ही शुरुआत होती है. किन्नौर में नमकीन चाय को शरीर ऊर्जावान तर्क प्रदार्थ माना जाता है.

बनाने की विधि
नमकीन चाय को बनाने की विधि थोड़ी कठिन जरूर है, लेकिन इसका स्वाद गजब का होता है. किन्नौरी चाय को गैस या चूल्हे पर नहीं बनाया जाता है. इस चाय को मिट्टी के चूल्हे पर बनाया जाता है. सबसे पहले आम चाय की तरह गर्म पानी किया जाता है. इसके बाद पहाड़ों से निकाली गई प्राकृतिक शिंग चा यानी पहाड़ों में पाई जाने वाली लकड़ी चाय को एक स्पेशल कपड़े में बांधकर पानी के बर्तन रखा जाता है, जब तक इसमें एक विशेष रंग न आ जाए. फिर इसे करीब आधा घंटा तक उबाला जाता है.

इसके बाद इस चाय पत्ती के कपड़े को बाहर निकाला जाता है और फिर पानी को उबलने दिया जाता है. चाय में डलने वाली सामग्री को तैयार किया जाता है. इसमें मुख्य रूप से अखरोट, गाय का दूध, किन्नौरी मक्खन और अन्य सूखे मेवों को पीसकर स्पेशल किन्नौरी धूप की लकड़ी से बने एक लंबे बर्तन में एक साथ चढ़ाया जाता है और करीब 15 मिनट लंबी लकड़ी से हिलाकर सामग्री को मिलाया जाता है.

जब इस बर्तन से चाय की सामग्री की खुशबू आने लगती है तो चाय को बर्तन में डालकर हिलाया जाता है और अंत में लकड़ी के लंबे बर्तन से चाय के पतीले में नमकीन चाय को डाला जाता है. इसे खूब उबाला जाता है. जब तक इसकी खुसबू पूरे रसोई में न फैल जाए. बता दें कि इस चाय को मिट्टी से बने कप या कांसे के कप में पीने से इसके स्वाद में चार चांद लग जाते हैं. किन्नौरी चाय को प्लास्टिक या दूसरे बर्तनों में पीना अशुभ माना जाता है.

किन्नौरी चाय के लाभ
किन्नौरी चाय ठंड से बचाती है, शरीर में पानी की कमी पूरी होती है, गर्भवती महिलाओं के सवास्थ्य सही रहता है, बुजुर्गों को हड्डियों का दर्द नहीं सताता. पहाड़ों में चढ़ने से थकावट का एहसास नहीं होता, शरीर में खून की सफाई के लिए लाभदायक, शुगर लेवल ठीक रहता है और शरीर में ठंड से होने वाली बीमारियां नहीं लगती.

Intro:किन्नौर की नमकीन चाय है पोषण से भरा,पहाड़ो की ऊंचाई चढ़ते हुए पीने पर नही होती थकावट,किन्नौर में सर्दियों को पिया जाता है नमकीन चाय,शरीर को करता है बेहद गर्म,पहाड़ो की प्राकृतिक चायपत्ती से बनती है नमकीन चाय,अनोखी परम्परा है बनाने की विधि,नमक,दूध,मखन,अखरोट,आग के चूल्हा,पारम्परिक बर्तन,व लकड़ी के बड़े (दोंगबो) बर्तन में खूब हिलाकर एक घण्टे में बनती है नमकीन चाय,इसका स्वाद लेने को तरसते है पर्यटक,बॉर्डर पर सेना के जवान ठंड में शरीर को गर्म रखने व ऊंचाई पर चढ़ते हुए पीते है नमकीन चाय,कई गुणों से भरा है नमकीन चाय।






पूरे देश मे जहाँ लोग मीठी चाय पीने के लिए अलग अलग स्थानों के नाम बताते है तो क्या आपने कभी किंन्नौर की नमकीन चाय के बारे में सुना है तो आइए आज आपको मीठी नही बल्कि नमकीन चाय के बारे में बताते है।


नमकीन चाय की उत्तप्ति-------नमकीन चाय की उत्तप्ति किंन्नौर व तिब्बत से हुई है क्यों कि सेकड़ो वर्ष पूर्व किन्नौर व तिब्बत के व्यापारिक रिश्ते काफी अच्छे थे किन्नौर के लोग किन्नौर से अनाज,तिब्बत ले जाते थे और वहाँ से नमक किन्नौर लेकर आते थे क्यों कि तिब्बत में अनाज की कमी होती थी और किंन्नौर में नमक की कमी होती थी और तिब्बत में लकड़ी की चाय पत्ती जिसे किन्नौर में शिंग चा कहते है वो नही होती थी जो किन्नौर से तिब्बत जे जाते थे, ऐसे में दोनों इलाके अपनी ज़रूरते पूरी करने के लिए व्यापार करते थे जब दोनों इलाके आर पार चलते थे तो अपने साथ पारम्परिक तरीके से बने नमकीन चाय साथ मे रखते थे जिससे चलते हुए मार्ग पर थकावट नही होती थी और सर्दियों में पहाड़ो की बर्फबारी में गर्माहट का एहसास होता था।
इस नमकीन चाय की उत्तप्ति दोनों जगह एक साथ साथ ही हुआ है क्यों कि किन्नौर व तिब्बत का हिस्सा कइयो वर्ष एक भी माना जाता था लेकिन राजा महाराजाओं के समय मे कुछ क्षेत्र किन्नौर व कुछ क्षेत्र तिब्बत की ओर चला गया है।

नमकीन चाय में भी तिब्बत की नमकीन चाय और किंन्नौर कि नमकीन चाय में काफी अंतर है तिब्बत की नमकीन चाय हल्की कड़वी होती है लेकिन किंन्नौर की नमकीन चाय में कड़वापन बिल्कुल नही होता है और तिब्बत की नमकीन चाय बिल्कुक सादे तरीके से बनी होती है लेकिन किन्नौरी नमकीन चाय में बहुत कुछ लगाया जाता है आइए आज किन्नौर की नमकीन चाय के बारे में विस्तार से जानते है।

किन्नौरी नमकीन चाय-----किंन्नौर में नमकीन चाय को छाह चा कहते है छाह मतलब नमक और चा मतलब चाय इन दोनों शब्दो के मिलने से बना छाह चा मतलब नमकीन चाय।
किन्नौर में अधिकतर लोग नमकीन चाय ही पीते है क्यों कि यहां की परम्परा व हर घर के कार्यक्रम व मेहमान नवाजी ने नमकीन चाय से ही शुरुआत होती है किंन्नौर में नमकीन चाय को शरीर के ऊर्जावान तर्क प्रदार्थ माना जाता है।



बनाने की विधि------नमकीन चाय को बनाने की विधि थोड़ी कठिन ज़रूर है लेकिन इसका स्वाद अजब है बताते चले कि नमकीन चाय को गैस चूल्हे पर नही बनाया जाता है इस चाय को किंन्नौर की लकड़ी से बने रसोइयों में लगे चूल्हों पर चाय के बर्तन रखकर गर्म पानी चढ़ाया जाता है इसके बाद पहाड़ो से निकली गयी प्राकृतिक शिंग चा यानी पहाड़ो में पाई जाने वाली लकड़ी चाय को एक स्पेशल कपड़े में बांधकर पानी के बर्तन में चाय के रंग आते तक रखा जाता है और पानी को करीब आधा घण्टा उबाला जाता है।
इसके बाद इस चाय पत्ती के कपड़े को बाहर निकाला जाता है और फिर पानी को उबलने दिया जाता है और चाय में लगने वाले सामग्री को तैयार किया जाता है इसमें मुख्य रूप से अखरोट और अन्य सूखे मेवों को पीसकर,शुद्ध गाय का दूध,किन्नौरी मक्खन को एक लकड़ी के बने लंबे बर्तन जो स्पेशल किन्नौरी धूप की लकड़ी से बनी होती है में एक साथ लगाया जाता है और करीब 15 मिनट उस लकड़ी के बर्तन में लम्बी लकड़ी से ऊपर नीचे झटके से हिलाकर सामग्री को मिलाया जाता है और जब इस बर्तन से चाय के सामग्री की खुशबू आने लगती है उसके बाद फिर चाय को इस बर्तन के आर लगाकर फिर से हिलाया जाता है और अंत मे लकड़ी के लंबे बर्तन से चाय के पतीले में नमकीन चाय को लगाया जाता है और इसे खूब उबाला जाता है जब तक इसकी खुसबू पूरे रसोई में नही फैलती तब तक चाय को उबाला जाता है और उसके बाद इस चाय को सर्दियों के थर्मस में लगाया जाता है और फिर इस नमकीन चाय को मिट्टी से बने कप या कांसे के कप में लगाकर पिया जाता है जिससे इसका स्वाद और बढ़ जाता है बता दे कि किन्नौर के नमकीन चाय को प्लास्टिक या दूसरे बर्तनों में पीना अशुभ माना जाता है इस चाय को पीने के लिए स्पेशल को बने होते है।





Body:नमकीन चाय के फायदे------किंन्नौर में नमकीन चाय को शौक के अलावा लोग अपने फायदे के लिए भी पीते है नमकीन चाय को पीने से शरीर मे पानी की कमी पूरी होती है इस चाय को बर्फबारी में पीने से ठंड का एहसास नही होता,गर्वबती महिलाओ को नमकीन चाय पिलाने से बच्चा स्वस्थ पैदा होता है,बुजुर्गों को नमकीन चाय पीने से गुटनो में दर्द नही होता,पहाड़ो पर चढ़ाई चढ़ते हुए इस चाय से थकावट का एहसास नही होता,नमकीन चाय से शरीर मे गन्दा खून एकदम साफ हो जाता है।
क्यों कि जब चाय को धूप से बनी लकड़ी के बर्तन में हिलाया जाता है तो लकड़ी के गुण उस चाय में चला जाता हैं जिसे जड़ी भी माना जाता है जिससे खून साफ होता है,नमकीन चाय पीने से शुगर लेबल ठीक रहता है,इस चाय को पीने से शरीर मे ठंड से होने वाली बीमारियां नजदीक नही आती।





Conclusion:नमकीन चाय में लगने वाली पत्ती जिसे शिंग चा मतलब लकड़ी के पेड़ों से प्राप्त होने वाली प्रकार्तिक चाय कहा जाता है जो काफी दुर्लभ है जो किंन्नौर कि पहाड़ियों पर करीब 15 से 18 हज़ार फिट की ऊंचाई पर मिलता है जिसे लेने के लिए लोगो को वर्ष में एक बार पहाड़ियों पर जाना पड़ता है।




बाईट-----बीके नेगी
Last Updated : Dec 11, 2019, 7:33 PM IST
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