किन्नौरः भौगोलिक परिस्थितियों की वजह से अलग किन्नौर का खान-पान भी अलग है. आज हम आपको यहां की नमकीन किन्नौरी चाय के बारे में बताएंगे. इस चाय के लाभ जानकर आप इसे पीने के लिए मजबूर हो जाएंगे. ये चाय पोषण से भरपूर है और इसे पीने के बाद पहाड़ों की ऊंचाई चढ़ते हुए थकावट भी महसूस नहीं होती.
किन्नौरी चाय की उत्तप्ति
किन्नौरी चाय की उत्तप्ति किन्नौर व तिब्बत से हुई है. सैकड़ों वर्ष पूर्व किन्नौर व तिब्बत के व्यापारिक रिश्ते काफी अच्छे थे. किन्नौर के लोग किन्नौर से अनाज तिब्बत ले जाते थे और वहां से नमक किन्नौर लेकर आते थे. चूंकि तिब्बत में अनाज की कमी होती थी और किन्नौर में नमक की कमी होती थी. तिब्बत में लकड़ी की चाय पत्ती नहीं होती थी और इसलिए तिब्बत के लोग इसे किन्नौर से तिब्बत ले जाते थे. इस लकड़ी को किन्नौर में शिंग चा कहते हैं.
ऐसे में दोनों इलाके अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए व्यापार करते थे. जब दोनों इलाके आर-पार जाते थे तो अपने साथ पारम्परिक तरीके से बनी नमकीन चाय साथ में रखते थे. जिसे पीकर चलते हुए मार्ग पर थकावट नहीं होती थी और सर्दियों में पहाड़ों की बर्फबारी में गर्माहट का एहसास होता था. इस चाय की उत्तप्ति दोनों जगह एक साथ ही हुई है. किन्नौर व तिब्बत का हिस्सा कभी एक ही माना जाता था, लेकिन राजा महाराजाओं के समय में कुछ क्षेत्र किन्नौर व कुछ क्षेत्र तिब्बत की ओर चला गया.
किन्नौरी चाय और तिब्बत की चाय में अंतर
तिब्बत की चाय और किंन्नौर की चाय में काफी अंतर है. तिब्बत की चाय हल्की कड़वी होती है, लेकिन किन्नौरी चाय में कड़वापन बिल्कुल नहीं होता है. तिब्बती चाय बिल्कुल सादे तरीके से बनी होती है और किन्नौरी चाय में बहुत कुछ मिलाया जाता है जो हम आपको आगे बताएंगे.
बॉर्डर पर सेना के जवान भी पीते हैं किन्नौरी चाय
ठंड के दिनों में भारत-चीन सीमा पर तैनात जवान भी इस चाय का सेवन करते हैं. शरीर को गर्म रखने व ऊंचाई पर चढ़ते हुए थकावट न हो इसी कारण सेना के जवान किन्नौरी चाय का सेवन करते हैं.
विशेष चाय पत्ती
किन्नौरी चाय में डलने वाली पत्ती प्राकृतिक होती है, जो काफी दुर्लभ है. ये पत्ती किन्नौर की पहाड़ियों पर करीब 15 से 18 हजार फीट की ऊंचाई पर मिलती है. जिसे लेने के लिए लोगों को वर्ष में एक बार फिर पहाड़ियों पर जाना पड़ता है.
किन्नौर में कहते हैं छाह चा
किन्नौर में नमकीन चाय को छाह चा कहते हैं. छाह मतलब नमक और चा मतलब चाय. इन दोनों शब्दों के मिलने से बना छाह चा मतलब नमकीन चाय. किन्नौर में अधिकतर लोग किन्नौरी चाय ही पीते हैं. यहां की परम्परा व हर घर के कार्यक्रम, मेहमानवाजी में किन्नौरी चाय से ही शुरुआत होती है. किन्नौर में नमकीन चाय को शरीर ऊर्जावान तर्क प्रदार्थ माना जाता है.
बनाने की विधि
नमकीन चाय को बनाने की विधि थोड़ी कठिन जरूर है, लेकिन इसका स्वाद गजब का होता है. किन्नौरी चाय को गैस या चूल्हे पर नहीं बनाया जाता है. इस चाय को मिट्टी के चूल्हे पर बनाया जाता है. सबसे पहले आम चाय की तरह गर्म पानी किया जाता है. इसके बाद पहाड़ों से निकाली गई प्राकृतिक शिंग चा यानी पहाड़ों में पाई जाने वाली लकड़ी चाय को एक स्पेशल कपड़े में बांधकर पानी के बर्तन रखा जाता है, जब तक इसमें एक विशेष रंग न आ जाए. फिर इसे करीब आधा घंटा तक उबाला जाता है.
इसके बाद इस चाय पत्ती के कपड़े को बाहर निकाला जाता है और फिर पानी को उबलने दिया जाता है. चाय में डलने वाली सामग्री को तैयार किया जाता है. इसमें मुख्य रूप से अखरोट, गाय का दूध, किन्नौरी मक्खन और अन्य सूखे मेवों को पीसकर स्पेशल किन्नौरी धूप की लकड़ी से बने एक लंबे बर्तन में एक साथ चढ़ाया जाता है और करीब 15 मिनट लंबी लकड़ी से हिलाकर सामग्री को मिलाया जाता है.
जब इस बर्तन से चाय की सामग्री की खुशबू आने लगती है तो चाय को बर्तन में डालकर हिलाया जाता है और अंत में लकड़ी के लंबे बर्तन से चाय के पतीले में नमकीन चाय को डाला जाता है. इसे खूब उबाला जाता है. जब तक इसकी खुसबू पूरे रसोई में न फैल जाए. बता दें कि इस चाय को मिट्टी से बने कप या कांसे के कप में पीने से इसके स्वाद में चार चांद लग जाते हैं. किन्नौरी चाय को प्लास्टिक या दूसरे बर्तनों में पीना अशुभ माना जाता है.
किन्नौरी चाय के लाभ
किन्नौरी चाय ठंड से बचाती है, शरीर में पानी की कमी पूरी होती है, गर्भवती महिलाओं के सवास्थ्य सही रहता है, बुजुर्गों को हड्डियों का दर्द नहीं सताता. पहाड़ों में चढ़ने से थकावट का एहसास नहीं होता, शरीर में खून की सफाई के लिए लाभदायक, शुगर लेवल ठीक रहता है और शरीर में ठंड से होने वाली बीमारियां नहीं लगती.