शिमला: नगर निगम शिमला चुनावों के लिए राजनीतिक पार्टियां तैयार है. कांग्रेस और भाजपा के अलावा माकपा और आम आदमी पार्टी भी मैदान में रहेंगी. असली मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच ही माना जा रहा है, लेकिन माकपा और आम आदमी पार्टी को भी कम नहीं आंका जा सकता. यह पार्टियां दोनों का राजनीतिक गणित बिगाड़ सकती हैं. शिमला नगर निगम के आज तक के इतिहास को देखें तो यहां पर कांग्रेस का ही दबदबा रहा है. अब तक हुए चुनावों में अधिकांश में कांग्रेस ही जीती है, जबकि भाजपा केवल एक बार ही सत्ता में आई है. माकपा भी एक बार नगर निगम में अपने मेयर व डिप्टी मेयर पहुंचाने में कामयाब रही है. ऐसे में अबकी बार यहां दिलचस्प मुकाबला नगर निगम की सत्ता में काबिज होने के लिए देखा जा रहा है.
1986 में पहला चुनाव कांग्रेस ने जीता: नगर पालिका शिमला एक सितंबर 1970 को नगर निगम में बदल दिया गया था. हालांकि ,इसके बाद यहां चुनाव नहीं करवाए गए. सरकार नगर निगम का कामकाज देखने के लिए प्रशासक नियुक्त करती रही. इसके बाद 1986 में नगर निगम के चुनाव करवाए गए. शिमला नगर निगम के पहले चुनाव 14 मई 1986 को करवाए गए तब पहली बार कांग्रेस ने ही नगर निगम में कब्जा जमाया. इस तरह अब तक 7 बार नगर निगम के चुनाव हो चुके हैं और आठवीं बार चुनाव हो रहे हैं. ये चुनाव काफी दिलचस्प हो रहे हैं.
7 में से 5 चुनाव कांग्रेस ने जीते: नगर निगम शिमला पर कांग्रेस का ही कब्जा रहा है. यह इस बात से भी साफ कि पहली बार 1986 में चुनाव होने से लेकर अब तक यहां 7 बार चुनाव करवाए गए और इनमें से 5 बार नगर निगम पर कांग्रेस ही काबिज हुई. कांग्रेस 1986 से लेकर 2012 तक लगातार 5 चुनाव जीतती आई. नगर निगम में कांग्रेस पार्षदों की संख्या अधिक होने के कारण इसके मेयर और डिप्टी मेयर ही बनते आए.
2012 में पहली बार माकपा के मेयर और डिप्टी मेयर बने: नगर निगम शिमला के इतिहास में 2012 में पहली बार कांग्रेस से बेदखल हुई. तब वामपंथी पार्टी माकपा अपने 2 नेताओं को मेयर और डिप्टी मेयर के पदों पर काबिज करवाने में कामयाब रही. दरअसल तत्कालीन धूमल सरकार ने नगर निगम शिमला में पहली बार मेयर और डिप्टी मेयर के लिए सीथे चुनाव करवाने का बड़ा फैसला लिया था. यह फैसला कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा के लिए भी भारी पड़ा. इन चुनावों में माकपा के संजय चौहान मेयर ,जबकि टिकेंद्र पंवर डिप्टी मेयर चुने गए.
भाजपा की ज्यादा सीटें पर नहीं बने मेयर-डिप्टी मेयर: यही नहीं 25 पार्षदों में से 3 पार्षद माकपा के चुनकर आए. हालांकि भाजपा 12 सीटों के साथ पहले स्थान पर थी ,लेकिन सीधे चुनाव करवाने से वह अपना मेयर और डिप्टी मेयर नहीं बना पाई. इन चुनावों में कांग्रेस को 10 सीटें मिलीं. इससे पहले शहर के वार्डों से चुने हुए पार्षद ही मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव करते थे. इस तरह बहुमत वाली पार्टियों के पार्षदों में से ही इन पदों पर चयनित होता था, लेकिन 2012 में प्रत्यक्ष चुनाव करवाने पर पहली बार हुए कांग्रेस के मेयर व डिप्टी मेयर नहीं बने. वहीं ,अधिक सीटें होने के बावजूद भी भाजपा को मेयर व डिप्टी मेयर के पदों से महरूम होना पड़ा.
2017 में भाजपा ने किया था नगर निगम पर कब्जा: साल 2017 के नगर निगम चुनावों में भी कांग्रेस को बाहर का रास्ता देखना पड़ा. नगर निगम के ये चुनाव 34 वार्डों में करवाए गए, जिनमें बहुमत के लिए 18 पार्षद होना जरूरी था, लेकिन भाजपा 1 पार्षद से कम बहुमत से रह गई. तब भाजपा समर्थित 17 पार्षद चुनकर आए थे. कांग्रेस के तब 12 पार्षद चुने गए ,जबकि 4 पार्षद बतौर निर्दलीय चुनकर सदन में पहुंचे. 1 पार्षद माकपा का भी चुना गया, लेकिन तब भाजपा ने कच्ची घाटी से कांग्रेस के बागी उम्मीदवार संजय परमार को पार्टी में मिला लिया. यही नहीं पंथाघाटी से भाजपा से बागी होकर लड़कर चुने गए राकेश शर्मा का समर्थन भी पार्टी ने ले लिया. हालांकि, राकेश शर्मा को नगर निगम में डिप्टी मेयर का पद देना पड़ा. इस तरह करीब 3 दशकों बाद पहली बार भाजपा नगर निगम पर कब्जा जमाने में कामयाब रही थी.
11सालों से नगर निगम से बाहर है कांग्रेस: कांग्रेस शिमला नगर निगम से 11 सालों से बाहर है. 2012 में माकपा के मेयर और डिप्टी मेयर बनने से कांग्रेस हाशिए पर रही. वहीं ,साल 2017 के चुनावों में उसको बहुमत नहीं मिल पाया. इस तरह लगातार 11 सालों से सता से बाहर कांग्रेस है और अब वह फिर नगर निगम पर काबिज होने का सपना देख रही है.
सत्ता विरोधी लहर नहीं: कांग्रेस के लिए मजबूत पक्ष यह है कि राज्य में उसकी सरकार है. इससे भी बड़ी बात यह है कि कांग्रेस की सरकार बने हुए मात्र चार माह हुए हैं और इतने कम समय में कोई सत्ता विरोधी लहर भी नहीं है. हालांकि ,उसके सामने चुनौती शिमला शहर के जागरूक वोटरों का वोट हासिल करने की है. शिमला में कर्मचारियों की तादाद काफी ज्यादा है और यहां छात्रों की संख्या भी काफी है, जिनमें से काफी वोटर भी है. ऐसे में यह देखने वाली बात होगी कि क्या कांग्रेस शहर के जागरूक वोटरों से बहुमत हासिल कर भाजपा से नगर निगम छीनने में कामयाब होगी.
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