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Kargil Vijay Diwas: हर कदम बिखरा के अपना खून, अपनी बोटियां, जब शहीदों ने बचाई कारगिल की चोटियां

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Published : Jul 26, 2023, 7:54 AM IST

Updated : Jul 26, 2023, 7:12 PM IST

हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है. साल 1999 में पाकिस्तान की नापाक हरकतों का भारतीय सेना ने मुंह तोड़ जवाब दिया था. इस युद्ध में हिमाचल प्रदेश के भी कई वीर सपूतों ने अपनी प्राणों की आहुति देकर मां भारती रक्षा की थी. आइए आज कारगिल विजय दिवस पर हम उन शहीदों को याद करते हैं, जिन्होंने अपने शौर्य और अदम्य साहस से पाकिस्तान को उसकी औकात दिखाते हुए युद्ध के मैदान से खदेड़ दिया था. (Kargil Vijay Diwas 2023) (kargil vijay diwas)

Kargil Vijay Diwas
कारगिल विजय दिवस

शिमला: विख्यात शायर अमर सिंह फिगार ने कारगिल शहीदों को बेहद मार्मिक शब्दों में याद किया है. उनकी रचना में दर्ज है- हर कदम बिखरा के अपना खून, अपनी बोटियां, जब शहीदों ने बचाई कारगिल की चोटियां...कारगिल की चोटियों में भारतीय सेना का शौर्य लहू के रूप में अनंतकाल तक चमकता रहेगा. कारगिल की इन्हीं चोटियों में हिमाचल के वीर बलिदानियों की शौर्य गाथा भी पत्थरों पर अमिट छाप के साथ-साथ यहां की मिट्टी के एक-एक कण में लिपटी हुई है. हिमाचल के वीर मेजर परमवीर चक्र विजेता सोमनाथ शर्मा ने जिस परंपरा की नींव रखी थी, उसे कैप्टन विक्रम बत्रा, राइफलमैन संजय कुमार (अब सूबेदार मेजर) जैसे वीरों ने अभेद मजबूती प्रदान की है. कारगिल विजय दिवस पर हिमाचल के वीरों की स्मृति बरबस ही हो आती है. देश अपने वीरों को लेकर किस कदर भावुक हो जाता है, उसकी बानगी हाल ही में मिली.

Kargil Vijay Diwas
भारतीय सेना ने कारगिल वार में लहराया परचम

फ्लाइट में सूबेदार संजय कुमार को सम्मान: इंडिगो की फ्लाइट से परमवीर चक्र विजेता सूबेदार मेजर संजय कुमार पुणे की यात्रा पर थे. जहाज के क्रू ने संजय कुमार की मौजूदगी को अपना सम्मान मानते हुए यात्रियों को उनका परिचय दिया कि आज हमारे साथ भारत के महान सपूत यात्रा कर रहे हैं. सूबेदार मेजर संजय कुमार के सम्मान में यात्रियों ने करतल ध्वनि की. ट्विटर पर इंडिगो ने इससे जुड़ा वीडियो साझा किया तो यूजर्स ने बहुत भावुक कमेंट किए और पीवीसी संजय कुमार को सैल्यूट किया. ये दिखाता है कि भारतवासी अपने वीरों का दिल से सम्मान करते हैं. आइए, कारगिल के वीर सपूतों को आदर के साथ याद करते हैं.

पाकिस्तान को भारत ने दिखाई औकात: वर्ष 1999 में नापाक फौज ने भारत की वीरता को ललकारा था. भारतीय सेना ने दुश्मन को करारा जवाब देकर वो सबक सिखाया, जिसे पाकिस्तान हमेशा याद रखेगा. दुनिया के सबसे कठिन पहाड़ों पर हुए इस युद्ध में भारत के हर प्रांत के वीरों ने अपने अतुल्य साहस और युद्ध कौशल से दुश्मन को नाकों चने चबवाए थे. देश को पहला परमवीर देने वाले हिमाचल के सपूतों ने भी अपना लहू मातृभूमि को अर्पित किया. युद्ध के मैदान से बलिदानी सैनिकों की पवित्र देह आती तो, हजारों नम आंखें उन्हें आदरांजलि देने के लिए उमड़ पड़ती.

कारगिल युद्ध में शहीद हुए यशवंत सिंह: युद्ध के दौर में ऐसा ही एक मार्मिक दृश्य शिमला में देखने को मिला. शिमला के रिज मैदान पर हजारों की भीड़ के बावजूद गहरी खामोशी थी. शिमला जिला के यशवंत सिंह रणभूमि में भारत मां पर बलिदान हुए थे. उनका पवित्र पार्थिव शरीर शिमला के रिज मैदान पर देशवासियों के दर्शन के लिए रखा था. हजारों की भीड़ नम आंखों से खामोश होकर अपने वीर सपूत का अंतिम दर्शन करने कतार में खड़ी थी. इस युद्ध में हिमाचल के दो शूरवीरों को परमवीर चक्र मिला. कैप्टन विक्रम बत्रा और राइफलमैन संजय कुमार. विक्रम बत्रा ने तो सर्वोच्च बलिदान देकर खुद को आकाश में अमिट सितारे के रूप में प्रतिष्ठित कर लिया, लेकिन राइफलमैन संजय कुमार (अब सूबेदार मेजर) कारगिल युद्ध की गाथा सुनाने के लिए हम सबके बीच मौजूद हैं.

Kargil Vijay Diwas
शहीद विक्रम बत्रा और सौरभ कालिया

विक्रम बत्रा का अदम्य साहस देख थर्राया पाकिस्तान: इसी युद्ध में हिमाचल के 52 जांबाजों ने अपने प्राण मातृभूमि की सेवा में अर्पित किए थे. महान योद्धा कैप्टन विक्रम बत्रा का अदम्य साहस देखकर नापाक दुश्मन थर्रा गया था. इन्हीं विक्रम बत्रा के लिए तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल वीपी मलिक ने कहा था-काश! कैप्टन बत्रा बलिदान न होते तो देश को सबसे युवा सेना अध्यक्ष बनते. संजय कुमार के साहस की कहानियां देश के हर निवासी को प्रेरित करती है. इस युद्ध में भारत मां को प्राणों की बलि देने वाले हिमाचल के 52 वीर सपूत थे. कैप्टन बत्रा भारतीय सेना के ताज में जड़े बेमिसाल हीरों में से एक हैं.

विक्रम ने साथियों संग प्वॉइंट 5140 की चोटी पर किया कब्जा: हिमाचल में कांगड़ा जिला के पालमपुर के गांव घुग्गर में 9 सितंबर 1974 को विक्रम बत्रा का जन्म हुआ था. बचपन में पिता से अमर शहीदों की गाथाएं सुनकर विक्रम को भी देश की सेवा का शौक पैदा हुआ. वर्ष 1996 में वे मिलेट्री अकादमी देहरादून के लिए सिलेक्ट हुए. कमीशन हासिल करने के बाद उनकी नियुक्ति 13 जैक राइफल में हुई. जून 1999 में कारगिल युद्ध छिड़ गया. ऑपरेशन विजय के तहत विक्रम बत्रा भी मोर्चे पर पहुंचे. उनकी डैल्टा कंपनी को प्वॉइंट 5140 को कैप्चर करने का आदेश मिला. दुश्मन सेना को ध्वस्त करते हुए विक्रम बत्रा और उनके साथियों ने प्वॉइंट 5140 की चोटी को कब्जे में कर लिया. इस महान नायक ने युद्ध के दौरान कई दुस्साहसिक फैसले लिए.

कारगिल युद्ध के दौरान शहीद हुए विक्रम बत्रा: जुलाई 1999 की 7 तारीख थी. कई दिनों से मोर्चे पर डटे विक्रम को उनके ऑफिसर्स ने आराम करने की सलाह दी थी, लेकिन वे नहीं माने. इसी दिन वे प्वॉइंट 4875 पर युद्ध के दौरान मां भारती पर बलिदान हो गए. सर्वोच्च बलिदान देने से पहले वे भारतीय सेना के समक्ष आने वाले सारे अवरोध दूर कर चुके थे. युद्ध के दौरान उनका नारा ये दिल मांगे मोर था, जिसे उन्होंने सच कर दिखाया. वहीं, बिलासपुर जिला के बकैण गांव के संजय कुमार ने भी करगिल युद्ध में अदम्य शौर्य दिखाया. करगिल की प्वॉइंट 4875 चोटी पर पाकिस्तान ने भारतीय सेना के इस योद्धा का साहस देखा. संजय का सामना पाकिस्तानी सैनिकों की ऑटोमैटिक मशीनगन से हो गया था. संजय कुमार ने निहत्थे ही उनकी मशीनगन ध्वस्त कर सैनिकों को मार गिराया था. संजय के साहस से घबराए पाकिस्तानी सैनिक अपनी यूनिवर्सल मशीनगन छोड़ कर भाग गए थे.

Kargil Vijay Diwas
कैप्टन विक्रम बत्रा

संजय कुमार को मिला परमवीर चक्र: 13 जैक राइफल के संजय कुमार को इस शौर्य के लिए परमवीर चक्र से अलंकृत किया गया था. संजय कुमार 3 मार्च 1976 को जन्मे थे. वे आरंभ से ही भारतीय सेना का हिस्सा बनना चाहते थे. भारतीय सेना के महत्वपूर्ण नाम ब्रिगेडियर खुशाल सिंह कारगिल हीरो के नाम से चर्चित हैं. उन्होंने कठिन समय में अपने वीरों को प्रेरित कर पाकिस्तानी सेना को सबक सिखाया. खुशाल ठाकुर कारगिल युद्ध के समय कर्नल के रूप में 18 ग्रेनेडियर का नेतृत्व कर रहे थे. उनकी कमान में 13 जून 1999 की रात को 18 ग्रेनेडियर व 2 राजपूताना राइफल्स ने 24 दिन के संघर्ष के बाद तोलोलिंग पर कब्जा किया था. ब्रिगेडियर खुशाल सिंह युद्ध सेवा मेडल से अलंकृत हैं.

डोलाराम ने अकेले 17 पाकिस्तानियों को किया ढेर: आनी के बलिदानी सैनिक डोलाराम ने अकेले 17 पाकिस्तानियों को ढेर किया था. डोलाराम एक शानदार बॉक्सर भी थे और पर्वतारोहण में भी महारत रखते थे. डोलाराम ने अपने सीने पर 5 गोलियां झेली और भारत मां पर बलिदान हो गए. ऐसे अदम्य साहस की कहानियां युगों तक आने वाली पीढ़ी के सैनिकों को प्रेरित करती रहेगी. इन्हीं योद्धाओं को कारण हिमाचल को वीरभूमि कहा जाता है. पिछले पांच साल का आंकड़ा देखा जाए तो वर्ष 2017 से 2022 तक प्रति दस लाख की जनसंख्या में हिमाचल से 402 युवा सेना में भर्ती हुए. ये देश में औसत के लिहाज से सर्वाधिक है. दूसरे नंबर पर उत्तराखंड, तीसरे पर जेएंडके, चौथे पर पंजाब आता है.

Kargil Vijay Diwas
कारगिल युद्ध में भारत ने पाक का चटाया धूल

स्मृतियों में अमिट हैं ये वीर सितारे: कारगिल वॉर में कांगड़ा जिला से जिन वीरों ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया उनमें कैप्टन विक्रम बत्रा, सौरभ कालिया, बजिंद्र सिंह, राकेश कुमार, वीर सिंह, अशोक कुमार, सुनील कुमार, लखवीर सिंह, ब्रह्मदास, जगजीत सिंह, संतोख सिंह, सुरेंद्र सिंह, पदम सिंह, सुरजीत सिंह, योगेंद्र सिंह का नाम शामिल है. मंडी जिला से बलिदानियों में दीपक गुलेरिया, खेमचंद राणा, कृष्ण चंद, सरवण कुमार, टेक सिंह मस्ताना, राकेश चौहान, नरेश कुमार, हीरा सिंह, पूर्ण चंद, गुरदास सिंह, मेहर सिंह, अशोक कुमार का नाम अमर है.

Kargil Vijay Diwas
शहीद सौरभ कालिया

इन वीरों ने भी मां भारती के लिए दी शहादत: जिला हमीरपुर से हवलदार कश्मीर सिंह, हवलदार राजकुमार, हवलदार स्वामीदास चंदेल, सिपाही राकेश कुमार, राइफलमैन प्रवीण कुमार, सिपाही सुनील कुमार, राइफलमैन दीपचंद का नाम शामिल है. इसी तरह बिलासपुर जिला से बलिदान हुए वीरों में वीर चक्र विजेता मंगल सिंह, विजय पाल, राजकुमार, अश्विनी कुमार, प्यार सिंह व मस्तराम का नाम श्रद्धा से स्मरण किया जाता है. जिला शिमला से सबसे पहले बलिदान का अमृत चखने वाले यशवंत सिंह थे. उनके साथ वीर चक्र विजेता श्याम सिंह, नरेश कुमार व अनंतराम का नाम है.

Kargil Vijay Diwas
कारगिल वार मेमोरियल

मां भारती की सेवा में सर्वोच्च बलिदान: जिला ऊना से कैप्टन अमोल कालिया वीर चक्र विजेता व मनोहर लाल ने मां भारती की सेवा में सर्वोच्च बलिदान दिया. जिला सोलन से धर्मेंद्र सिंह व प्रदीप कुमार के हिस्से ये गौरव आया. सिरमौर जिला के वीर कुलविंदर सिंह व सेना मेडल विजेता कल्याण सिंह ने मां भारती का मान रखा. जिला चंबा के खेमराज ने बलिदान दिया. कुल्लू के आनी के डोलाराम युगों तक अपने बलिदान के लिए स्मरण रहेंगे. कारगिल युद्ध में हिमाचल के महान वीरों को दो परमवीर चक्र, पांच वीर चक्र, नौ सेना मेडल, एक युद्ध सेना मेडल, दो उत्तम युद्ध सेना मेडल सहित दो जवानों को मेंशन इन डिस्पेचीज से सम्मानित किया गया.

इन सपूतों ने शहादत देकर की देश की रक्षा: वीर चक्र पाने वालों में कैप्टन अमोल कालिया, बलिदानी हवलदार उधम सिंह, राइफलमैन श्याम सिंह, मेजर संजीव सिंह व राइफलमैन मेहर सिंह शामिल हैं. इसके अलावा सेना मेडल से सम्मानित वीरों में बलिदानी नायक अश्विनी कुमार, बलिदानी कैप्टन दीपक गुलेरिया, बलिदानी हवलदार डोला राम, नायक दलीप सिंह, मेजर जनरल कुलवीर सिंह, ब्रिगेडियर अनिल कायस्थ, नायब सूबेदार श्रवण सिंह, नायक अजय पठानिया व आनरेरी कैप्टन खूब राम को सेना मेडल से सम्मानित किया गया. ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर को युद्ध सेना मेडल और एवीएम जेके पठानिया को उत्तम युद्ध सेना मेडल मिला. लेफ्टिनेंट जनरल पीसी कटोच को बलिदान उपरांत उत्तम युद्ध सेना मेडल दिया गया था. मेंशन इन डिस्पेचीज सम्मान पाने वालों में बलिदानी हवलदार कश्मीर सिंह व कर्नल मदन लाल शर्मा का नाम शामिल है.

ये भी पढ़ें: Kargil Vijay Diwas: हिमाचल प्रदेश के 52 वीरों ने दिया था सर्वोच्च बलिदान, ये रहे नाम

शिमला: विख्यात शायर अमर सिंह फिगार ने कारगिल शहीदों को बेहद मार्मिक शब्दों में याद किया है. उनकी रचना में दर्ज है- हर कदम बिखरा के अपना खून, अपनी बोटियां, जब शहीदों ने बचाई कारगिल की चोटियां...कारगिल की चोटियों में भारतीय सेना का शौर्य लहू के रूप में अनंतकाल तक चमकता रहेगा. कारगिल की इन्हीं चोटियों में हिमाचल के वीर बलिदानियों की शौर्य गाथा भी पत्थरों पर अमिट छाप के साथ-साथ यहां की मिट्टी के एक-एक कण में लिपटी हुई है. हिमाचल के वीर मेजर परमवीर चक्र विजेता सोमनाथ शर्मा ने जिस परंपरा की नींव रखी थी, उसे कैप्टन विक्रम बत्रा, राइफलमैन संजय कुमार (अब सूबेदार मेजर) जैसे वीरों ने अभेद मजबूती प्रदान की है. कारगिल विजय दिवस पर हिमाचल के वीरों की स्मृति बरबस ही हो आती है. देश अपने वीरों को लेकर किस कदर भावुक हो जाता है, उसकी बानगी हाल ही में मिली.

Kargil Vijay Diwas
भारतीय सेना ने कारगिल वार में लहराया परचम

फ्लाइट में सूबेदार संजय कुमार को सम्मान: इंडिगो की फ्लाइट से परमवीर चक्र विजेता सूबेदार मेजर संजय कुमार पुणे की यात्रा पर थे. जहाज के क्रू ने संजय कुमार की मौजूदगी को अपना सम्मान मानते हुए यात्रियों को उनका परिचय दिया कि आज हमारे साथ भारत के महान सपूत यात्रा कर रहे हैं. सूबेदार मेजर संजय कुमार के सम्मान में यात्रियों ने करतल ध्वनि की. ट्विटर पर इंडिगो ने इससे जुड़ा वीडियो साझा किया तो यूजर्स ने बहुत भावुक कमेंट किए और पीवीसी संजय कुमार को सैल्यूट किया. ये दिखाता है कि भारतवासी अपने वीरों का दिल से सम्मान करते हैं. आइए, कारगिल के वीर सपूतों को आदर के साथ याद करते हैं.

पाकिस्तान को भारत ने दिखाई औकात: वर्ष 1999 में नापाक फौज ने भारत की वीरता को ललकारा था. भारतीय सेना ने दुश्मन को करारा जवाब देकर वो सबक सिखाया, जिसे पाकिस्तान हमेशा याद रखेगा. दुनिया के सबसे कठिन पहाड़ों पर हुए इस युद्ध में भारत के हर प्रांत के वीरों ने अपने अतुल्य साहस और युद्ध कौशल से दुश्मन को नाकों चने चबवाए थे. देश को पहला परमवीर देने वाले हिमाचल के सपूतों ने भी अपना लहू मातृभूमि को अर्पित किया. युद्ध के मैदान से बलिदानी सैनिकों की पवित्र देह आती तो, हजारों नम आंखें उन्हें आदरांजलि देने के लिए उमड़ पड़ती.

कारगिल युद्ध में शहीद हुए यशवंत सिंह: युद्ध के दौर में ऐसा ही एक मार्मिक दृश्य शिमला में देखने को मिला. शिमला के रिज मैदान पर हजारों की भीड़ के बावजूद गहरी खामोशी थी. शिमला जिला के यशवंत सिंह रणभूमि में भारत मां पर बलिदान हुए थे. उनका पवित्र पार्थिव शरीर शिमला के रिज मैदान पर देशवासियों के दर्शन के लिए रखा था. हजारों की भीड़ नम आंखों से खामोश होकर अपने वीर सपूत का अंतिम दर्शन करने कतार में खड़ी थी. इस युद्ध में हिमाचल के दो शूरवीरों को परमवीर चक्र मिला. कैप्टन विक्रम बत्रा और राइफलमैन संजय कुमार. विक्रम बत्रा ने तो सर्वोच्च बलिदान देकर खुद को आकाश में अमिट सितारे के रूप में प्रतिष्ठित कर लिया, लेकिन राइफलमैन संजय कुमार (अब सूबेदार मेजर) कारगिल युद्ध की गाथा सुनाने के लिए हम सबके बीच मौजूद हैं.

Kargil Vijay Diwas
शहीद विक्रम बत्रा और सौरभ कालिया

विक्रम बत्रा का अदम्य साहस देख थर्राया पाकिस्तान: इसी युद्ध में हिमाचल के 52 जांबाजों ने अपने प्राण मातृभूमि की सेवा में अर्पित किए थे. महान योद्धा कैप्टन विक्रम बत्रा का अदम्य साहस देखकर नापाक दुश्मन थर्रा गया था. इन्हीं विक्रम बत्रा के लिए तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल वीपी मलिक ने कहा था-काश! कैप्टन बत्रा बलिदान न होते तो देश को सबसे युवा सेना अध्यक्ष बनते. संजय कुमार के साहस की कहानियां देश के हर निवासी को प्रेरित करती है. इस युद्ध में भारत मां को प्राणों की बलि देने वाले हिमाचल के 52 वीर सपूत थे. कैप्टन बत्रा भारतीय सेना के ताज में जड़े बेमिसाल हीरों में से एक हैं.

विक्रम ने साथियों संग प्वॉइंट 5140 की चोटी पर किया कब्जा: हिमाचल में कांगड़ा जिला के पालमपुर के गांव घुग्गर में 9 सितंबर 1974 को विक्रम बत्रा का जन्म हुआ था. बचपन में पिता से अमर शहीदों की गाथाएं सुनकर विक्रम को भी देश की सेवा का शौक पैदा हुआ. वर्ष 1996 में वे मिलेट्री अकादमी देहरादून के लिए सिलेक्ट हुए. कमीशन हासिल करने के बाद उनकी नियुक्ति 13 जैक राइफल में हुई. जून 1999 में कारगिल युद्ध छिड़ गया. ऑपरेशन विजय के तहत विक्रम बत्रा भी मोर्चे पर पहुंचे. उनकी डैल्टा कंपनी को प्वॉइंट 5140 को कैप्चर करने का आदेश मिला. दुश्मन सेना को ध्वस्त करते हुए विक्रम बत्रा और उनके साथियों ने प्वॉइंट 5140 की चोटी को कब्जे में कर लिया. इस महान नायक ने युद्ध के दौरान कई दुस्साहसिक फैसले लिए.

कारगिल युद्ध के दौरान शहीद हुए विक्रम बत्रा: जुलाई 1999 की 7 तारीख थी. कई दिनों से मोर्चे पर डटे विक्रम को उनके ऑफिसर्स ने आराम करने की सलाह दी थी, लेकिन वे नहीं माने. इसी दिन वे प्वॉइंट 4875 पर युद्ध के दौरान मां भारती पर बलिदान हो गए. सर्वोच्च बलिदान देने से पहले वे भारतीय सेना के समक्ष आने वाले सारे अवरोध दूर कर चुके थे. युद्ध के दौरान उनका नारा ये दिल मांगे मोर था, जिसे उन्होंने सच कर दिखाया. वहीं, बिलासपुर जिला के बकैण गांव के संजय कुमार ने भी करगिल युद्ध में अदम्य शौर्य दिखाया. करगिल की प्वॉइंट 4875 चोटी पर पाकिस्तान ने भारतीय सेना के इस योद्धा का साहस देखा. संजय का सामना पाकिस्तानी सैनिकों की ऑटोमैटिक मशीनगन से हो गया था. संजय कुमार ने निहत्थे ही उनकी मशीनगन ध्वस्त कर सैनिकों को मार गिराया था. संजय के साहस से घबराए पाकिस्तानी सैनिक अपनी यूनिवर्सल मशीनगन छोड़ कर भाग गए थे.

Kargil Vijay Diwas
कैप्टन विक्रम बत्रा

संजय कुमार को मिला परमवीर चक्र: 13 जैक राइफल के संजय कुमार को इस शौर्य के लिए परमवीर चक्र से अलंकृत किया गया था. संजय कुमार 3 मार्च 1976 को जन्मे थे. वे आरंभ से ही भारतीय सेना का हिस्सा बनना चाहते थे. भारतीय सेना के महत्वपूर्ण नाम ब्रिगेडियर खुशाल सिंह कारगिल हीरो के नाम से चर्चित हैं. उन्होंने कठिन समय में अपने वीरों को प्रेरित कर पाकिस्तानी सेना को सबक सिखाया. खुशाल ठाकुर कारगिल युद्ध के समय कर्नल के रूप में 18 ग्रेनेडियर का नेतृत्व कर रहे थे. उनकी कमान में 13 जून 1999 की रात को 18 ग्रेनेडियर व 2 राजपूताना राइफल्स ने 24 दिन के संघर्ष के बाद तोलोलिंग पर कब्जा किया था. ब्रिगेडियर खुशाल सिंह युद्ध सेवा मेडल से अलंकृत हैं.

डोलाराम ने अकेले 17 पाकिस्तानियों को किया ढेर: आनी के बलिदानी सैनिक डोलाराम ने अकेले 17 पाकिस्तानियों को ढेर किया था. डोलाराम एक शानदार बॉक्सर भी थे और पर्वतारोहण में भी महारत रखते थे. डोलाराम ने अपने सीने पर 5 गोलियां झेली और भारत मां पर बलिदान हो गए. ऐसे अदम्य साहस की कहानियां युगों तक आने वाली पीढ़ी के सैनिकों को प्रेरित करती रहेगी. इन्हीं योद्धाओं को कारण हिमाचल को वीरभूमि कहा जाता है. पिछले पांच साल का आंकड़ा देखा जाए तो वर्ष 2017 से 2022 तक प्रति दस लाख की जनसंख्या में हिमाचल से 402 युवा सेना में भर्ती हुए. ये देश में औसत के लिहाज से सर्वाधिक है. दूसरे नंबर पर उत्तराखंड, तीसरे पर जेएंडके, चौथे पर पंजाब आता है.

Kargil Vijay Diwas
कारगिल युद्ध में भारत ने पाक का चटाया धूल

स्मृतियों में अमिट हैं ये वीर सितारे: कारगिल वॉर में कांगड़ा जिला से जिन वीरों ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया उनमें कैप्टन विक्रम बत्रा, सौरभ कालिया, बजिंद्र सिंह, राकेश कुमार, वीर सिंह, अशोक कुमार, सुनील कुमार, लखवीर सिंह, ब्रह्मदास, जगजीत सिंह, संतोख सिंह, सुरेंद्र सिंह, पदम सिंह, सुरजीत सिंह, योगेंद्र सिंह का नाम शामिल है. मंडी जिला से बलिदानियों में दीपक गुलेरिया, खेमचंद राणा, कृष्ण चंद, सरवण कुमार, टेक सिंह मस्ताना, राकेश चौहान, नरेश कुमार, हीरा सिंह, पूर्ण चंद, गुरदास सिंह, मेहर सिंह, अशोक कुमार का नाम अमर है.

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शहीद सौरभ कालिया

इन वीरों ने भी मां भारती के लिए दी शहादत: जिला हमीरपुर से हवलदार कश्मीर सिंह, हवलदार राजकुमार, हवलदार स्वामीदास चंदेल, सिपाही राकेश कुमार, राइफलमैन प्रवीण कुमार, सिपाही सुनील कुमार, राइफलमैन दीपचंद का नाम शामिल है. इसी तरह बिलासपुर जिला से बलिदान हुए वीरों में वीर चक्र विजेता मंगल सिंह, विजय पाल, राजकुमार, अश्विनी कुमार, प्यार सिंह व मस्तराम का नाम श्रद्धा से स्मरण किया जाता है. जिला शिमला से सबसे पहले बलिदान का अमृत चखने वाले यशवंत सिंह थे. उनके साथ वीर चक्र विजेता श्याम सिंह, नरेश कुमार व अनंतराम का नाम है.

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कारगिल वार मेमोरियल

मां भारती की सेवा में सर्वोच्च बलिदान: जिला ऊना से कैप्टन अमोल कालिया वीर चक्र विजेता व मनोहर लाल ने मां भारती की सेवा में सर्वोच्च बलिदान दिया. जिला सोलन से धर्मेंद्र सिंह व प्रदीप कुमार के हिस्से ये गौरव आया. सिरमौर जिला के वीर कुलविंदर सिंह व सेना मेडल विजेता कल्याण सिंह ने मां भारती का मान रखा. जिला चंबा के खेमराज ने बलिदान दिया. कुल्लू के आनी के डोलाराम युगों तक अपने बलिदान के लिए स्मरण रहेंगे. कारगिल युद्ध में हिमाचल के महान वीरों को दो परमवीर चक्र, पांच वीर चक्र, नौ सेना मेडल, एक युद्ध सेना मेडल, दो उत्तम युद्ध सेना मेडल सहित दो जवानों को मेंशन इन डिस्पेचीज से सम्मानित किया गया.

इन सपूतों ने शहादत देकर की देश की रक्षा: वीर चक्र पाने वालों में कैप्टन अमोल कालिया, बलिदानी हवलदार उधम सिंह, राइफलमैन श्याम सिंह, मेजर संजीव सिंह व राइफलमैन मेहर सिंह शामिल हैं. इसके अलावा सेना मेडल से सम्मानित वीरों में बलिदानी नायक अश्विनी कुमार, बलिदानी कैप्टन दीपक गुलेरिया, बलिदानी हवलदार डोला राम, नायक दलीप सिंह, मेजर जनरल कुलवीर सिंह, ब्रिगेडियर अनिल कायस्थ, नायब सूबेदार श्रवण सिंह, नायक अजय पठानिया व आनरेरी कैप्टन खूब राम को सेना मेडल से सम्मानित किया गया. ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर को युद्ध सेना मेडल और एवीएम जेके पठानिया को उत्तम युद्ध सेना मेडल मिला. लेफ्टिनेंट जनरल पीसी कटोच को बलिदान उपरांत उत्तम युद्ध सेना मेडल दिया गया था. मेंशन इन डिस्पेचीज सम्मान पाने वालों में बलिदानी हवलदार कश्मीर सिंह व कर्नल मदन लाल शर्मा का नाम शामिल है.

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Last Updated : Jul 26, 2023, 7:12 PM IST
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