शिमला: हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh Election 2022 ) की 68 सीटों पर 12 नवंबर को वोटिंग और 8 दिसंबर को काउंटिंग होगी. सरकार बनाने के लिए 35 का जादुई आंकड़ा चाहिए. ऐसे में कहा जाता है कि जिसने भी कांगड़ा (Kangra Is Necessary To Form Government), मंडी और शिमला जिले की सीटों पर अपना कब्जा कर लिया समझो सत्ता पर उसका कब्जा हो गया.
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हिमाचल में सरकार के लिए 3 जिले जरूरी: 2003 में कांगड़ा में 16 विधानसभा की सीटें थी जो 2007 में परिसीमन के बाद 15 हो गईं. कांगड़ा को हिमाचल प्रदेश का सबसे महत्वपूर्ण जिला माना जाता है. 15 विधानसभा क्षेत्रों वाले कांगड़ा जिले में सबसे ज्यादा आबादी है. वहीं मंडी में 10 और शिमला में 8 सीटें हैं. हालांकि शिमला की सीटों पर कांग्रेस का ही वर्चस्व देखने को मिलता है.
2003 में कांगड़ा,मंडी और शिमला में कांग्रेस का बेहतर प्रदर्शन: 2003 में कांगड़ा की 16 सीटों में से 11 सीटें कांग्रेस के खाते में गई बीजेपी को महज 4 सीटों से संतोष करना पड़ा था और 1 सीट पर निर्दलीय का कब्जा हुआ. वहीं मंडी की 10 सीटों में से 6 सीटें कांग्रेस और 2 सीटों पर बीजेपी की जीत हुई. वहीं 2 सीटों पर एचवीसी यानी कि हिमाचल विकास कांग्रेस और 1 सीट एलएमएचपी को मिली थी. वहीं शिमला की 8 सीटों में से 5 सीटों पर कांग्रेस ने बाजी मारी जबकि बीजेपी का खाता तक नहीं खुला. वहीं तीन सीटों पर निर्दलीयों का कब्जा हुआ. कुल मिलाकर 2003 में कांगड़ा, मंडी और शिमला में प्रदर्शन काफी बेहतर रहने के कारण कांग्रेस की सरकार बनी.
2007 में कांगड़ा और मंडी में बीजेपी की स्थिति सुदृढ़: वहीं 2007 में कांगड़ा की 15 सीटों में से 5 पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की तो बीजेपी ने 9 सीटों पर फतह हासिल की. मंडी की 10 सीटों में से 3 कांग्रेस और 6 बीजेपी के खाते में गई जबकि दो पर अन्य का कब्जा हुआ. शिमला की 8 सीटों में से 5 पर कांग्रेस का परचम लहराया तो बीजेपी ने पुराने परिणामों से सीख लेते हुए फोकस किया और 2 सीटों पर काबिज हो सकी. जबकि 1 पर अन्य का कब्जा हुआ. 2007 में बीजेपी, प्रदेश में सरकार बनाने में कामयाब रही थी.
2012 में एक बार फिर कांग्रेस की वापसी: साल 2012 की बात करें तो कांगड़ा की 15 सीटों में कांग्रेस का प्रदर्शन यहां काफी अच्छा रहा और 10 सीटों पर कब्जा किया जबकि बीजेपी के खाते में महज तीन सीटें आईं, 2 पर अन्य का कब्जा रहा. मंडी में बीजेपी और कांग्रेस के बीच दिलचस्प मुकाबला देखने को मिला. 10 सीटों में से दोनों ही पार्टियां 5-5 सीटों पर कब्जा करने में सफल रही. इधर शिमला की 8 सीटों में से 6 सीटों पर कांग्रेस और 1 सीट पर बीजेपी ने जीत दर्ज की जबकि अन्य के खाते में एक सीट गई. साल 2012 में बीजेपी को सत्ता से दूरी झेलनी पड़ी और कांग्रेस ने अपनी सरकार बनाई
कांगड़ा खोलता है सत्ता के द्वार: साल 2017 में कांगड़ा में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 15 सीटों में से 11 सीटों पर कब्जा जमाया. जबकि कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर नहीं हो सका. उसके खाते में मात्र 3 सीट ही आई. 1 सीट अन्य की झोली में गई. वहीं मंडी की 10 सीटों में 9 पर बीजेपी ने जीत दर्ज की और कांग्रेस अपना खाता नहीं खोल पाई जबकि एक सीट पर निर्दलीय का कब्जा हुआ. जिसने बाद में बीजेपी को अपना समर्थन दे दिया. वहीं शिमला की 8 में से 5 सीटें कांग्रेस और 2 बीजेपी के खाते में गई. 1 सीट पर सीपीएम का कब्जा हुआ. 2017 में बीजेपी देवभूमि में सरकार बनाने में कामयाब हुई. कुल मिलाकर देखें तो कांगड़ा जिला किसी भी पार्टी के लिए अहम है. जिसने कांगड़ा जीता उसके लिए सत्ता के द्वार खुल गए. वहीं राजधानी होने के कारण शिमला भी सभी पार्टियों के लिए अहम है. यही वजह है कि चुनावी मौसम में सभी पार्टियों का फोकस इन तीन जिलों खासकर कांगड़ा पर होता है.