शिमला: जयराम सरकार के सबसे महत्वाकांक्षी कार्यक्रम ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट के जरिए हासिल हुए 96 हजार करोड़ से ज्यादा के निवेश इन्वेस्टमेंट एजेंसी धरातल पर उतारेगी. हिमाचल में पहली बार ऐसी एजेंसी का गठन हो रहा है. इस एजेंसी को चलाने का जिम्मा सीईओ का होगा. सीईओ का पद राज्य सरकार के संयुक्त सचिव से ऊपर के अधिकारी को दिया जाएगा.
ये भी संभव है कि सीईओ की पोस्ट के लिए किसी निजी सेक्टर के अनुभवी अधिकारी का चयन किया जाए. मुख्य कार्यकारी अधिकारी यानी सीईओ का कार्यकाल तीन साल प्रस्तावित है. राज्य सरकार के उद्योग विभाग ने हिमाचल प्रदेश इन्वेस्टमेंट प्रमोशन एजेंसी से जुड़ा बिल तैयार किया है. हाल ही में बिल को जरूरी समीक्षा के लिए लॉ डिपार्टमेंट को भेजा गया था. लॉ डिपार्टमेंट उक्त बिल के करीब बारह बिंदुओं से सहमत नहीं था और उसने आपत्तियों के साथ बिल को लौटा दिया था.
अब नए सिरे से इसे ड्रॉफ्ट किया गया है. पूर्व में उद्योग विभाग ने मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल की भूमिका महज सलाहकार की रखी थी. जाहिर तौर पर मुख्यमंत्री और कैबिनेट का रोल निर्णय लेने का है. फिलहाल, एजेंसी को अस्तित्व में आ जाने से निवेश का रास्ते की बाधाएं जल्द दूर होंगी और राज्य में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे.
जानकारी के अनुसार उद्योग विभाग की तरफ से तैयार एचपी इन्वेस्टमेंट प्रमोशन एजेंसी बिल-2020 को तीन हिस्सों में बांटा गया है. सबसे पहले नंबर पर गवर्निंग काउंसिल होगी. ये काउंसिल मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की अगुवाई में काम करेगी. काउंसिल में समूचा मंत्रिमंडल और राज्य सरकार के प्रमुख विभागों के सचिव शामिल होंगे. दूसरे नंबर पर एग्जीक्यूटिव कमेटी रखी गई है.
राज्य सरकार के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में काम करेगी कमेटी
ये कमेटी राज्य सरकार के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में काम करेगी. वहीं, एचपी इन्वेस्टमेंट प्रमोशन एजेंसी का जिम्मा सीईओ का रहेगा. फिलहाल ये प्रस्ताव रखा गया है कि सीईओ या तो सरकार से डेपुटेशन के जरिए आएगा अथवा इसे निजी सेक्टर से लिया जाएगा. बड़ी बात ये है कि उद्योगों के साथ निवेश से जुड़े एमओयू साइन करने की पावर सीईओ के पास होगी. उद्योग विभाग के अनुसार देश में कुछ राज्य ऐसी व्यवस्था का गठन कर चुके हैं. उन राज्यों में आंध्र प्रदेश, पंजाब और गोवा शामिल हैं.
फर्क ये है कि उक्त राज्यों में एजेंसी के स्थान पर बोर्ड का गठन किया गया है. इस घटनाक्रम का एक तकनीकी पहलू भी है. हिमाचल सरकार को एजेंसी के गठन के लिए वर्ष 2018 में पारित हुए सिंगल विंडो अथॉरिटी एक्ट को निरस्त करना होगा. इस एक्ट का ड्राफ्ट पूर्व कांग्रेस सरकार के दौरान आया था. बाद में जयराम सरकार ने इसे ऑर्डिनेंस के जरिये पारित किया, लेकिन इसका समय समाप्त हो गया. फिर 2018 में बिल लाकर इसे पारित किया गया और राज्यपाल की मंजूरी के बाद ये अब एक्ट बन चुका है, लेकिन इसे प्रभावी करने की तिथि राज्य सरकार ने अभी अधिसूचित नहीं की है. अब इसे रिपील करने की तैयारी हो रही है.
इसमें प्रावधान था कि निवेश से संबंधित फैसले लेने के लिए एक ही जगह एक अथॉरिटी के रूप में सिंगल विंडो को शक्तियां दी गई थी. हिमाचल एक छोटा पहाड़ी राज्य है और यहां उद्योग स्थापित करने के लिए राज्य सरकारें प्रयासरत रही हैं. हिमाचल के पास बिजली पर्याप्त मात्रा में है और कानून-व्यवस्था भी देश के अन्य राज्यों से बेहतर है. यहां उद्योग के लिए कमी सिर्फ इन्फ्रास्ट्रक्चर, लैंड बैंक और धारा-118 से जुड़ी मंजूरियों की है.
इन सभी बाधाओं को दूर करने के लिए एक प्रभावशाली एजेंसी जरूरी थी. खासकर वैश्विक निवेश समिट के बाद तो इसकी सख्त जरूरत थी. इन्वेस्टर्स मीट के बाद 96 हजार करोड़ रुपए से अधिक के निवेश की राह प्रशस्त हुई हैं. इस निवेश को अंजाम तक पहुंचाने के लिए एजेंसी का गठन जरूरी था. इस सत्र में ये बिल पास हो जाएगा.
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