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कोरोना से खतरनाक 'डिप्रेशन', हिमाचल में 2 महीनों में 121 लोगों ने की आत्महत्या - डिप्रेशन का शिकार

लॉकडाउन के दौरान लोग अवसाद से ग्रसित हो रहे हैं. हिमाचल में अप्रैल और मई महीने में ही आत्महत्या के 121 मामले सामने आए हैं. प्रदेश में अप्रैल महीने में सुसाइड के 40 और अकेले मई महीने में सुसाइड के 81 मामले दर्ज हुए, जो अपनेआप में काफी डराने वाले हैं.

increasing suicide cases due to stress
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Published : Jun 28, 2020, 12:27 PM IST

Updated : Jun 28, 2020, 3:14 PM IST

शिमला: अचानक से दुनिया के सामने खड़े कोरोना संकट ने समाज में अवसाद का नया दौर पैदा कर दिया है. सवाल है कि तेजी से भागते जीवन की रफ्तार क्या धीमी हुई है. क्या अवसाद जिंदगी पर हावी हो रहा है. क्या डिप्रेशन के चलते मौत जिंदगी से आसान लगने लगी है. ये सवाल इसलिये, क्योंकि हिमाचल में लॉकडाउन के दो महीनों के दौरान आत्महत्या के जो आंकड़े सामने आए हैं वो काफी डराने वाले हैं.

साल 2020 में अब तक हिमाचल में कुल 237 लोग आत्महत्या कर चुके हैं और इनमें से 121 मामले अकेले अप्रैल और मई के दौरान सामने आए हैं. अकेले मई में 81 खुदकुशी के मामले सामने आए. आत्महत्या करने वालों में 75 पुरुष और 46 महिलाएं शामिल हैं. आत्महत्या के ये मामले उन दो महीनों में सामने आए जब कोरोना संक्रमण के चलते देशभर में लॉकडाउन और हिमाचल में कर्फ्यू लगा हुआ था.

वीडियो रिपोर्ट.

बता दें कि साल 2019 में भी हिमाचल में कुल 563 आत्महत्या के मामले सामने आए, लेकिन लॉकडाउन के दौरान महज दो महीनों में 121 आत्महत्याएं कई सवाल खड़े कर रही हैं.

दरअसल, लॉकडाउन के दौरान पूरी दुनिया घर की चार दीवारी में कैद रही, सारे काम-धंधों पर ताला लटका रहा. नौकरी के संकट से लेकर भविष्य की चिंता तक कई लोगों के सामने खड़ी थी, जिसके चलते वो डिप्रेशन का शिकार हुए. नतीजतन उन्हें काउंसलिंग का सहारा लेना पड़ रहा है.

आईजीएमसी के मनोचिकित्सा विभाग के सहायक प्रोफेसर देवेश शर्मा मानते हैं कि लॉकडाउन में कई तरह की दिक्कतें सामने आई हैं, लेकिन सुसाइड के मामले पहले भी आते रहे हैं और ऐसी कई वजहें हो सकती है, जब कोई शख्स अपनी जीवनलीला समाप्त कर लेता है.

डॉक्टर देवेश शर्मा का कहना है कि एक ही कारण से व्यक्ति आत्महत्या करे, ऐसा कहना सही नहीं है. आत्महत्या करने वालों में 80 से 90 फीसदी मानसिक रोग से पीड़ित होते हैं. ऐसे रोगियों में डिप्रेशन, सिजोफ्रेनिया, मूड डिसऑर्डर, नशे का इस्तेमाल शामिल है. मनोचिकित्सक के मुताबिक आत्महत्या करने वाले पहले ही संकेत देने लगते हैं, जैसे अब जिंदगी भारी लगने लगी है, जीने की इच्छा न रहना, भूख न लगना, नींद न आना. ऐसे में समय पर संकेतों को समझ कर अवसाद के रोगियों की जान बचाई जा सकती है.

बीते दिनों बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या कर ली. वजह के साथ ही हर आत्महत्या के साथ कईयों के मन में ये सवाल जरूर आया होगा कि क्या आत्महत्या का फैसला अचानक लिया गया फैसला है. डॉक्टर देवेश की मानें तो आत्महत्या की कई वजहें हो सकती हैं और जिंदगी खत्म करने के फैसले तक पहुंचने से पहले एक दौर चलता है. इस दौरान उस शख्स में कई लक्षण या संकेत नजर आते हैं, जिन्हें आस-पास के लोगों, दोस्तों और रिश्तेदारों को पहचानना होगा, ताकि मौत के मुहाने तक पहुंचने से पहले व्यक्ति को वापिस लाया जा सके.

दरअसल, भारत में डिप्रेशन को लेकर खुलकर बात न करना इसकी एक बड़ी वजह है. ज्यादातर लोग अपने अवसाद की वजह अपने रिश्तेदार या दोस्तों को नहीं बताते हैं. ऐसे में मेंटल हेल्थ को लेकर काम करने वाली संस्थाएं भी अपनी भूमिका निभाती हैं. हिमाचल में डिप्रेशन का शिकार लोगों की मदद करने वाली संस्था की सदस्य मीनाक्षी बताती हैं कि डिप्रेशन से बाहर निकलने में सबसे ज्यादा मददगार अपने परिजन या दोस्त ही साबित होते हैं.

कुल मिलाकर डिप्रेशन को भी एक रोग की ही तरह है. इसके बारे में किसी रोग की तरह ही खुलकर बात करनी होगी, ताकि वक्त रहते इसका इलाज हो सके और ये तभी मुमकिन है जब डिप्रेशन के शिकार किसी शख्स के साथ उसके अपनों को भी जिम्मेदारी उठानी होगी. कोरोना संक्रमण काल में भले सामाजिक दूरी रहे, लेकिन मानसिक दूरी बिल्कुल नहीं होनी चाहिए.

शिमला: अचानक से दुनिया के सामने खड़े कोरोना संकट ने समाज में अवसाद का नया दौर पैदा कर दिया है. सवाल है कि तेजी से भागते जीवन की रफ्तार क्या धीमी हुई है. क्या अवसाद जिंदगी पर हावी हो रहा है. क्या डिप्रेशन के चलते मौत जिंदगी से आसान लगने लगी है. ये सवाल इसलिये, क्योंकि हिमाचल में लॉकडाउन के दो महीनों के दौरान आत्महत्या के जो आंकड़े सामने आए हैं वो काफी डराने वाले हैं.

साल 2020 में अब तक हिमाचल में कुल 237 लोग आत्महत्या कर चुके हैं और इनमें से 121 मामले अकेले अप्रैल और मई के दौरान सामने आए हैं. अकेले मई में 81 खुदकुशी के मामले सामने आए. आत्महत्या करने वालों में 75 पुरुष और 46 महिलाएं शामिल हैं. आत्महत्या के ये मामले उन दो महीनों में सामने आए जब कोरोना संक्रमण के चलते देशभर में लॉकडाउन और हिमाचल में कर्फ्यू लगा हुआ था.

वीडियो रिपोर्ट.

बता दें कि साल 2019 में भी हिमाचल में कुल 563 आत्महत्या के मामले सामने आए, लेकिन लॉकडाउन के दौरान महज दो महीनों में 121 आत्महत्याएं कई सवाल खड़े कर रही हैं.

दरअसल, लॉकडाउन के दौरान पूरी दुनिया घर की चार दीवारी में कैद रही, सारे काम-धंधों पर ताला लटका रहा. नौकरी के संकट से लेकर भविष्य की चिंता तक कई लोगों के सामने खड़ी थी, जिसके चलते वो डिप्रेशन का शिकार हुए. नतीजतन उन्हें काउंसलिंग का सहारा लेना पड़ रहा है.

आईजीएमसी के मनोचिकित्सा विभाग के सहायक प्रोफेसर देवेश शर्मा मानते हैं कि लॉकडाउन में कई तरह की दिक्कतें सामने आई हैं, लेकिन सुसाइड के मामले पहले भी आते रहे हैं और ऐसी कई वजहें हो सकती है, जब कोई शख्स अपनी जीवनलीला समाप्त कर लेता है.

डॉक्टर देवेश शर्मा का कहना है कि एक ही कारण से व्यक्ति आत्महत्या करे, ऐसा कहना सही नहीं है. आत्महत्या करने वालों में 80 से 90 फीसदी मानसिक रोग से पीड़ित होते हैं. ऐसे रोगियों में डिप्रेशन, सिजोफ्रेनिया, मूड डिसऑर्डर, नशे का इस्तेमाल शामिल है. मनोचिकित्सक के मुताबिक आत्महत्या करने वाले पहले ही संकेत देने लगते हैं, जैसे अब जिंदगी भारी लगने लगी है, जीने की इच्छा न रहना, भूख न लगना, नींद न आना. ऐसे में समय पर संकेतों को समझ कर अवसाद के रोगियों की जान बचाई जा सकती है.

बीते दिनों बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या कर ली. वजह के साथ ही हर आत्महत्या के साथ कईयों के मन में ये सवाल जरूर आया होगा कि क्या आत्महत्या का फैसला अचानक लिया गया फैसला है. डॉक्टर देवेश की मानें तो आत्महत्या की कई वजहें हो सकती हैं और जिंदगी खत्म करने के फैसले तक पहुंचने से पहले एक दौर चलता है. इस दौरान उस शख्स में कई लक्षण या संकेत नजर आते हैं, जिन्हें आस-पास के लोगों, दोस्तों और रिश्तेदारों को पहचानना होगा, ताकि मौत के मुहाने तक पहुंचने से पहले व्यक्ति को वापिस लाया जा सके.

दरअसल, भारत में डिप्रेशन को लेकर खुलकर बात न करना इसकी एक बड़ी वजह है. ज्यादातर लोग अपने अवसाद की वजह अपने रिश्तेदार या दोस्तों को नहीं बताते हैं. ऐसे में मेंटल हेल्थ को लेकर काम करने वाली संस्थाएं भी अपनी भूमिका निभाती हैं. हिमाचल में डिप्रेशन का शिकार लोगों की मदद करने वाली संस्था की सदस्य मीनाक्षी बताती हैं कि डिप्रेशन से बाहर निकलने में सबसे ज्यादा मददगार अपने परिजन या दोस्त ही साबित होते हैं.

कुल मिलाकर डिप्रेशन को भी एक रोग की ही तरह है. इसके बारे में किसी रोग की तरह ही खुलकर बात करनी होगी, ताकि वक्त रहते इसका इलाज हो सके और ये तभी मुमकिन है जब डिप्रेशन के शिकार किसी शख्स के साथ उसके अपनों को भी जिम्मेदारी उठानी होगी. कोरोना संक्रमण काल में भले सामाजिक दूरी रहे, लेकिन मानसिक दूरी बिल्कुल नहीं होनी चाहिए.

Last Updated : Jun 28, 2020, 3:14 PM IST
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