शिमला: हिमाचल प्रदेश के चर्चित होटल वाइल्ड फ्लावर हॉल मामले में अब हाईकोर्ट 15 दिसंबर को सुनवाई करेगा. शिमला के समीप छराबड़ा में स्थित आलीशन होटल वाइल्ड फ्लावर हॉल का संचालन ईस्ट इंडिया होटल (ईआईएच) नामक कंपनी करती है. ओबेराय समूह के इस होटल पर कब्जे के लिए हाल ही में राज्य सरकार के पर्यटन विकास निगम ने कार्रवाई की थी. उसके बाद ईआईएच ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के एग्जीक्यूटिव आर्डर पर स्टे लगा दिया था. उसके बाद शुक्रवार को हुई सुनवाई में राज्य सरकार के तरफ से एडिशनल एडवोकेट जनरल आईएन मेहता ने अदालत को बताया कि पर्यटन विकास निगम के पत्र को वापस ले लिया गया है. इस मामले में अब अदालत की तरफ से जो भी आदेश व निर्देश आएंगे, उन्हें माना जाएगा.
वहीं, दूसरे पक्ष यानी ईआईएच की तरफ से मामले में रिव्यू पिटीशन दाखिल की गई है. हाईकोर्ट ने इस पर राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है. हिमाचल सरकार व पर्यटन विकास निगम को इस पर 8 दिसंबर तक अपना जवाब दाखिल करना होगा. उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम की तरफ से एडवोकेट ध्रुव मेहता इस केस की पैरवी कर रहे हैं. ईआईएच के एडवोकेट राकेश्वर सूद हैं. शुक्रवार को राज्य सरकार ने अपना लेटर विदड्रॉ किया है. राज्य सरकार की तरफ से कहा गया है कि हाईकोर्ट के इस संदर्भ में जो भी आदेश आएंगे, उनका पालन किया जाएगा. ईआईएच का पक्ष है कि वो होटल की लीज की अवधि में एक्सटेंशन चाहते हैं.
उल्लेखनीय है कि मार्च 1993 में यहां आग लग गई थी और होटल राख हो गया था. फिर तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने वर्ष 1995 में पर्यटन विकास निगम के इस होटल को निजी हाथों में देने का फैसला लिया. इस तरह अक्टूबर 1995 को इस संपत्ति को लेकर ईस्ट इंडिया होटल के साथ ज्वाइंट वेंचर एग्रीमेंट साइन किया गया. एग्रीमेंट का मकसद पांच सितारा होटल का निर्माण व संचालन करना था. फिर कांग्रेस सरकार ने ही कन्वेंयस डीड के माध्यम से वर्ष 1997 में ये भूमि मशोबरा रिसोर्ट लिमिटेड के पक्ष में स्थानांतरित कर दी. ज्वाइंट वेंचर परियोजना की कुल लागत 40 करोड़ आंकी गई. सरकार के लिए भूमि के रूप में 35 फीसदी भागीदारी तय हुई. कांग्रेस सरकार के समय इस परियोजना की लागत लगातार बढ़ती गई और ये सौ करोड़ रुपए तक पहुंच गई.
जयराम ठाकुर जिस समय मुख्यमंत्री थी तो, उन्होंने 2019 में विधानसभा के मानसून सेशन में अगस्त महीने में कहा था कि कांग्रेस सरकार ने इस परियोजना में राज्य की घटती भागीदारी के मामले में कोई कदम नहीं उठाया. उस दौरान सेशन में तत्कालीन सीएम जयराम ठाकुर ने कहा था कि भाजपा सरकार के समय 2002 में ईस्ट इंडिया होटल के साथ ज्वाइंट वेंचर अग्रीमेंट को रद्द किया गया. फिर ये मामला हाईकोर्ट गया. अदालत ने इसमें आर्बिट्रेटर नियुक्त किया. आर्बिट्रेटर ने 23 जुलाई 2005 को इस मामले में अवार्ड दे दिया, जिसके अनुसार भूमि सरकार को वापिस होनी है और सरकार इसे लीज पर कंपनी को देगी. सरकार ने आर्बिट्रेटर के फैसले को मान लिया.
वहीं, ईस्ट इंडिया होटल्स लिमिटेड ने उक्त अवार्ड के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की. वर्ष 2016 में वो याचिका खारिज हो गई, फिर मामला हाईकोर्ट की डबल बेंच में गया. हाईकोर्ट ने 13 अक्टूबर 2022 को वाइल्ड फ्लावर होटल की संपत्ति के मामले में ईस्ट इंडिया होटल्स (ईआईएच) की तरफ से दाखिल अपील को खारिज कर दिया है. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान व न्यायमूर्ति सीबी बारोवालिया की डिवीजन बेंच ने 13 अक्टूबर को ये फैसला दिया था. पूर्व में कांग्रेस सरकार के समय में जब वर्ष 1995 में वाइल्ड फ्लावर हॉल को बनाया गया था, तब जमीन की कीमत 7 करोड़ रुपए तय की गई थी.
उस दौरान पूरा प्रोजेक्ट चालीस करोड़ रुपए का था. कंपनी ने चालाकी की और प्रोजेक्ट कॉस्ट बढ़ा दी, लेकिन लैंड वैल्यू नहीं बढ़ाई. लैंड राज्य सरकार की है, फिर राज्य सरकार को 1995 से इक्विटी के रूप में सालाना एक करोड़ रुपए मिलना तय हुआ था, लेकिन हाईकोर्ट में केस की जल्द सुनवाई नहीं होने से हिमाचल को 28 करोड़ रुपए की इक्विटी का नुकसान हुआ. अब सुखविंदर सरकार इस संपत्ति को वापस पाना चाहती है, लेकिन मामला हाईकोर्ट में आने के बाद अब परिस्थितियां जटिल हो गई हैं.
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