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MC Shimla Election: दिसंबर 1851 में अस्तित्व में आई शिमला नगर पालिका, 26 अगस्त 1855 में पहली बार हुए थे इलेक्शन

शिमला नगर निगम चुनाव 2 मई को होंगे,लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश की सबसे पुरानी नगर पालिकाओं में इसका नाम शुमार है. शिमला नगर पालिक 1851 में अस्तित्व में आई थी और पहली बार 26 अगस्त 1855 को चुनाव हुए. पढ़ें पूरी खबर...(Shimla Municipal Election 2023)

MC Shimla Election
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Published : Apr 14, 2023, 10:30 AM IST

शिमला: नगर पालिका शिमला तत्कालीन पंजाब की पहली और देश की पुरानी नगर पालिका में से एक है. शिमला नगर पालिका 1851 में अस्तित्व में आई. अंग्रेजों की जमाने की यह नगर पालिका 1970 में नगर निगम में बदली. इसके बाद लगातार इसके चुनाव होते रहे, लेकिन 1 साल पहले निर्धारित समय पर चुनाव न होने की वजह से यहां प्रशासक नियुक्त कर दिया गया. नगर निगम के इतिहास में यह पहली दफा है कि एक प्रशासक के अधीन चल रहे इस संस्थान के चुनाव करीब 11 माह के विलंब के बाद होंगे.

26 अगस्त 1855 में पहली बार हुए थे इलेक्शन
26 अगस्त 1855 में पहली बार हुए थे इलेक्शन

26 अगस्त 1855 में पहली बार चुनाव हुए: शिमला नगर पालिका 1850 के एक्ट 26 के प्रावधान के तहत 1851 में आई. आरंभ में इसके सदस्य नामित किए जाते थे, लेकिन 26 अगस्त 1855 में पहली बार इसके चुनाव हुए. 31 जुलाई 1871 में शिमला प्रथम श्रेणी नगर पालिका बनी. 1874 में यह पंजाब म्युनिसिपल एक्ट- 1873 के तहत लाई गई, लेकिन इसको लेकर ऑब्जेशन किए गए, इसके बाद पंजाब म्युनिस्पिल एक्ट 1884 के तहत इसका दो वार्डों- स्टेशन वार्ड और बाजार वार्ड में विभाजन किया गया.

आजादी के बाद शिमला नगर पालिका में 15 वार्ड में हुए थे चुनाव: आजादी के बाद शिमला नगर पालिका में चुनाव कराए गए, जिसके तहत 14 वार्डों में एक-एक मेंबर जबकि एक वार्ड के 2 मेंबर के लिए चुनाव कराए गए. शिमला सहित तत्कालीन नगर पालिकाओं में पहले द पंजाब म्युनिसिपल एक्ट-1911 लागू रहा. 1953 और 1960 के चुनाव भी इसी आधार पर करवाए गए. आबादी बढ़ने के साथ 1962 में शिमला के 19 वार्ड बनाए गए. इससे पहले इसमें चार सरकारी एडवाइजर नियुक्त किए गए ,जिसमें एक सिविल सर्जन, दो एग्जीक्यूटिव इंजीनियर और एक स्टेशन स्टाफ ऑफिसर शामिल था.

दिसंबर 1851 में अस्तित्व में आई शिमला नगर पालिका
दिसंबर 1851 में अस्तित्व में आई शिमला नगर पालिका

नगर पालिका शिमला के 1963 के चुनाव नहीं हुए: नगर पालिका शिमला के 1963 के चुनाव नहीं हुए और 1966 में पंजाब सरकार ने नगर पालिका को सुपरसीड कर दिया, लेकिन 1967 में कोर्ट के आर्डर के बाद नगर पालिका को बहाल कर दिया गया. इसके बाद हिमाचल में द हिमाचल प्रदेश म्युनिसिपल एक्ट-1968 बना. इस एक्ट के प्रावधानों के तहत तत्कालीन नगर पालिका अपने सदस्यों में से एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष निर्वाचित करती थी. अध्यक्ष और निर्वाचित संस्थान का कार्यकाल तीन वर्ष रहता था. इसके अतिरिक्त नगर पालिका को अपनी विशेष बैठक में मेडिकल ऑफिसर हेल्थ और इंजीनियर को नियुक्त करने का प्रावधान था.

एक सितंबर 1970 को नगर पालिका नगर निगम में बदली गई: प्रदेश सरकार ने एक सितंबर 1970 को शिमला नगर पालिका को बदलकर नगर निगम किया. 1968 के एक्ट के बाद प्रदेश एससी एक्ट 1979 बनाया गया, जिसकी मंजूरी राष्ट्रपति से 22 अगस्त 1980 को मिली. हालांकि 1986 तक नगर निगम के चुनाव नहीं हुए. इस दौरान पांच अलग-अलग प्रशासक नगर निगम का कार्य देखते रहे. 26 जून 1969 को अनंत पाल ( आईएएस ) को नगर पालिका का प्रशासक नियुक्त किया गया. इनके बाद आरके आनंद, सीएम चतुर्वेदी, अतर सिंह और एसएस सिद्धू प्रशासक के पद पर कार्यरत रहे.14 मई 1986 को नगर निगम के पहले चुनाव हुए. शिमला नगर निगम के पहले चुनाव 14 मई 1986 को करवाए गए. तब शिमला शहर के 21 वार्ड थे, जिसके लिए चुनाव करवाकर दो जून 1986 को नव निर्वाचित नगर निगम का गठन हुआ था. मई 1997 में तृतीय सदन के लिए वार्डों की संख्या 25 की गई.

2012 में पहली बार मेयर और डिप्टी मेयर चुनकर आए
2012 में पहली बार मेयर और डिप्टी मेयर चुनकर आए

2012 में पहली बार मेयर और डिप्टी मेयर के लिए करवाए गए सीधे चुनाव: साल 2012 में तत्कालीन सरकार ने नगर निगम के मेयर और डिप्टी मेयर के चुनाव प्रत्यक्ष तरीके से करवाने का फैसला लिया. यह पहली बार हुआ था कि नगर निगम में इन दो पदों के लिए प्रत्यक्ष चुनाव कराए गए. इससे पहले शहर के वार्डों से चुने हुए पार्षद मेयर और डिप्टी मेयर का चुनते थे. इस तरह बहुमत वाली पार्टियों के पार्षदों में से ही इन पदों पर चयनित होता था, लेकिन 2012 में अप्रत्यक्ष चुनाव करवाने पर पहली बार हुए माकपा के संजय चौहान ने मेयर और टिकेंद्र पंवर ने डिप्टी मेयर के पद पर जीत दर्ज की. 25 वार्डों के लिए कराए गए इन चुनावों में 12 बीजेपी, 10 कांग्रेस और 3 सीटों पर माकपा जीती थीं.

2017 में 34 वार्ड बनाकर चुनाव हुए: यह प्रत्यक्ष चुनाव पहली और आखिरी बार हुए हैं, इसके बाद अब इन दोनों पदों पर प्रत्यक्ष चुनाव न करवाकर अप्रत्यक्ष चुनाव करवाए जा रहे हैं. इसके बाद 2017 में 34 वार्ड बनाकर नगर निगम के चुनाव करवाए गए. हालांकि पूर्व की जयराम सरकार ने शहर के वार्डों की संख्या 34 से बढ़ाकर 41 कर दी थी, लेकिन मौजूदा सरकार ने इनकी संख्या फिर 34 कर दी. इस तरह अब 34 वार्डों के लिए चुनाव हो रहे हैं.

नगर निगम के इतिहास में पहली बार प्रशासक नियुक्त किया: नगर निगम शिमला के गठन के बाद पहली बार इसकी कमान एक प्रशासन के हाथ दी गई है. समय पर चुनाव न होने की वजह से सरकार को प्रशासक बैठाना पड़ा है. मौजूदा समय में डीसी शिमला को नगर निगम का प्रशासन नियुक्त किया गया है. पिछले 26 साल में यह पहली बार हुआ कि कि कोई प्रशासन नगर निगम को चला रहा है. इस तरह नगर निगम का कामकाज प्रशासक ही देख रहा है. मेयर, डिप्टी मेयर और पार्षद न होने से सभी फैसले प्रशासक को लेने पड़े हैं. चरित्र प्रमाण पत्र, बीपीएल सर्टिफिकेट के लिए सर्टिफिकेट, रेजिडेंस प्रूफ सहित अन्य तरह के प्रमाण पत्र जो पार्षदों की ओर से जारी किए जाते थे , ले भी अब वह निगम ऑफिस से ही लोगों को लेने पड़ रहे हैं. यही नहीं शहर के विकासात्मक कार्यों को जनप्रतिनिधियों की बजाए प्रशासन को ही अपने स्तर पर फैसले लेने पड़ रहे हैं.

18 जून 2022 को हो गया था कार्यकाल: बता दें कि कि नगर निगम शिमला का कार्यकाल 18 जून को पूरा हो गया था. इसके बाद चुनाव करवाने जाने थे ,लेकिन जयराम सरकार ने शिमला शहर के मौजूदा वार्डो की संख्या 34 से बढ़ाकर 41 कर दी. शहर के वार्डों के पुनर्सीमांकन को लेकर विवाद हो गया और यह मामला पहले हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा. हालांकि, इस बीच हिमाचल में सत्ता बदली और नई सरकार कांग्रेस ने पहले की तरह 34 वार्ड कर दिए. हालांकि, यह मामला फिर से कोर्ट चला गया है.

1870 से लेकर 1947 तक का बर्थ- डेथ रिकॉर्ड शिमला एमसी के पास: अंग्रेजों के समय का नगर निकाय होने के कारण शिमला नगर निगम के पास 1870 से लेकर 1947 तक का बर्थ-डेथ रिकॉर्ड मौजूद है. नगर निगम ने इसके रिकॉर्ड रजिस्टर को सेफ रखा है. नगर निगम की हेल्थ ब्रांच में करीब 152 साल पुराना जन्म-मृत्यु का रिकॉर्ड है. साल 1870 के बाद राजधानी शिमला में पैदा हुए ज्यादातर लोगों का रिकॉर्ड नगर निगम की फाइलों में दर्ज है. इसमें 1870 से 1947 तक के रिकॉर्ड में सैकड़ों ब्रिटिश लोगों के जन्म होने का भी रिकॉर्ड शामिल है. इसी तरह मरने वाले विदेशी लोगों का रिकार्ड भी यहां पर है. देश-विदेश के कई लोग निगम दफ्तर आकर अपने पूर्वजों का रिकॉर्ड लेते हैं.

देश की सबसे पुरानी नगर पालिकाओं में शामिल: नगर निगम के रिटायर्ड अधिकारी सुभाष वर्मा कहते हैं कि नगर निगम शिमला का अपना एक इतिहास रहा है. यह देश की सबसे पुरानी नगर पालिकाओं में से एक है. नगर निगम शिमला कई दौरों से गुजरा है. पहले यह नगर पालिका थी और 1970 को इसको नगर निगम बनाया गया. हालांकि ,जब तक यह नगर पालिका थी तो यह सही मायने में स्थानीय सरकार की तरह काम करती थी. नगर पालिका के पास शिमला शहर के पानी, बिजली का सारा काम था, इसके अला अलावा इसके अधीन फॉरेस्ट थे. शहर के स्कूल भी इसके अधीन चलते थे. इस तरह यह एक लोकल गवर्नमेंट की तरह काम करती थी ,लेकिन नगर निगम बनने के बाद इसमें बड़ा बदलाव आया. अब इसके बाद न फॉरेस्ट है न ही पानी की स्कीमें इसके अधीन है. स्कूल या अन्य संस्थान भी अब नगर निगम नहीं चला रहा. हालांकि ,यह सही है कि नगर निगम के तहत एरिया में स्मार्ट सिटी के तहत सड़कों की वाइडनिंग जरूर हुई है. मगर इसकी स्वायत्तता अब खत्म है.

नगर निगम के पास सेंट्रल डायरी सिस्टम: उनका कहना है कि नगर निगम शिमला के चुनाव पहली बार 1986 में कराए गए. लगातार शहर की जनसंख्या बढ़ने के के कारण नगर निगम का विस्तार भी हुआ है. पहले जहां इसके वार्डों की संख्या 25 थी जो कि अब बढ़कर 34 हो गई है. ऐतिहासिक होने के कारण यहां पर अंग्रेजों के जमाने के लोगों के जन्म और मृत्यु का रिकॉर्ड अभी भी मौजूद है. नगर निगम के पास सेंट्रल डायरी सिस्टम है जिसका नंबर बताकर कोई भी अपने परिवार के किसी व्यक्ति का जन्म और मृत्यु का रिकॉर्ड ले जा सकता है. इसी सिस्टम के चलते लोग आज भी अपने पूर्वजों के जन्म या मृत्यु का रिकॉर्ड लेने शिमला नगर निगम पहुंचते हैं.

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शिमला: नगर पालिका शिमला तत्कालीन पंजाब की पहली और देश की पुरानी नगर पालिका में से एक है. शिमला नगर पालिका 1851 में अस्तित्व में आई. अंग्रेजों की जमाने की यह नगर पालिका 1970 में नगर निगम में बदली. इसके बाद लगातार इसके चुनाव होते रहे, लेकिन 1 साल पहले निर्धारित समय पर चुनाव न होने की वजह से यहां प्रशासक नियुक्त कर दिया गया. नगर निगम के इतिहास में यह पहली दफा है कि एक प्रशासक के अधीन चल रहे इस संस्थान के चुनाव करीब 11 माह के विलंब के बाद होंगे.

26 अगस्त 1855 में पहली बार हुए थे इलेक्शन
26 अगस्त 1855 में पहली बार हुए थे इलेक्शन

26 अगस्त 1855 में पहली बार चुनाव हुए: शिमला नगर पालिका 1850 के एक्ट 26 के प्रावधान के तहत 1851 में आई. आरंभ में इसके सदस्य नामित किए जाते थे, लेकिन 26 अगस्त 1855 में पहली बार इसके चुनाव हुए. 31 जुलाई 1871 में शिमला प्रथम श्रेणी नगर पालिका बनी. 1874 में यह पंजाब म्युनिसिपल एक्ट- 1873 के तहत लाई गई, लेकिन इसको लेकर ऑब्जेशन किए गए, इसके बाद पंजाब म्युनिस्पिल एक्ट 1884 के तहत इसका दो वार्डों- स्टेशन वार्ड और बाजार वार्ड में विभाजन किया गया.

आजादी के बाद शिमला नगर पालिका में 15 वार्ड में हुए थे चुनाव: आजादी के बाद शिमला नगर पालिका में चुनाव कराए गए, जिसके तहत 14 वार्डों में एक-एक मेंबर जबकि एक वार्ड के 2 मेंबर के लिए चुनाव कराए गए. शिमला सहित तत्कालीन नगर पालिकाओं में पहले द पंजाब म्युनिसिपल एक्ट-1911 लागू रहा. 1953 और 1960 के चुनाव भी इसी आधार पर करवाए गए. आबादी बढ़ने के साथ 1962 में शिमला के 19 वार्ड बनाए गए. इससे पहले इसमें चार सरकारी एडवाइजर नियुक्त किए गए ,जिसमें एक सिविल सर्जन, दो एग्जीक्यूटिव इंजीनियर और एक स्टेशन स्टाफ ऑफिसर शामिल था.

दिसंबर 1851 में अस्तित्व में आई शिमला नगर पालिका
दिसंबर 1851 में अस्तित्व में आई शिमला नगर पालिका

नगर पालिका शिमला के 1963 के चुनाव नहीं हुए: नगर पालिका शिमला के 1963 के चुनाव नहीं हुए और 1966 में पंजाब सरकार ने नगर पालिका को सुपरसीड कर दिया, लेकिन 1967 में कोर्ट के आर्डर के बाद नगर पालिका को बहाल कर दिया गया. इसके बाद हिमाचल में द हिमाचल प्रदेश म्युनिसिपल एक्ट-1968 बना. इस एक्ट के प्रावधानों के तहत तत्कालीन नगर पालिका अपने सदस्यों में से एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष निर्वाचित करती थी. अध्यक्ष और निर्वाचित संस्थान का कार्यकाल तीन वर्ष रहता था. इसके अतिरिक्त नगर पालिका को अपनी विशेष बैठक में मेडिकल ऑफिसर हेल्थ और इंजीनियर को नियुक्त करने का प्रावधान था.

एक सितंबर 1970 को नगर पालिका नगर निगम में बदली गई: प्रदेश सरकार ने एक सितंबर 1970 को शिमला नगर पालिका को बदलकर नगर निगम किया. 1968 के एक्ट के बाद प्रदेश एससी एक्ट 1979 बनाया गया, जिसकी मंजूरी राष्ट्रपति से 22 अगस्त 1980 को मिली. हालांकि 1986 तक नगर निगम के चुनाव नहीं हुए. इस दौरान पांच अलग-अलग प्रशासक नगर निगम का कार्य देखते रहे. 26 जून 1969 को अनंत पाल ( आईएएस ) को नगर पालिका का प्रशासक नियुक्त किया गया. इनके बाद आरके आनंद, सीएम चतुर्वेदी, अतर सिंह और एसएस सिद्धू प्रशासक के पद पर कार्यरत रहे.14 मई 1986 को नगर निगम के पहले चुनाव हुए. शिमला नगर निगम के पहले चुनाव 14 मई 1986 को करवाए गए. तब शिमला शहर के 21 वार्ड थे, जिसके लिए चुनाव करवाकर दो जून 1986 को नव निर्वाचित नगर निगम का गठन हुआ था. मई 1997 में तृतीय सदन के लिए वार्डों की संख्या 25 की गई.

2012 में पहली बार मेयर और डिप्टी मेयर चुनकर आए
2012 में पहली बार मेयर और डिप्टी मेयर चुनकर आए

2012 में पहली बार मेयर और डिप्टी मेयर के लिए करवाए गए सीधे चुनाव: साल 2012 में तत्कालीन सरकार ने नगर निगम के मेयर और डिप्टी मेयर के चुनाव प्रत्यक्ष तरीके से करवाने का फैसला लिया. यह पहली बार हुआ था कि नगर निगम में इन दो पदों के लिए प्रत्यक्ष चुनाव कराए गए. इससे पहले शहर के वार्डों से चुने हुए पार्षद मेयर और डिप्टी मेयर का चुनते थे. इस तरह बहुमत वाली पार्टियों के पार्षदों में से ही इन पदों पर चयनित होता था, लेकिन 2012 में अप्रत्यक्ष चुनाव करवाने पर पहली बार हुए माकपा के संजय चौहान ने मेयर और टिकेंद्र पंवर ने डिप्टी मेयर के पद पर जीत दर्ज की. 25 वार्डों के लिए कराए गए इन चुनावों में 12 बीजेपी, 10 कांग्रेस और 3 सीटों पर माकपा जीती थीं.

2017 में 34 वार्ड बनाकर चुनाव हुए: यह प्रत्यक्ष चुनाव पहली और आखिरी बार हुए हैं, इसके बाद अब इन दोनों पदों पर प्रत्यक्ष चुनाव न करवाकर अप्रत्यक्ष चुनाव करवाए जा रहे हैं. इसके बाद 2017 में 34 वार्ड बनाकर नगर निगम के चुनाव करवाए गए. हालांकि पूर्व की जयराम सरकार ने शहर के वार्डों की संख्या 34 से बढ़ाकर 41 कर दी थी, लेकिन मौजूदा सरकार ने इनकी संख्या फिर 34 कर दी. इस तरह अब 34 वार्डों के लिए चुनाव हो रहे हैं.

नगर निगम के इतिहास में पहली बार प्रशासक नियुक्त किया: नगर निगम शिमला के गठन के बाद पहली बार इसकी कमान एक प्रशासन के हाथ दी गई है. समय पर चुनाव न होने की वजह से सरकार को प्रशासक बैठाना पड़ा है. मौजूदा समय में डीसी शिमला को नगर निगम का प्रशासन नियुक्त किया गया है. पिछले 26 साल में यह पहली बार हुआ कि कि कोई प्रशासन नगर निगम को चला रहा है. इस तरह नगर निगम का कामकाज प्रशासक ही देख रहा है. मेयर, डिप्टी मेयर और पार्षद न होने से सभी फैसले प्रशासक को लेने पड़े हैं. चरित्र प्रमाण पत्र, बीपीएल सर्टिफिकेट के लिए सर्टिफिकेट, रेजिडेंस प्रूफ सहित अन्य तरह के प्रमाण पत्र जो पार्षदों की ओर से जारी किए जाते थे , ले भी अब वह निगम ऑफिस से ही लोगों को लेने पड़ रहे हैं. यही नहीं शहर के विकासात्मक कार्यों को जनप्रतिनिधियों की बजाए प्रशासन को ही अपने स्तर पर फैसले लेने पड़ रहे हैं.

18 जून 2022 को हो गया था कार्यकाल: बता दें कि कि नगर निगम शिमला का कार्यकाल 18 जून को पूरा हो गया था. इसके बाद चुनाव करवाने जाने थे ,लेकिन जयराम सरकार ने शिमला शहर के मौजूदा वार्डो की संख्या 34 से बढ़ाकर 41 कर दी. शहर के वार्डों के पुनर्सीमांकन को लेकर विवाद हो गया और यह मामला पहले हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा. हालांकि, इस बीच हिमाचल में सत्ता बदली और नई सरकार कांग्रेस ने पहले की तरह 34 वार्ड कर दिए. हालांकि, यह मामला फिर से कोर्ट चला गया है.

1870 से लेकर 1947 तक का बर्थ- डेथ रिकॉर्ड शिमला एमसी के पास: अंग्रेजों के समय का नगर निकाय होने के कारण शिमला नगर निगम के पास 1870 से लेकर 1947 तक का बर्थ-डेथ रिकॉर्ड मौजूद है. नगर निगम ने इसके रिकॉर्ड रजिस्टर को सेफ रखा है. नगर निगम की हेल्थ ब्रांच में करीब 152 साल पुराना जन्म-मृत्यु का रिकॉर्ड है. साल 1870 के बाद राजधानी शिमला में पैदा हुए ज्यादातर लोगों का रिकॉर्ड नगर निगम की फाइलों में दर्ज है. इसमें 1870 से 1947 तक के रिकॉर्ड में सैकड़ों ब्रिटिश लोगों के जन्म होने का भी रिकॉर्ड शामिल है. इसी तरह मरने वाले विदेशी लोगों का रिकार्ड भी यहां पर है. देश-विदेश के कई लोग निगम दफ्तर आकर अपने पूर्वजों का रिकॉर्ड लेते हैं.

देश की सबसे पुरानी नगर पालिकाओं में शामिल: नगर निगम के रिटायर्ड अधिकारी सुभाष वर्मा कहते हैं कि नगर निगम शिमला का अपना एक इतिहास रहा है. यह देश की सबसे पुरानी नगर पालिकाओं में से एक है. नगर निगम शिमला कई दौरों से गुजरा है. पहले यह नगर पालिका थी और 1970 को इसको नगर निगम बनाया गया. हालांकि ,जब तक यह नगर पालिका थी तो यह सही मायने में स्थानीय सरकार की तरह काम करती थी. नगर पालिका के पास शिमला शहर के पानी, बिजली का सारा काम था, इसके अला अलावा इसके अधीन फॉरेस्ट थे. शहर के स्कूल भी इसके अधीन चलते थे. इस तरह यह एक लोकल गवर्नमेंट की तरह काम करती थी ,लेकिन नगर निगम बनने के बाद इसमें बड़ा बदलाव आया. अब इसके बाद न फॉरेस्ट है न ही पानी की स्कीमें इसके अधीन है. स्कूल या अन्य संस्थान भी अब नगर निगम नहीं चला रहा. हालांकि ,यह सही है कि नगर निगम के तहत एरिया में स्मार्ट सिटी के तहत सड़कों की वाइडनिंग जरूर हुई है. मगर इसकी स्वायत्तता अब खत्म है.

नगर निगम के पास सेंट्रल डायरी सिस्टम: उनका कहना है कि नगर निगम शिमला के चुनाव पहली बार 1986 में कराए गए. लगातार शहर की जनसंख्या बढ़ने के के कारण नगर निगम का विस्तार भी हुआ है. पहले जहां इसके वार्डों की संख्या 25 थी जो कि अब बढ़कर 34 हो गई है. ऐतिहासिक होने के कारण यहां पर अंग्रेजों के जमाने के लोगों के जन्म और मृत्यु का रिकॉर्ड अभी भी मौजूद है. नगर निगम के पास सेंट्रल डायरी सिस्टम है जिसका नंबर बताकर कोई भी अपने परिवार के किसी व्यक्ति का जन्म और मृत्यु का रिकॉर्ड ले जा सकता है. इसी सिस्टम के चलते लोग आज भी अपने पूर्वजों के जन्म या मृत्यु का रिकॉर्ड लेने शिमला नगर निगम पहुंचते हैं.

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