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Municipal Election Flashback 2012: पहली बार मेयर व डिप्टी मेयर के डायरेक्ट चुनाव, माकपा ने लाल रंग में रंग दिया था शिमला

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Published : Apr 12, 2023, 9:31 AM IST

शिमला नगर निगम चुनाव 2 मई को होगा. नतीजे 4 मई को आएंगे,लेकिन 2012 में जब पहली बार मेयर और डिप्टी मेयर का सीधा चुनाव हुआ तो माकपा ने कमाल दिखाया और मेयर ,डिप्टी मेयर बनकर शहर की सरकार पर कब्जा कर लिया. उस समय पहाड़ों की राजधानी मानों पूरे लाल रंग में रंग गई थी. आखिर भाजपा का दांव क्यों उल्टा पड़ा. पढ़ें पूरी खबर..

History of Shimla Municipal Corporation Election 2012
History of Shimla Municipal Corporation Election 2012

शिमला: नगर निगम शिमला देश के ऐतिहासिक और पुराने नगर निगमों में से एक है. यह समय नगर निगम चुनाव की सरगर्मियों और चर्चाओं का है. ऐसे में ये जानना रोचक है कि नगर निगम शिमला में मेयर तथा डिप्टी मेयर के चुनाव कब डायरेक्ट हुए थे और क्या परिणाम रहा था. ये इतिहास दिलचस्प है कि नगर निगम शिमला में केवल एक ही बार मेयर व डिप्टी मेयर का डायरेक्ट चुनाव हुआ था और वामपंथी दल माकपा ने दोनों सीटें जीत लीं.

शिमला नगर निगम चुनाव 2102 में माकपा ने जीत के बाद जुलूस निकाला
शिमला नगर निगम चुनाव 2102 में माकपा ने जीत के बाद जुलूस निकाला

2012 में मारी थी बाजी: ये चुनाव वर्ष 2012 का था तब हिमाचल में प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में भाजपा की सरकार थी. भाजपा सरकार ने निगम चुनाव में मेयर व डिप्टी मेयर का चुनाव डायरेक्ट करवाने का जुआ खेला. भाजपा को इस खेल में मात मिली. ये बात अलग है कि नगर निगम शिमला की सत्ता में काबिज होने के बाद भी माकपा को विधानसभा चुनाव में कोई सफलता नहीं मिली. आइए, जानते हैं कि आज से 11 साल पहले क्या परिस्थितियां थीं और कैसे माकपा ने बाजी मारी.

पहली बार मेयर व डिप्टी मेयर का चुनाव डायरेक्ट हुआ: वर्ष 2012 में तब हिमाचल के एक मात्र नगर निगम शिमला में पहली दफा मेयर व डिप्टी मेयर का चुनाव डायरेक्ट यानी सीधे हुआ. सीधे चुनाव करवाने का फैसला लेने के पीछे प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार की मंशा कांग्रेस की गुटबाजी का लाभ उठाकर उसे निगम की सत्ता से बाहर करने की थी. तब की परिस्थितियां ये थीं कि 26 साल से नगर निगम शिमला पर कांग्रेस का राज था. उस समय कांग्रेस भी खुश थी कि सीधे चुनाव का फैसला भाजपा पर भारी पड़ेगा.

साल 2012 में संजय चौहान मेयर और टिकेंद्र सिंह डिप्टी मेयर बने
साल 2012 में संजय चौहान मेयर और टिकेंद्र सिंह डिप्टी मेयर बने

माकपा चुपचाप काम करती रही: कांग्रेस का ख्याल था कि प्रचार के दौरान भ्रष्टाचार के मसले पर भाजपा को घेर कर वो आसानी से जनता का समर्थन हासिल कर लेगी. इन सब के बीच संसाधनों के लिहाज से कमोबेश भाजपा व कांग्रेस से कमजोर माकपा चुपचाप अपना काम करती रही. जनता से संवाद तो लगातार जारी था ही, माकपा दोनों दलों को एक ही सिक्के के दो पहलू बताकर दिन-रात नगर निगम चुनाव में मेयर व डिप्टी मेयर के चुनाव में प्रचार में डटी रही. मेयर के पद के लिए माकपा ने संजय चौहान व डिप्टी मेयर के पद के लिए टिकेंद्र सिंह पंवर को मैदान में उतारा था.

भाजपा का दांव उल्टा पड़ गया: भाजपा व कांग्रेस दोनों ही दल माकपा को कम आंक कर चल रहे थे, लेकिन मतदान का दिन आया तो दोनों प्रमुख दलों को मालूम पड़ गया कि बाजी पलट गई है. परिणाम से पूर्व की रात्रि में भाजपा व कांग्रेस के खेमे में संभावित हार को लेकर सन्नाटा सा पसरने लगा था. खुद भाजपा ने मन ही मन मान लिया था कि मेयर व डिप्टी मेयर के पद पर सीधे चुनाव करवाने का दाव उल्टा पड़ गया है.

शिमला रंग गया लाल रंग में: सोमवार 28 मई को पूर्वाह्न 11.50 बजे जब मतगणना स्थल डीसी ऑफिस शिमला से पुष्ट सूचना आई कि माकपा के मेयर पद के प्रत्याशी संजय चौहान रिकार्ड 7868 मतों से जीत गए हैं तो पूरा शिमला मानों लाल रंग में रंग गया. डिप्टी मेयर टिकेंद्र सिंह पंवर तो पहले ही जीत चुके थे. अब बारी थी जश्न की. खुशी के इस मौके में धारा 144 भी आड़े नहीं आई. प्रतिबंधित माल रोड से विजय जुलूस निकला तो हर कोई माकपा की जीत का चर्चा कर रहा था. यही नहीं, जीत के बाद जनता का धन्यवाद करने में भी माकपा पीछे नहीं रही. हर वार्ड में जाकर मतदाताओं से आशीर्वाद लिया गया. संजय चौहान ने भाजपा के मेयर पद के प्रत्याशी और विख्यात सर्जन डॉ. एसएस मिन्हास को पराजित किया तो डिप्टी मेयर टिकेंद्र सिंह ने भाजपा के दिग्विजय सिंह को हराया.

वार्डों में नहीं दिखा माकपा का कमाल: उस समय निगम की सत्ता में आने पर माकपा ने फैसला लिया कि मेयर की गाड़ी में लाल बत्ती नहीं लगेगी. खाना भी घर से लाया जाएगा न कि शिमला के आशियाना रेस्तरां से, जैसा कि पहले होता आया था. खैर, ये जिक्र करना जरूरी है कि तब बेशक मेयर व डिप्टी मेयर माकपा के बने, लेकिन वाड्र्स में माकपा को कोई खास सफलता नहीं मिली थी. पार्टी के पार्षद केवल तीन ही निर्वाचित हुए, लेकिन यह जानना दिलचस्प है कि जिस वार्ड में कांग्रेस अथवा भाजपा के पार्षद पद के प्रत्याशी जीते थे, वहां से मेयर व डिप्टी मेयर के पद के लिए माकपा को दोनों दलों से अधिक वोट मिले.

भाजपा के 12 कांग्रेस के 10 पार्षद बने: यानी वार्ड में बेशक भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों की जीत हुई थी, लेकिन मेयर व डिप्टी मेयर को लेकर जनता ने पूरा माकपा को ही पूरा समर्थन देने का मन बनाया था. उस चुनाव में भाजपा को कुल 12 वार्ड में सफलता मिली, कांग्रेस को 10 और माकपा को 3 वार्ड में जीत मिली थी. तब चुनावी विश्लेषक भी बताते थे कि माकपा की यह जीत महज स्थितियों की देन नहीं थी. इस जीत के पीछे आम जनता के दुख-दर्द में लगातार खड़े होने का फैक्टर शामिल था.

माकपा को विधानसभा चुनाव में नहीं मिला फायदा: शिमला शहर के कई जनहित के मसलों पर वामपंथी संघर्षरत रहे. नागरिक कल्याण सभा, किसान सभा, सीटू, एसएफआई ने समाज के अलग-अलग वर्ग की आवाज उठाई. माकपा को नगर निगम शिमला के चुनाव में बेशक ऐतिहासिक सफलता मिली, लेकिन वो उसका लाभ आने वाले विधानसभा चुनाव में नहीं उठा पाई. माकपा ने प्रदेश की एक दर्जन से अधिक सीटों पर प्रत्याशी उतारे, लेकिन एक भी विधायक नहीं चुना गया. अलबत्ता 2017 में जरूर माकपा की टिकट पर ठियोग से राकेश सिंघा ने चुनाव जीता था. सिंघा पूर्व में शिमला से विधायक रह चुके थे.

ये भी पढ़ें : MC Shimla Election 2023 शहर की सरकार बनाने की सुक्खू सरकार के सामने चुनौती, 10 सालों से कांग्रेस का कब्जा नहीं

शिमला: नगर निगम शिमला देश के ऐतिहासिक और पुराने नगर निगमों में से एक है. यह समय नगर निगम चुनाव की सरगर्मियों और चर्चाओं का है. ऐसे में ये जानना रोचक है कि नगर निगम शिमला में मेयर तथा डिप्टी मेयर के चुनाव कब डायरेक्ट हुए थे और क्या परिणाम रहा था. ये इतिहास दिलचस्प है कि नगर निगम शिमला में केवल एक ही बार मेयर व डिप्टी मेयर का डायरेक्ट चुनाव हुआ था और वामपंथी दल माकपा ने दोनों सीटें जीत लीं.

शिमला नगर निगम चुनाव 2102 में माकपा ने जीत के बाद जुलूस निकाला
शिमला नगर निगम चुनाव 2102 में माकपा ने जीत के बाद जुलूस निकाला

2012 में मारी थी बाजी: ये चुनाव वर्ष 2012 का था तब हिमाचल में प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में भाजपा की सरकार थी. भाजपा सरकार ने निगम चुनाव में मेयर व डिप्टी मेयर का चुनाव डायरेक्ट करवाने का जुआ खेला. भाजपा को इस खेल में मात मिली. ये बात अलग है कि नगर निगम शिमला की सत्ता में काबिज होने के बाद भी माकपा को विधानसभा चुनाव में कोई सफलता नहीं मिली. आइए, जानते हैं कि आज से 11 साल पहले क्या परिस्थितियां थीं और कैसे माकपा ने बाजी मारी.

पहली बार मेयर व डिप्टी मेयर का चुनाव डायरेक्ट हुआ: वर्ष 2012 में तब हिमाचल के एक मात्र नगर निगम शिमला में पहली दफा मेयर व डिप्टी मेयर का चुनाव डायरेक्ट यानी सीधे हुआ. सीधे चुनाव करवाने का फैसला लेने के पीछे प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार की मंशा कांग्रेस की गुटबाजी का लाभ उठाकर उसे निगम की सत्ता से बाहर करने की थी. तब की परिस्थितियां ये थीं कि 26 साल से नगर निगम शिमला पर कांग्रेस का राज था. उस समय कांग्रेस भी खुश थी कि सीधे चुनाव का फैसला भाजपा पर भारी पड़ेगा.

साल 2012 में संजय चौहान मेयर और टिकेंद्र सिंह डिप्टी मेयर बने
साल 2012 में संजय चौहान मेयर और टिकेंद्र सिंह डिप्टी मेयर बने

माकपा चुपचाप काम करती रही: कांग्रेस का ख्याल था कि प्रचार के दौरान भ्रष्टाचार के मसले पर भाजपा को घेर कर वो आसानी से जनता का समर्थन हासिल कर लेगी. इन सब के बीच संसाधनों के लिहाज से कमोबेश भाजपा व कांग्रेस से कमजोर माकपा चुपचाप अपना काम करती रही. जनता से संवाद तो लगातार जारी था ही, माकपा दोनों दलों को एक ही सिक्के के दो पहलू बताकर दिन-रात नगर निगम चुनाव में मेयर व डिप्टी मेयर के चुनाव में प्रचार में डटी रही. मेयर के पद के लिए माकपा ने संजय चौहान व डिप्टी मेयर के पद के लिए टिकेंद्र सिंह पंवर को मैदान में उतारा था.

भाजपा का दांव उल्टा पड़ गया: भाजपा व कांग्रेस दोनों ही दल माकपा को कम आंक कर चल रहे थे, लेकिन मतदान का दिन आया तो दोनों प्रमुख दलों को मालूम पड़ गया कि बाजी पलट गई है. परिणाम से पूर्व की रात्रि में भाजपा व कांग्रेस के खेमे में संभावित हार को लेकर सन्नाटा सा पसरने लगा था. खुद भाजपा ने मन ही मन मान लिया था कि मेयर व डिप्टी मेयर के पद पर सीधे चुनाव करवाने का दाव उल्टा पड़ गया है.

शिमला रंग गया लाल रंग में: सोमवार 28 मई को पूर्वाह्न 11.50 बजे जब मतगणना स्थल डीसी ऑफिस शिमला से पुष्ट सूचना आई कि माकपा के मेयर पद के प्रत्याशी संजय चौहान रिकार्ड 7868 मतों से जीत गए हैं तो पूरा शिमला मानों लाल रंग में रंग गया. डिप्टी मेयर टिकेंद्र सिंह पंवर तो पहले ही जीत चुके थे. अब बारी थी जश्न की. खुशी के इस मौके में धारा 144 भी आड़े नहीं आई. प्रतिबंधित माल रोड से विजय जुलूस निकला तो हर कोई माकपा की जीत का चर्चा कर रहा था. यही नहीं, जीत के बाद जनता का धन्यवाद करने में भी माकपा पीछे नहीं रही. हर वार्ड में जाकर मतदाताओं से आशीर्वाद लिया गया. संजय चौहान ने भाजपा के मेयर पद के प्रत्याशी और विख्यात सर्जन डॉ. एसएस मिन्हास को पराजित किया तो डिप्टी मेयर टिकेंद्र सिंह ने भाजपा के दिग्विजय सिंह को हराया.

वार्डों में नहीं दिखा माकपा का कमाल: उस समय निगम की सत्ता में आने पर माकपा ने फैसला लिया कि मेयर की गाड़ी में लाल बत्ती नहीं लगेगी. खाना भी घर से लाया जाएगा न कि शिमला के आशियाना रेस्तरां से, जैसा कि पहले होता आया था. खैर, ये जिक्र करना जरूरी है कि तब बेशक मेयर व डिप्टी मेयर माकपा के बने, लेकिन वाड्र्स में माकपा को कोई खास सफलता नहीं मिली थी. पार्टी के पार्षद केवल तीन ही निर्वाचित हुए, लेकिन यह जानना दिलचस्प है कि जिस वार्ड में कांग्रेस अथवा भाजपा के पार्षद पद के प्रत्याशी जीते थे, वहां से मेयर व डिप्टी मेयर के पद के लिए माकपा को दोनों दलों से अधिक वोट मिले.

भाजपा के 12 कांग्रेस के 10 पार्षद बने: यानी वार्ड में बेशक भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों की जीत हुई थी, लेकिन मेयर व डिप्टी मेयर को लेकर जनता ने पूरा माकपा को ही पूरा समर्थन देने का मन बनाया था. उस चुनाव में भाजपा को कुल 12 वार्ड में सफलता मिली, कांग्रेस को 10 और माकपा को 3 वार्ड में जीत मिली थी. तब चुनावी विश्लेषक भी बताते थे कि माकपा की यह जीत महज स्थितियों की देन नहीं थी. इस जीत के पीछे आम जनता के दुख-दर्द में लगातार खड़े होने का फैक्टर शामिल था.

माकपा को विधानसभा चुनाव में नहीं मिला फायदा: शिमला शहर के कई जनहित के मसलों पर वामपंथी संघर्षरत रहे. नागरिक कल्याण सभा, किसान सभा, सीटू, एसएफआई ने समाज के अलग-अलग वर्ग की आवाज उठाई. माकपा को नगर निगम शिमला के चुनाव में बेशक ऐतिहासिक सफलता मिली, लेकिन वो उसका लाभ आने वाले विधानसभा चुनाव में नहीं उठा पाई. माकपा ने प्रदेश की एक दर्जन से अधिक सीटों पर प्रत्याशी उतारे, लेकिन एक भी विधायक नहीं चुना गया. अलबत्ता 2017 में जरूर माकपा की टिकट पर ठियोग से राकेश सिंघा ने चुनाव जीता था. सिंघा पूर्व में शिमला से विधायक रह चुके थे.

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