शिमला: मतदान के बाद अब हिमाचल में भाजपा और कांग्रेस के नेता उत्सुकता से चुनाव परिणाम का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन वित्त विभाग के अफसरों को अलग ही चिंता ने घेरा हुआ है. ये चिंता कर्ज को लेकर है. आर्थिक रूप से बेहद जटिल परिस्थितियों में फंसे हिमाचल प्रदेश के पास कर्मचारियों को वेतन और पेंशनर्स को पेंशन देने के लिए भी पैसे नहीं होंगे. नई सरकार को सत्ता में आते ही सबसे पहला काम लोन यानी कर्ज लेने का करना होगा. यही नहीं, इससे भी खराब बात ये है कि लिए गए कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए भी कर्ज का ही सहारा है.(New government will take loan in Himachal)
हिमाचल की गाड़ी चलेगी कर्ज के सहारे: उधर, कांग्रेस ने वादा और दावा कर रखा है कि सत्ता में आते ही ओपीएस बहाल की जाएगी और महिलाओं को प्रति माह पंद्रह सौ रुपए दिए जाएंगे. यदि कांग्रेस सत्ता में आई तो उसके लिए ये वादे पूरे करना पहाड़ जैसी चुनौती होगी. वहीं, रिवाज बदला और फिर से भाजपा सत्ता में आई तो उसके लिए भी कर्मचारियों के वेतन के साथ एरियर की किश्तें और डीए आदि समय पर देना किसी बड़ी मुसीबत से कम नहीं होगा. कुल मिलाकर स्थिति ये है कि सत्ता में कोई भी आए, हिमाचल की गाड़ी कर्ज के सहारे ही चलेगी. (Himachal rising debt)
कर्ज के मकड़जाल में फंस रहा हिमाचल: उधर, कैग ने हिमाचल को एक दशक पहले ही चेतावनी दे दी थी कि राज्य कर्ज के मकडज़ाल में फंस रहा है. कैग ने टिप्पणी की थी कि हिमाचल इज अंडर डेब्ट ट्रैप. ऐसे में किसी भी दल को आने वाले पांच साल में खजाने को संभालना बड़ा कठिन होगा. आइए, देखते हैं कि हिमाचल प्रदेश की स्थिति इस समय क्या है. अभी वित्तीय वर्ष की अंतिम तिमाही यानी जनवरी-फरवरी-मार्च का समय चुनौतीपूर्ण है. (Himachal new government will take loan)
एक हजार करोड़ कर्ज लेना पड़ेगा: हिमाचल सरकार की इस वित्त वर्ष की लोन लिमिट 9700 करोड़ रुपए है, इसमें से 7000 करोड़ रुपए का कर्ज लिया जा चुका है. दिसंबर महीने में एक हजार करोड़ रुपए का कर्ज और लेना पड़ेगा. तब हिमाचल के पास लिमिट के अनुसार कुल 1700 करोड़ रुपए का कर्ज लेना बाकी रह जाएगा. यहां अंतिम तिमाही में 1700 करोड़ रुपए से किसी भी सरकार यानी न तो भाजपा और न ही कांग्रेस का काम निकलेगा. ऐसे में नई सरकार को सबसे पहले लोन लेने का काम करना होगा. फिर सरकार और वित्त विभाग के पास यही ऑप्शन है कि केंद्र सरकार के समक्ष लोन लिमिट बढ़ाने का आग्रह किया जाए. (Himachal will take one thousand crore loan)
अधिकतम 1500 करोड़ रुपए लोन लिमिट: आंकड़ों के अनुसार हिमाचल प्रदेश 9700 करोड़ की लोन लिमिट के साथ अन्य विकल्पों पर काम करे तो संभावित लोन प्रोजेक्शन करीब 11200 करोड़ रुपए होगी. इस पैसे में से 10786 करोड़ रुपए तो पुराने लोन को चुकाने के लिए ही खर्चने होंगे. वर्ष 2022 में 31 दिसंबर तक हिमाचल के पास केंद्र से 9700 करोड़ लोन लेने की अनुमति और इसमें से 2700 करोड़ अभी और लेना बाकी है. इस वित्तीय वर्ष की आखिरी तिमाही यानी जनवरी से लेकर मार्च की 31 तारीख तक अलग से एक लिमिट बनेगी. केंद्र सरकार हिमाचल को तीन महीने यानी अंतिम तिमाही के लिए अधिकतम 1500 करोड़ रुपए लोन लिमिट सेंक्शन करेगी.
जयराम सरकार का आखिरी बजट 51 हजार करोड का: ऐसे में मौजूदा वित्त वर्ष की कुल लोन राशि 11200 करोड़ हो जाएगी. हिमाचल प्रदेश में जयराम सरकार ने अपना आखिरी बजट 51 हजार करोड़ रुपए का पेश किया था. आंकड़ों पर नजर डालें तो उस बजट में 5136 करोड़ रुपए की रकम तो पुराने लोन का ब्याज चुकाने में खर्च हो गई. फिर 5650 करोड़ रुपए की रकम लोन की री-पेमेंट पर खर्च हुई. इस तरह 10786 करोड़ रुपए का लोन का ब्याज चुकाया गया. हिमाचल सरकार के खजाने पर इस बार नए वेतन आयोग की देनदारी का बोझ पड़ा है. अभी भी एरियर का 8000 करोड़ और डीए का करीबन दो हजार करोड़ रुपये मिलाकर कुल 10000 करोड़ की देनदारी कर्मचारियों व पेंशनर्स की है. (Jairam governmen last budget of 51 thousand crores)
फिजूलखर्ची पर भी अंकुश लगाना होगा: हिमाचल को अब तक रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट का पैसा बचाता आ रहा था. राज्य को हर महीने 950 करोड़ की रकम रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट के तौर पर केंद्र से मिल रही थी. आगामी समय में ये रकम निरंतर कम होती जाएगी. फिर जीएसटी कंपनसेशन का घाटा अलग से उठाना पड़ रहा है. इन परिस्थितियों में हिमाचल को सत्तर हजार करोड़ रुपए के कर्ज के पहाड़ को कम करना असंभव है. अलबत्ता केंद्र से कोई पैकेज मिल जाए तो कहा नहीं जा सकता, लेकिन उसके आसार कम हैं. पूर्व वित्त सचिव केआर भारती का कहना है कि जब तक हिमाचल प्रदेश पर्यटन, ऊर्जा और अन्य सेक्टर्स से रेवेन्यू जनरेट नहीं करता, ये हालात ऐसे ही रहेंगे. इसके अलावा फिजूलखर्ची पर भी अंकुश लगाना होगा.
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