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प्रदेश में पश्मीना उत्पाद को बढ़ावा दे रही सरकार: वीरेंद्र कंवर - Animal Husbandry Minister Virendra Kanwar

दुनिया भर में मशहूर पश्मीना शॉल को हिमाचल प्रदेश बढ़ावा दे रहा है. लगभग 90 प्रतिशत पश्मीना ऊन का उपयोग शॉल, स्टॉल और मफलर बनाने के लिए किया जाता है और 10 प्रतिशत का उपयोग ट्वीड के कोट जैसे अन्य उत्पाद बनाने में किया जाता है.

Animal Husbandry Minister Virendra Kanwar
पशुपालन मंत्री वीरेन्द्र कंवर
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Published : Jun 3, 2020, 11:04 PM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश सरकार राज्य में पश्मीना उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए निरंतर प्रयासरत है. राज्य में वर्तमान में एक हजार किलो ग्राम पश्मीना ऊन का उत्पादन हो रहा है और अगले पांच वर्षों में इसे दोगुना करने का लक्ष्य है.

पशुपालन मंत्री वीरेन्द्र कंवर ने कहा कि राज्य सरकार केंद्र प्रायोजित राष्ट्रीय पशुधन मिशन के तहत प्रदेश के बर्फीले क्षेत्रों के बीपीएल परिवारों को चंगथंगी और चिगू नस्लों की लगभग 638 बकरियों का वितरण करेगी. राष्ट्रीय पशुधन मिशन के तहत पश्मीना के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए लाहौल-स्पीति, पांगी घाटी और किन्नौर जिला के बीपीएल परिवारों को चंगथंगी बकरियों की 29 इकाइयों (प्रत्येक इकाई में 10 मादा, एक नर) और चिगू बकरी की 29 इकाइयों (10 मादा, एक नर) को वितरित किया जाएगा.

प्रत्येक इकाई के लिए सरकारी ऐजेंसियां लगभग सत्तर हजार रुपये खर्च करेगी. बकरियों की 90 प्रतिशत लागत केंद्रीय सरकार की ओर से वहन की जाएगी, जबकि राज्य सरकार और व्यक्तिगत लाभार्थी शेष दस प्रतिशत लागत को समान अनुपात में साझा करेंगे, इस प्रकार पांच-पांच प्रतिशत लागत राज्य सरकार और व्यक्तिगत लाभार्थियों दोनों द्वारा साझा की जाएगी.

बकरियों के वितरण की निविदा प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और इस वित्त वर्ष के दौरान लक्षित परिवारों को पशुधन वितरित किये जाएंगे. वर्तमान में मुख्य रूप से दारचा, योची, रारिक-चीका गांवों और लाहौल की मयार घाटी, स्पीति के हंगांग घाटी लांगजा क्षेत्र और किब्बर तथा जिला किन्नौर के नाको, नामग्या और लिओ गांव के अलावा चंबा जिला के पांगी घाटी के कुछ क्षेत्रों में पश्मीना का उत्पादन किया जाता है.

राज्य में लगभग दस संगठित शॉल निर्माण इकाइयां हैं, जो पश्मीना ऊन के उत्पाद बनाती हैं, जो शिमला जिला के रामपुर बुशहर, मंडी जिला के सुंदरनगर और मंडी, कुल्लू जिला के शमशी और हुरला तथा किन्नौर जिला के सांगला और रिकांगपिओ में स्थापित हैं.

लगभग 90 प्रतिशत पश्मीना ऊन का उपयोग शॉल, स्टॉल और मफलर बनाने के लिए किया जाता है और 10 प्रतिशत का उपयोग ट्वीड के कोट जैसे अन्य उत्पाद बनाने में किया जाता है. राज्य में पश्मीना ऊन उत्पादकों की ओर से मुख्य रूप से खुदरा बिक्री और निजी खरीद के माध्यम से बेची जाती है.

प्रदेश की सफेद और ग्रे रंग की पश्मीना ऊन का उपयोग मुख्य रूप से राज्य की संगठित शॉल निर्माण इकाइयों में किया जाता है. प्रदेश में पश्मीना उत्पादक अपनी ऊन की लाभकारी कीमत प्राप्त कर रहे हैं और वर्तमान में खरीददार एक किलो कच्ची पश्मीना ऊन के लिए 3500 रुपये प्रदान कर रहे हैं.

ऊन की अच्छी गुणवत्ता तथा अंतरराष्ट्रीय और घरेलू बाजार में पश्मीना उत्पादों की मांग बढ़ने के साथ इनके मूल्य में वृद्धि भी हो रही है. हिमाचल प्रदेश के हथकरघा क्षेत्र के संगठित और गैर संगठित क्षेत्र में लगभग 10 से 12 हजार बुनकर कार्य कर रहे हैं. हिमाचल प्रदेश में वर्तमान में बकरियों की संख्या लगभग 2500 है और प्रदेश सरकार इनकी संख्या बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है.

शिमला: हिमाचल प्रदेश सरकार राज्य में पश्मीना उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए निरंतर प्रयासरत है. राज्य में वर्तमान में एक हजार किलो ग्राम पश्मीना ऊन का उत्पादन हो रहा है और अगले पांच वर्षों में इसे दोगुना करने का लक्ष्य है.

पशुपालन मंत्री वीरेन्द्र कंवर ने कहा कि राज्य सरकार केंद्र प्रायोजित राष्ट्रीय पशुधन मिशन के तहत प्रदेश के बर्फीले क्षेत्रों के बीपीएल परिवारों को चंगथंगी और चिगू नस्लों की लगभग 638 बकरियों का वितरण करेगी. राष्ट्रीय पशुधन मिशन के तहत पश्मीना के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए लाहौल-स्पीति, पांगी घाटी और किन्नौर जिला के बीपीएल परिवारों को चंगथंगी बकरियों की 29 इकाइयों (प्रत्येक इकाई में 10 मादा, एक नर) और चिगू बकरी की 29 इकाइयों (10 मादा, एक नर) को वितरित किया जाएगा.

प्रत्येक इकाई के लिए सरकारी ऐजेंसियां लगभग सत्तर हजार रुपये खर्च करेगी. बकरियों की 90 प्रतिशत लागत केंद्रीय सरकार की ओर से वहन की जाएगी, जबकि राज्य सरकार और व्यक्तिगत लाभार्थी शेष दस प्रतिशत लागत को समान अनुपात में साझा करेंगे, इस प्रकार पांच-पांच प्रतिशत लागत राज्य सरकार और व्यक्तिगत लाभार्थियों दोनों द्वारा साझा की जाएगी.

बकरियों के वितरण की निविदा प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और इस वित्त वर्ष के दौरान लक्षित परिवारों को पशुधन वितरित किये जाएंगे. वर्तमान में मुख्य रूप से दारचा, योची, रारिक-चीका गांवों और लाहौल की मयार घाटी, स्पीति के हंगांग घाटी लांगजा क्षेत्र और किब्बर तथा जिला किन्नौर के नाको, नामग्या और लिओ गांव के अलावा चंबा जिला के पांगी घाटी के कुछ क्षेत्रों में पश्मीना का उत्पादन किया जाता है.

राज्य में लगभग दस संगठित शॉल निर्माण इकाइयां हैं, जो पश्मीना ऊन के उत्पाद बनाती हैं, जो शिमला जिला के रामपुर बुशहर, मंडी जिला के सुंदरनगर और मंडी, कुल्लू जिला के शमशी और हुरला तथा किन्नौर जिला के सांगला और रिकांगपिओ में स्थापित हैं.

लगभग 90 प्रतिशत पश्मीना ऊन का उपयोग शॉल, स्टॉल और मफलर बनाने के लिए किया जाता है और 10 प्रतिशत का उपयोग ट्वीड के कोट जैसे अन्य उत्पाद बनाने में किया जाता है. राज्य में पश्मीना ऊन उत्पादकों की ओर से मुख्य रूप से खुदरा बिक्री और निजी खरीद के माध्यम से बेची जाती है.

प्रदेश की सफेद और ग्रे रंग की पश्मीना ऊन का उपयोग मुख्य रूप से राज्य की संगठित शॉल निर्माण इकाइयों में किया जाता है. प्रदेश में पश्मीना उत्पादक अपनी ऊन की लाभकारी कीमत प्राप्त कर रहे हैं और वर्तमान में खरीददार एक किलो कच्ची पश्मीना ऊन के लिए 3500 रुपये प्रदान कर रहे हैं.

ऊन की अच्छी गुणवत्ता तथा अंतरराष्ट्रीय और घरेलू बाजार में पश्मीना उत्पादों की मांग बढ़ने के साथ इनके मूल्य में वृद्धि भी हो रही है. हिमाचल प्रदेश के हथकरघा क्षेत्र के संगठित और गैर संगठित क्षेत्र में लगभग 10 से 12 हजार बुनकर कार्य कर रहे हैं. हिमाचल प्रदेश में वर्तमान में बकरियों की संख्या लगभग 2500 है और प्रदेश सरकार इनकी संख्या बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है.

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