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Himachal High Court: अनुबंध सेवा को पेंशन के लिए गिने जाने के मामले में हाईकोर्ट का सुझाव, सरकार किसी की भी हो, आदर्श नियोक्ता की तरह करे व्यवहार - Himachal High Court on State govt

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने अनुबंध सेवा को पेंशन के लिए गिने जाने के मामले में सरकार को सुझाव दिया है. हाईकोर्ट ने सरकार किसी की भी हो, सरकार को हमेशा आदर्श नियोक्ता की तरह करे व्यवहार करना चाहिए. सरकार का हर परिस्थियों में कर्मचारियों के प्रति व्यवहार न्यायोचित होना चाहिए. (Himachal High Court).

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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Aug 26, 2023, 8:59 PM IST

शिमला: अनुबंध आधार पर दी गई सेवाओं को वेतन बढ़ोतरी व पेंशन के लिए गिने जाने के मामले में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को दो टूक सलाह दी है. अदालत ने कहा है कि सरकार चाहे किसी भी दल की क्यों न हो, उसका व्यवहार आदर्श नियोक्ता की तरह होना चाहिए. हाईकोर्ट ने आदर्श नियोक्ता वाला व्यवहार करने का सुझाव देते हुए कहा कि बेशक सत्ता परिवर्तन से नई सरकार बनी हो, हर परिस्थिति में कर्मचारियों के प्रति उसका व्यवहार न्यायोचित रहना बहुत जरूरी है.

हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर और न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र नेगी की खंडपीठ ने यह सलाह दी. खंडपीठ ने अनुबंध सेवा के लाभों की अदायगी से जुड़े मामले पर सरकार को निर्देश देने की मांग वाली याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार करते हुए यह टिप्पणी की. मामले के अनुसार दो याचिकाकर्ताओं में से एक को शुरू में अनुबंध के आधार पर जेबीटी के रूप में कार्य किया था और बाद में नियमित आधार पर पद बदलते हुए, उसे शास्त्री अध्यापक बनाया गया.

दूसरे याचिकाकर्ता को भी अनुबंध के आधार पर जेबीटी के रूप में नियुक्त किया गया था. फिर बाद में उसकी अनुबंध नियुक्ति के बाद बिना किसी रुकावट के उसी पद पर नियमित कर दिया गया. न्यायालय ने कहा कि जहां किसी कर्मचारी ने विभिन्न पदों पर अनुबंध के आधार पर सेवा की है और उसे किसी अन्य पद पर नियमित किया गया है, तो उसकी तदर्थ/कार्यकाल अवधि को केवल पेंशन के उद्देश्य के लिए गिना जाएगा. वहीं, अनुबंध के आधार पर नियुक्त कर्मचारी को बिना किसी रुकावट के उसी पद पर नियमित आधार पर तैनात किया जाता है, तो उसकी अनुबंध सेवा को वार्षिक वेतन वृद्धि के साथ-साथ पेंशन लाभ के लिए गिना जाना चाहिए.

हालांकि न्यायालय ने पाया कि कई मामलों में बार-बार टिप्पणियों और निर्देशों के बावजूद सरकार कर्मचारियों के वैध लाभों को देने से बचने के लिए एक उपकरण के रूप में शोषणकारी नीतियों को बनाने, अपनाने और प्रैक्टाइज करने में लगी हुई है. सरकार अस्थायी/तदर्थ नियुक्तियों की प्रथा को जारी रखने के लिए पद और योजना के नामकरण को बदलकर कर्मचारियों को वैध लाभ से वंचित करने का प्रयास करती है.

अदालत ने सरकार पर तंज कसते हुए टिप्पणी की है कि वो चतुर शब्दावली का प्रयोग कर पदों को स्वैच्छिक शिक्षकों, तदर्थ शिक्षकों, विद्या उपासकों, अनुबंध शिक्षकों, पैरा शिक्षकों, पीटीए और एसएमसी शिक्षकों के रूप में दिखाती है. ये सब चतुराई स्थाई नियुक्तियों से बचने के लिए की जाती है. तदर्थ/अस्थायी शिक्षकों की नियुक्ति करके और उन्हें नियमित कर्मचारियों को मिलने वाले सेवा लाभों से वंचित करना है. कोर्ट ने याचिका दायर करने से तीन साल पहले याचिकाकर्ताओं को वास्तविक वित्तीय लाभ देने का आदेश दिया. साथ ही याचिका दायर करने से तीन साल पहले के लाभों को काल्पनिक आधार पर दिए जाने के आदेश पारित किए.

ये भी पढ़ें: MLA हमीरपुर आशीष शर्मा की सिफारिश पर हुआ था तबादला, हाई कोर्ट ने रद्द किए आदेश

शिमला: अनुबंध आधार पर दी गई सेवाओं को वेतन बढ़ोतरी व पेंशन के लिए गिने जाने के मामले में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को दो टूक सलाह दी है. अदालत ने कहा है कि सरकार चाहे किसी भी दल की क्यों न हो, उसका व्यवहार आदर्श नियोक्ता की तरह होना चाहिए. हाईकोर्ट ने आदर्श नियोक्ता वाला व्यवहार करने का सुझाव देते हुए कहा कि बेशक सत्ता परिवर्तन से नई सरकार बनी हो, हर परिस्थिति में कर्मचारियों के प्रति उसका व्यवहार न्यायोचित रहना बहुत जरूरी है.

हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर और न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र नेगी की खंडपीठ ने यह सलाह दी. खंडपीठ ने अनुबंध सेवा के लाभों की अदायगी से जुड़े मामले पर सरकार को निर्देश देने की मांग वाली याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार करते हुए यह टिप्पणी की. मामले के अनुसार दो याचिकाकर्ताओं में से एक को शुरू में अनुबंध के आधार पर जेबीटी के रूप में कार्य किया था और बाद में नियमित आधार पर पद बदलते हुए, उसे शास्त्री अध्यापक बनाया गया.

दूसरे याचिकाकर्ता को भी अनुबंध के आधार पर जेबीटी के रूप में नियुक्त किया गया था. फिर बाद में उसकी अनुबंध नियुक्ति के बाद बिना किसी रुकावट के उसी पद पर नियमित कर दिया गया. न्यायालय ने कहा कि जहां किसी कर्मचारी ने विभिन्न पदों पर अनुबंध के आधार पर सेवा की है और उसे किसी अन्य पद पर नियमित किया गया है, तो उसकी तदर्थ/कार्यकाल अवधि को केवल पेंशन के उद्देश्य के लिए गिना जाएगा. वहीं, अनुबंध के आधार पर नियुक्त कर्मचारी को बिना किसी रुकावट के उसी पद पर नियमित आधार पर तैनात किया जाता है, तो उसकी अनुबंध सेवा को वार्षिक वेतन वृद्धि के साथ-साथ पेंशन लाभ के लिए गिना जाना चाहिए.

हालांकि न्यायालय ने पाया कि कई मामलों में बार-बार टिप्पणियों और निर्देशों के बावजूद सरकार कर्मचारियों के वैध लाभों को देने से बचने के लिए एक उपकरण के रूप में शोषणकारी नीतियों को बनाने, अपनाने और प्रैक्टाइज करने में लगी हुई है. सरकार अस्थायी/तदर्थ नियुक्तियों की प्रथा को जारी रखने के लिए पद और योजना के नामकरण को बदलकर कर्मचारियों को वैध लाभ से वंचित करने का प्रयास करती है.

अदालत ने सरकार पर तंज कसते हुए टिप्पणी की है कि वो चतुर शब्दावली का प्रयोग कर पदों को स्वैच्छिक शिक्षकों, तदर्थ शिक्षकों, विद्या उपासकों, अनुबंध शिक्षकों, पैरा शिक्षकों, पीटीए और एसएमसी शिक्षकों के रूप में दिखाती है. ये सब चतुराई स्थाई नियुक्तियों से बचने के लिए की जाती है. तदर्थ/अस्थायी शिक्षकों की नियुक्ति करके और उन्हें नियमित कर्मचारियों को मिलने वाले सेवा लाभों से वंचित करना है. कोर्ट ने याचिका दायर करने से तीन साल पहले याचिकाकर्ताओं को वास्तविक वित्तीय लाभ देने का आदेश दिया. साथ ही याचिका दायर करने से तीन साल पहले के लाभों को काल्पनिक आधार पर दिए जाने के आदेश पारित किए.

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