शिमला: अदालत के आदेश के बावजूद राज्य सरकार ने चंबा के मोटला गांव के लोगों की जमीनों पर मलबा फेंकने के दोषी ठेकेदार के खिलाफ कार्रवाई नहीं की. साथ ही लोक निर्माण विभाग के दोषी कर्मचारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई न होने पर भी हाईकोर्ट ने सख्त नाराजगी जताई है. मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव की अगुवाई वाली खंडपीठ ने इसे परेशान करने वाला पहलू बताया है. मलबा फेंकने वाले ठेकेदार पर एक्शन न होने को लेकर हाईकोर्ट ने कड़ा संज्ञान लिया.
हाईकोर्ट ने इस मामले में दोषी लोक निर्माण विभाग के कर्मचारियों की भूमिका का पता लगाने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया है. साथ ही आदेश जारी किए हैं कि दोष सिद्ध हो जाने पर सरकार कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की मंजूरी प्रदान करे. अदालत ने हैरानी जताई कि लोक निर्माण विभाग ने खुद ही मलबा उठवाने का खर्च 64 लाख रुपए आंका था. जब हाईकोर्ट ने पूरे मामले की स्टेट्स रिपोर्ट शपथ पत्र के जरिए तलब की तो नाटकीय तरीके से सरकार ने मलबा उठाने का खर्च 40 लाख रुपए बता दिया.
मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव व न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ कर रहे हैं. खंडपीठ ने चंबा जिला के मोटला गांव में पीडब्ल्यूडी के सरकारी ठेकेदार की तरफ से निर्माण कार्य का मलबा अवैध रूप से फेंका था. इस पर स्थानीय निवासी ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर न्याय की गुहार लगाई थी. अदालत ने हैरानी जताई कि जिस मलबे को हटाने की लागत 64 लाख रुपए आंकी गई है, उसके लिए दोषी ठेकेदार पर मात्र 11.50 लाख रुपए का जुर्माना किया गया. इसके पीछे का कोई कारण भी नहीं बताया गया. इतना ही नहीं जिस मलबे को हटाने की लागत पहले 64 लाख रुपए आंकी गई थी, सरकार से ताजा स्टेट्स रिपोर्ट मंगवाने के बाद नाटकीय ढंग से गिरावट के साथ 40 लाख रुपए बताई गई.
उल्लेखनीय है कि पिछली सुनवाई के दौरान अदालत ने दोषी ठेकेदार पर पर मात्र 5 लाख 81 हजार रुपए के जुर्माने पर असंतोष जताया था. तब अदालत को बताया गया था कि मलबा उठाने की लागत 64 लाख रुपए आंकी गई है और दोषी ठेकेदार पर 5.81 लाख रुपए जुर्माना किया गया है. हाईकोर्ट ने इस पर नाराजगी जताई थी और ताजा स्टेट्स रिपोर्ट तलब की थी. अदालत ने कहा था कि जब लोक निर्माण विभाग ने खुद ही ठेकेदार द्वारा अवैध ढंग से फेंके गए मलबे को हटाने का खर्चा 64 लाख रुपए से अधिक आंका है तो, इतना कम जुर्माना क्यों लगाया गया?
कोर्ट ने पीडब्ल्यूडी के दोषी अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई पर भी स्टेट्स रिपोर्ट में कोई जानकारी न देने को गंभीरता से लिया था. इस कारण कोर्ट ने सरकार को सोमवार 6 नवंबर तक मामले पर अनुपूरक शपथ पत्र दाखिल करने के आदेश दिए थे. ताजा स्टेट्स रिपोर्ट में पीडब्ल्यूडी ने दोषी कर्मियों के खिलाफ किसी कार्रवाई का ब्यौरा नहीं दिया था. इसे गंभीरता से लेते हुए खंडपीठ ने उपरोक्त आदेश जारी किए हैं. याचिकाकर्ता संजीवन सिंह की याचिका में आरोप लगाया गया है कि ठेकेदार और लोक निर्माण विभाग की लापरवाही की वजह से पूरे मोटला गांव में मलबा भर गया है. इससे कई घरों और गौशालाओं को भारी क्षति हुई है. अब मामले पर सुनवाई 27 दिसंबर को निर्धारित की गई है.
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