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हिमाचल हाई कोर्ट की अहम व्यवस्था, PMGSY के तहत उपयोग में लाई भूमि में मालिक को मुआवजे का हक

Himachal High Court News: हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने कहा है कि भू-मालिक की जमीन यदि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत उपयोग में लाई गई है तो वो मुआवजा पाने का हकदार है. ऐसा कोर्ट ने क्यों कहा पढ़ें ये खबर...

Himachal High Court News
हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट (फाइल फोटो).
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Published : May 1, 2023, 10:19 PM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने एक अहम व्यवस्था दी है. हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण व्यवस्था के तहत कहा है कि भू-मालिक की जमीन यदि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत उपयोग में लाई गई है तो वो मुआवजा पाने का हकदार है. हाई कोर्ट की इस व्यवस्था के पीएमजीएसवाई की सड़कों के निर्माण में उपयोग में आने वाली जमीन के मालिकों को बड़ी राहत मिली है. अपनी व्यवस्था में हाई कोर्ट ने ये स्पष्ट किया है कि पीएमजीएसवाई के तहत भूमि अधिग्रहण का मुआवजा पाने वाले प्रार्थियों को ये साबित करना होगा कि उन्होंने अपनी जमीन स्वेच्छा से या दान से अथवा स्वतंत्र रूप से अपनी इच्छा से एजेंसी को उपयोग करने के लिए नहीं दी है.

हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने राज्य सरकार की इस मामले से जुड़ी अपील को खारिज करते हुए उक्त व्यवस्था दी है. मामले के अनुसार शिमला जिले की तहसील चौपाल के अंतर्गत झिकनीपुल बामटा सड़क का निर्माण प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत किया गया था. इस सड़क के निर्माण में बरौला, बामटा और घुरिया गांव के किसानों की लगभग 130 बीघा भूमि का उपयोग किया गया था. केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित इस सड़क का निर्माण हिमाचल प्रदेश लोक निर्माण विभाग ने किया था.

सड़क निर्माण से पहले सरकार ने भूमि के अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू की थी. फिर वर्ष 2013 में नए सिरे से इस सड़क के निर्माण के लिए भू अधिग्रहण की कोशिश की गई. फिर भी निर्माण में कोई प्रगति न होते देखरकर प्रार्थी ग्रामीणों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर अपने अधिकारों की मांग की. इसके बाद सड़क का निर्माण तो हुआ परंतु ग्रामीणों को भू अधिग्रहण का मुआवजा नहीं दिया गया.

हाई कोर्ट की एकल पीठ ने संपति के अधिकार को संवैधानिक अधिकार करार देते हुए प्रार्थियों की मुआवजे को लेकर की गई मांग को जायज ठहराया. अदालत ने पाया कि प्रार्थियों ने न तो स्वयं अपनी मर्जी से उक्त सड़क का निर्माण किया और न ही उन्होंने सड़क निर्माण से पूर्व अपने अधिकारों का समर्पण यानी सरेंडर किया. हाई कोर्ट की एकल पीठ ने इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए प्रार्थियों की जमीन का कानून के अनुसार अधिग्रहण करने के आदेश दिए थे. सरकार ने एकल पीठ के इन आदेशों को खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी थी. अब हाई कोर्ट की खंडपीठ ने भी भूमि मालिकों को मुआवजा पाने का हकदार मानते हुए राज्य सरकार की अपील खारिज कर दी.

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शिमला: हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने एक अहम व्यवस्था दी है. हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण व्यवस्था के तहत कहा है कि भू-मालिक की जमीन यदि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत उपयोग में लाई गई है तो वो मुआवजा पाने का हकदार है. हाई कोर्ट की इस व्यवस्था के पीएमजीएसवाई की सड़कों के निर्माण में उपयोग में आने वाली जमीन के मालिकों को बड़ी राहत मिली है. अपनी व्यवस्था में हाई कोर्ट ने ये स्पष्ट किया है कि पीएमजीएसवाई के तहत भूमि अधिग्रहण का मुआवजा पाने वाले प्रार्थियों को ये साबित करना होगा कि उन्होंने अपनी जमीन स्वेच्छा से या दान से अथवा स्वतंत्र रूप से अपनी इच्छा से एजेंसी को उपयोग करने के लिए नहीं दी है.

हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने राज्य सरकार की इस मामले से जुड़ी अपील को खारिज करते हुए उक्त व्यवस्था दी है. मामले के अनुसार शिमला जिले की तहसील चौपाल के अंतर्गत झिकनीपुल बामटा सड़क का निर्माण प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत किया गया था. इस सड़क के निर्माण में बरौला, बामटा और घुरिया गांव के किसानों की लगभग 130 बीघा भूमि का उपयोग किया गया था. केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित इस सड़क का निर्माण हिमाचल प्रदेश लोक निर्माण विभाग ने किया था.

सड़क निर्माण से पहले सरकार ने भूमि के अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू की थी. फिर वर्ष 2013 में नए सिरे से इस सड़क के निर्माण के लिए भू अधिग्रहण की कोशिश की गई. फिर भी निर्माण में कोई प्रगति न होते देखरकर प्रार्थी ग्रामीणों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर अपने अधिकारों की मांग की. इसके बाद सड़क का निर्माण तो हुआ परंतु ग्रामीणों को भू अधिग्रहण का मुआवजा नहीं दिया गया.

हाई कोर्ट की एकल पीठ ने संपति के अधिकार को संवैधानिक अधिकार करार देते हुए प्रार्थियों की मुआवजे को लेकर की गई मांग को जायज ठहराया. अदालत ने पाया कि प्रार्थियों ने न तो स्वयं अपनी मर्जी से उक्त सड़क का निर्माण किया और न ही उन्होंने सड़क निर्माण से पूर्व अपने अधिकारों का समर्पण यानी सरेंडर किया. हाई कोर्ट की एकल पीठ ने इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए प्रार्थियों की जमीन का कानून के अनुसार अधिग्रहण करने के आदेश दिए थे. सरकार ने एकल पीठ के इन आदेशों को खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी थी. अब हाई कोर्ट की खंडपीठ ने भी भूमि मालिकों को मुआवजा पाने का हकदार मानते हुए राज्य सरकार की अपील खारिज कर दी.

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