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अदालत से जरूरी जानकारी छिपाना पड़ा महंगा, एक लाख कॉस्ट के साथ हाई कोर्ट ने खारिज की याचिका - हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट

अदालत से जरूरी जानकारी छिपाना एक याचिकाकर्ता को महंगा पड़ गया. हिमाचल हाई कोर्ट ने अदालत से आवश्यक जानकारी छिपाने पर याचिकाकर्ता पर एक लाख रुपए की कॉस्ट लगाते हुए याचिका को खारिज कर दिया है.

हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट
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Published : Apr 6, 2023, 8:23 PM IST

शिमला: अदालत से जरूरी जानकारी छिपाना याचिकाकर्ता को महंगा पड़ा है. हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग करने और अदालत से आवश्यक जानकारी छिपाने पर याचिकाकर्ता पर एक लाख रुपए की कॉस्ट लगाई है. साथ ही याचिका भी खारिज कर दी गई है. हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान व न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने पंकज शर्मा नामक व्यक्ति की याचिका खारिज करते हुए उस पर एक लाख रुपए की कॉस्ट लगाई है.

प्रार्थी पंकज शर्मा ने हिमाचल हाई कोर्ट के समक्ष एक याचिका दाखिल की थी. प्रार्थी ने अपनी याचिका में क्षेत्रीय अस्पताल बिलासपुर में दवाइयों की दुकान नंबर चार से संबंधित टेंडर को री-कॉल करने के लिए अदालत से गुहार लगाई थी. इसके अलावा प्रार्थी पंकज ने 13 जनवरी 2013 को जारी उन सरकारी आदेशों को भी रद्द करने की गुहार लगाई थी, जिसके तहत प्रार्थी को टेंडर प्रक्रिया के लिए अयोग्य घोषित किया गया था. साथ ही याचिका में प्रार्थी ने टेंडर को उसके पक्ष में अवार्ड करने के लिए भी न्यायालय से गुहार लगाई थी.

याचिका की सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि प्रतिवादी विभाग ने दवाई की दुकान के लिए टेंडर आमंत्रित किया था. प्रार्थी के अनुसार उसने 1,41,000 प्रति माह के हिसाब से किराया देने के लिए बिड दाखिल की थी. लेकिन बाद में प्रार्थी नेे 19 दिसंबर 2022 को प्रक्रिया से खुद को सरेंडर कर दिया था. चूंकि प्रार्थी ने 92,000 प्रति माह के हिसाब से किराया देने के लिए बिड दाखिल की थी इसलिए वह इस दुकान को किराए पर लेने का हक रखता है.

न्यायालय ने पाया कि प्रार्थी ने यह बताना जरूरी नहीं समझा कि हाईएस्ट बिडर और कोई नहीं बल्कि उसकी धर्मपत्नी थी. प्रार्थी की धर्मपत्नी एन आर हॉस्पिटल चंद्रपुर बिलासपुर में प्रबंध निदेशक के तौर पर कार्य कर रही है. वह इस षड्यंत्र में प्रार्थी के साथ शामिल थी और हर तरीके से टेंडर को कम किराए पर अपने पक्ष में करवाने के लिए उन्होंने इस तरह का हथकंडा अपनाया. खंडपीठ ने कहा कि ये कानून की नजरों में मान्य नहीं है. हाई कोर्ट ने इसे जालसाजी का मामला पाया और प्रार्थी पंकज शर्मा की याचिका को 1,00,000 रुपए की कॉस्ट के साथ खारिज कर दिया.

ये भी पढ़ें: कैग रिपोर्ट में खुलासा: गंदा पानी पीने को मजबूर हिमाचल की जनता, 6 साल में 12.94 लाख जल जनित रोगों के मामले आए सामने

शिमला: अदालत से जरूरी जानकारी छिपाना याचिकाकर्ता को महंगा पड़ा है. हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग करने और अदालत से आवश्यक जानकारी छिपाने पर याचिकाकर्ता पर एक लाख रुपए की कॉस्ट लगाई है. साथ ही याचिका भी खारिज कर दी गई है. हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान व न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने पंकज शर्मा नामक व्यक्ति की याचिका खारिज करते हुए उस पर एक लाख रुपए की कॉस्ट लगाई है.

प्रार्थी पंकज शर्मा ने हिमाचल हाई कोर्ट के समक्ष एक याचिका दाखिल की थी. प्रार्थी ने अपनी याचिका में क्षेत्रीय अस्पताल बिलासपुर में दवाइयों की दुकान नंबर चार से संबंधित टेंडर को री-कॉल करने के लिए अदालत से गुहार लगाई थी. इसके अलावा प्रार्थी पंकज ने 13 जनवरी 2013 को जारी उन सरकारी आदेशों को भी रद्द करने की गुहार लगाई थी, जिसके तहत प्रार्थी को टेंडर प्रक्रिया के लिए अयोग्य घोषित किया गया था. साथ ही याचिका में प्रार्थी ने टेंडर को उसके पक्ष में अवार्ड करने के लिए भी न्यायालय से गुहार लगाई थी.

याचिका की सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि प्रतिवादी विभाग ने दवाई की दुकान के लिए टेंडर आमंत्रित किया था. प्रार्थी के अनुसार उसने 1,41,000 प्रति माह के हिसाब से किराया देने के लिए बिड दाखिल की थी. लेकिन बाद में प्रार्थी नेे 19 दिसंबर 2022 को प्रक्रिया से खुद को सरेंडर कर दिया था. चूंकि प्रार्थी ने 92,000 प्रति माह के हिसाब से किराया देने के लिए बिड दाखिल की थी इसलिए वह इस दुकान को किराए पर लेने का हक रखता है.

न्यायालय ने पाया कि प्रार्थी ने यह बताना जरूरी नहीं समझा कि हाईएस्ट बिडर और कोई नहीं बल्कि उसकी धर्मपत्नी थी. प्रार्थी की धर्मपत्नी एन आर हॉस्पिटल चंद्रपुर बिलासपुर में प्रबंध निदेशक के तौर पर कार्य कर रही है. वह इस षड्यंत्र में प्रार्थी के साथ शामिल थी और हर तरीके से टेंडर को कम किराए पर अपने पक्ष में करवाने के लिए उन्होंने इस तरह का हथकंडा अपनाया. खंडपीठ ने कहा कि ये कानून की नजरों में मान्य नहीं है. हाई कोर्ट ने इसे जालसाजी का मामला पाया और प्रार्थी पंकज शर्मा की याचिका को 1,00,000 रुपए की कॉस्ट के साथ खारिज कर दिया.

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