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साक्षात्कार बोर्ड के खिलाफ याचिका खारिज, हाईकोर्ट ने कहा- यह हमारा क्षेत्राधिकार नहीं - हिमाचल हाईकोर्ट में सुनवाई

हाईकोर्ट ने साक्षात्कार बोर्ड के खिलाफ याचिका खारिज कर दी है. कोर्ट ने कहा नौकरी के लिए चयन समिति के ज्ञान की जगह खुद के विचारों को अहमियत देना अदालत के क्षेत्राधिकार में नहीं है. सदस्यों के निर्णय के स्थान पर कोर्ट का अपना निर्णय प्रतिस्थापित करना न्यायोचित नहीं है.

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Published : May 27, 2023, 8:54 PM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि चयन समिति के ज्ञान के स्थान पर अपने स्वयं के विचारों को प्रतिस्थापित करना अदालत के क्षेत्राधिकार में नहीं आता है. विजय कुमार पुरी की याचिका को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने यह निर्णय सुनाया. प्रार्थी ने प्रदेश विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर पद को भरने वाले साक्षात्कार बोर्ड के निर्णय को चुनौती दी थी. आरोप लगाया गया था कि प्रदेश विश्वविद्यालय ने विभिन्न धाराओं में सहायक प्रोफेसर के पदों विज्ञापित किया था.

प्रार्थी ने पूरी तरह से पात्र होने के नाते हिंदी विषय में सहायक प्रोफेसर के पद के लिए आवेदन किया. हर तरह से पात्र होने पर उसे साक्षात्कार के लिए बुलाया गया. साक्षात्कार बोर्ड ने उसकी योग्यता के आधार पर 80 में से 36.75 अंक दिए. दूसरी उम्मीदवार पूनम चौहान को 38.15 अंक दिए गए. यह भी आरोप लगाया गया कि प्रकाशन कार्य के लिए प्रार्थी को पांच में से सिर्फ 2.5 अंक दिए गए. जबकि प्रार्थी के प्रकाशन कार्य को देखते हुए उसे पूरे अंक दिए जाने चाहिए थे.
ये भी पढ़ें: NPA पर स्वास्थ्य मंत्री का बड़ा बयान, 'कई दफा जल्दबाजी में हो जाती हैं गलतियां'

कोर्ट ने मामले से जुड़े रिकॉड का अवलोकन में पाया कि बाकी अभ्यर्थियों को प्रकाशन कार्य के लिए कोई भी अंक नहीं दिए गए थे. कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि साक्षात्कार बोर्ड के सदस्य तकनीकी विशेषज्ञता और वास्तविक दिन-प्रतिदिन का समृद्ध अनुभव रखने वाले होते हैं. अदालत ने कहा बोर्ड के सदस्यों के निर्णय के स्थान पर कोर्ट का अपना निर्णय प्रतिस्थापित करना न्यायोचित नहीं है.

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि चयन समिति के ज्ञान के स्थान पर अपने स्वयं के विचारों को प्रतिस्थापित करना अदालत के क्षेत्राधिकार में नहीं आता है. विजय कुमार पुरी की याचिका को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने यह निर्णय सुनाया. प्रार्थी ने प्रदेश विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर पद को भरने वाले साक्षात्कार बोर्ड के निर्णय को चुनौती दी थी. आरोप लगाया गया था कि प्रदेश विश्वविद्यालय ने विभिन्न धाराओं में सहायक प्रोफेसर के पदों विज्ञापित किया था.

प्रार्थी ने पूरी तरह से पात्र होने के नाते हिंदी विषय में सहायक प्रोफेसर के पद के लिए आवेदन किया. हर तरह से पात्र होने पर उसे साक्षात्कार के लिए बुलाया गया. साक्षात्कार बोर्ड ने उसकी योग्यता के आधार पर 80 में से 36.75 अंक दिए. दूसरी उम्मीदवार पूनम चौहान को 38.15 अंक दिए गए. यह भी आरोप लगाया गया कि प्रकाशन कार्य के लिए प्रार्थी को पांच में से सिर्फ 2.5 अंक दिए गए. जबकि प्रार्थी के प्रकाशन कार्य को देखते हुए उसे पूरे अंक दिए जाने चाहिए थे.
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कोर्ट ने मामले से जुड़े रिकॉड का अवलोकन में पाया कि बाकी अभ्यर्थियों को प्रकाशन कार्य के लिए कोई भी अंक नहीं दिए गए थे. कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि साक्षात्कार बोर्ड के सदस्य तकनीकी विशेषज्ञता और वास्तविक दिन-प्रतिदिन का समृद्ध अनुभव रखने वाले होते हैं. अदालत ने कहा बोर्ड के सदस्यों के निर्णय के स्थान पर कोर्ट का अपना निर्णय प्रतिस्थापित करना न्यायोचित नहीं है.

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