शिमला: हिमाचल प्रदेश के मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना ने आपदा के बाद की जरूरतों के आकलन (पोस्ट डिजास्टर नीड्स असेसमेंट) और प्रदेश में आपदा प्रबंधन प्रणाली पर आयोजित बैठक में चर्चा की. बैठक की अध्यक्षता करते हुए मुख्य सचिव ने कहा कि हिमाचल में आई प्राकृतिक आपदा का आकलन कर प्रदेश सरकार डिजास्टर मैनेजमेंट सिस्टम को और ज्यादा मजबूत करने का काम कर रही है.
पोस्ट डिजास्टर नीड्स असेसमेंट क्यों है जरूरी? मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना ने कहा कि पोस्ट डिजास्टर नीड्स असेसमेंट, पोस्ट डिजास्टर फिजिकल एंड इकोनॉमिक रिहैबिलिटेशन की आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता करता है. प्रदेश में पोस्ट डिजास्टर नीड्स असेसमेंट के तहत दो चरणों में सामाजिक, इंफ्रास्ट्रक्चर और उत्पादन इत्यादि क्षेत्रों में हुए नुकसान का सटीक आकलन किया गया है. पोस्ट डिजास्टर नीड्स असेसमेंट के तहत प्रदेश में सड़कों, मकानों, कृषि, बागवानी, पर्यटन, स्वास्थ्य और ऊर्जा इत्यादि में हुए नुकसान की पूरी रिपोर्ट तैयार की गई है. प्रदेश के विभिन्न विभागों के फील्ड स्टाफ द्वारा आपदा से हुए भारी नुकसान का आकलन किया गया है.
फ्लड वार्निंग सिस्टम पर जोर: प्रबोध सक्सेना ने कहा कि प्रदेश में मौसम पूर्वानुमान के लिए अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी आधारित प्रणाली विकसित की जाएगी. उन्होंने कहा कि अमूल्य मानवीय जीवन बचाने के लिए शहरी क्षेत्रों में शहरी एवं नगर नियोजन अधिनियम के नियमों की पालना की जाएगी और योजनाबद्ध तरीकों से निर्माण कार्यों को बढ़ावा दिया जाएगा. प्रदेश में अनेक जल विद्युत परियोजनाएं स्थापित हैं. लोगों के जीवन और बांधों की सुरक्षा के दृष्टिगत फ्लड वार्निंग सिस्टम विकसित किया जाएगा, ताकि इससे होने वाले नुकसान को कम किया जा सके.
आपदा से बचने की लोगों को दी जाएगी ट्रेनिंग: मुख्य सचिव ने कहा कि आपदा संवेदनशील राज्य होने के मध्यनजर प्रदेश में ह्यूमन रिसोर्स विकसित करना बेहद जरूरी है. इसलिए पंचायत लेवल पर आपदा संबंधी क्षमता निर्माण कार्यों पर बल दिया जाएगा और ग्रामीण स्तर पर लोगों आपदा से निपटने के लिए ट्रेंड किया जाएगा. उन्होंने कहा कि आपदा प्रबंधन के लिए प्रदेश में रिसोर्स सेंटर और माउंटेन हेजार्ड यूनिट स्थापित करने की दिशा में काम किया जाएगा.
प्राकृतिक आपदा से बचाव के लिए रणनीति होगी तैयार! राष्ट्रीय आपदा प्राधिकरण के सदस्य किशन एस वत्स ने कहा कि राज्य में आपदा संबंधी घटनाओं के दृष्टिगत आपदा जोखिम में कमी और बुनियादी ढांचे के लिए प्रभावी रणनीतियों की पहचान की जानी चाहिए. लैंडस्लाइड, भूकंप एवं अन्य आपदा संबंधी सटीक योजनाएं तैयार की जानी चाहिए, ताकि जान-माल के नुकसान को कम किया जा सके.