शिमला: हिमाचल प्रदेश की सभी सरकारों के लिए घाटे के निगम और बोर्ड सिरदर्द रहे हैं. सरकार चाहे कांग्रेस की रही हो या फिर भाजपा की, कोई भी दल इस सिरदर्द का इलाज नहीं कर पाया है. हिमाचल प्रदेश में वैसे तो 22 निगम और बोर्ड हैं, लेकिन सबसे अधिक घाटे में राज्य बिजली बोर्ड और हिमाचल प्रदेश पथ परिवहन निगम यानी एचआरटीसी ही रहते हैं. इस समय भी राज्य बिजली बोर्ड करीब 1800 करोड़ रुपए के घाटे में चल रहा है.इसके अलावा हिमाचल प्रदेश पथ परिवहन निगम का घाटा 1600 करोड़ रुपए से अधिक का है.
दो उपक्रम 3400 करोड़ रुपए के घाटे में: अकेले दो ही उपक्रम 3400 करोड़ रुपए के घाटे में है. सत्ता में आने के बाद सुखविंदर सिंह सुक्खू ने व्यवस्था परिवर्तन का दावा किया है. ओपीएस की बहाली के लिए सुखविंदर सिंह सरकार ने पहली ही कैबिनेट में फैसला लिया और इसे अंजाम तक पहुंचाया है. यही नहीं, एग्रो इंडस्ट्रीज और एचपीएमसी यानी हिमाचल प्रदेश हार्टीकल्चर प्रोड्यूस मार्केटिंग एंड प्रोसेसिंग कॉरपोरेशन को मर्ज करके सुखविंदर सिंह सरकार ने बिल्ली की गले में घंटी बांधने की शुरुआत की है. हालांकि, हिमाचल में पहले भी घाटे के निगम और बोर्ड मर्ज करने की चर्चाएं होती रही हैं, लेकिन किसी सरकार ने ऐसा करने की हिम्मत नहीं जुटाई. कई बार पूर्व की सरकारों में हिमाचल पथ परिवहन निगम को विभाग बनाने की मांगें उठीं, लेकिन मामला अंजाम तक नहीं पहुंचा. अब सुखविंदर सिंह सरकार ने ये उम्मीद जगाई है कि घाटे के निगम और बोर्ड मर्ज किए जा सकते हैं.
हिमाचल में 22 में से 12 निगम व बोर्ड घाटे में: हिमाचल प्रदेश में कुल 22 निगम तथा बोर्ड हैं, जो भी सरकार सत्ता में आती है वो इनमें चेयरमैन और वाइस चेयरमैन नियुक्त करती है. चेयरमैन और वाइस चेयरमैन को गाड़ी तथा स्टाफ मिलता है. हर साल उनके मानदेय व टीए आदि पर लाखों रुपए खर्च होते हैं. हर सरकार में निगम और बोर्ड में नियुक्तियां विवादों में रहती हैं. सरकार चुनाव हारे हुए नेताओं को निगम व बोर्ड में एडजस्ट करती है. ऐसे में सरकार के खजाने पर दुगना बोझ पड़ता है. एक तो घाटे के निगम और बोर्ड, ऊपर से चेयरमैन तथा वाइस चेयरमैन का खर्च. प्रदेश में 22 निगम व बोर्ड हैं, इनमें से 12 घाटे में चल रहे हैं. सबसे अधिक घाटा बिजली बोर्ड व परिवहन निगम का है. आंकड़ों के अनुसार विगत दशकों में हिमाचल सरकार निगम व बोर्ड में तीन हजार करोड़ रुपए से अधिक की रकम पूंजी के तौर पर इनमें निवेश कर चुकी है. फिर भी ये निगम तथा बोर्ड करीब साढ़े चार हजार रुपए के नुकसान में हैं. आंकड़ों के अनुसार प्रदेश के इन 22 निगम तथा बोर्ड में अभी 28095 कर्मचारी सेवाएं दे रहे हैं. यदि कुछ समान काम वाले निगम व बोर्ड मर्ज कर दिए जाएं तो घाटा कम हो सकता है.
सस्ती बिजली के साथ सस्ती बस यात्रा: बिजली बोर्ड और परिवहन निगम राज्य की जनता को क्रमश: सस्ती बिजली व बस यात्रा की सुविधा देती है. बिजली यूनिट और बस यात्रा के लिए सब्सिडी दी जाती है. सब्सिडी की एवज में राज्य सरकार बिजली बोर्ड व परिवहन निगम को आर्थिक सहायता देती है. हिमाचल में इस समय महिला यात्रियों को बस किराए में पचास फीसदी छूट है. इससे एचआरटीसी को सालाना साठ करोड़ रुपए से अधिक का घाटा होता है. इसके अलावा रियायती दरों पर यात्रा के लिए अलग-अलग स्कीमें हैं. इसी तरह बिजली बोर्ड को सरकार हर महीने 200 करोड़ रुपए से अधिक की रकम सब्सिडी के एवज में मदद के रूप में देती है. इन दोनों के घाटे को पाटना सरकार के लिए कठिन है. बिजली बोर्ड व एचआरटीसी में करीब साढ़े इक्कीस हजार कर्मचारी हैं.
कैबिनेट ने मर्ज किए एग्रो इंडस्ट्री व एचपीएमसी: सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार ने हाल ही में कैबिनेट में घाटे के निगम व बोर्ड मर्ज करने की पहल की. शुरुआती कदम के तौर पर हिमाचल प्रदेश स्टेट एग्रो इंडस्ट्रीज कॉरपोरेशन को एचपीएमसी में मर्ज कर दिया गया. एग्रो इंडस्ट्रीज कारपोरेशन करीब 14 करोड़ रुपए के नुकसान में थी. सरकार का अगला कदम अब उद्योग विभाग के तहत चल रहे हिमाचल प्रदेश स्टेट फाइनेंशियल कॉरपोरेशन को मर्ज करने का है. ये निगम करीब पौने दो सौ करोड़ के नुकसान में है. राज्य वित्त निगम में केवल 14 कर्मचारी हैं. मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू का कहना है कि व्यवस्था परिवर्तन महज बातों से नहीं कामों से दर्शाया जाएगा. सरकार ने ओपीएस का वादा पूरा किया है. पहले बजट में नयापन दिखेगा और साथ ही व्यवस्था परिवर्तन के अगले संकेत भी होंगे.
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