शिमला: हिमाचल प्रदेश में बागवान नई किस्म के सेब तैयार कर रहे हैं. पारंपरिक रॉयल किस्म की सेब की जगह बागवान अब सेब की नई किस्मों की पैदावार कर रहे हैं. इनमें एक किस्म गाला सेब की है. यह अर्ली किस्म का सेब है, जिसके बागवानों को अच्छे दाम मिल रहे हैं. लुधियाना की मंडी में इस सेब को खरीदने के लिए होड़ लगी है. यहां गाला किस्म का सेब 250 रुपए प्रति किलो तक बिका है. इस तरह आपदा में अबकी बार इस सेब ने बागवानों को मालामाल किया है.
गाला सेब की रिकॉर्ड बिक्री: हिमाचल प्रदेश में प्रोग्रेसिव बागवान गाला किस्म का सेब तैयार कर रहे हैं. यह किस्म सेल्फ पॉलिनाइजर है. यानी इसके लिए किसी दूसरे के पोलिनेशन की जरूरत नहीं होती. यही वजह है कि बागवान इस किस्म की सेब को उगा रहे हैं. वहीं, इस सेब से बागवानों को काफी लाभ भी पहुंचा है. इस बार गाला सेब 250 रुपए प्रति किलो तक बिका है, जो कि रिकार्ड बिक्री है.
मंडियों में गाला सेब की डिमांड: कोटखाई के प्रोग्रेसिव बागवान संजीव चौहान ने अपना गाला सेब लुधियाना की मार्केट में बेचा. जहां पर इसके 250 रुपए किलो के दाम मिले हैं. यह अब तक का सबसे ज्यादा दाम है. संजीव चौहान ने बताया कि फैनजम और टीरेक्स गाला रिकार्ड रेट में बिका है. वह 5 किलो की छोटी पैकिंग को मार्केट ले गए थे. इसके 250 रुपए प्रति किलो के दाम मिले हैं. अगर पेटी के हिसाब से देखा जाए तो इसके 6275 रुपए प्रति पेटी के दाम बनते हैं. इस सेब का अच्छा साइज, रंग और पैकिंग भी शानदार थी. संजीव ने बताया कि उनका ये सेब बिल्कुल फ्रेश था और छोटी पैकिंग में यह मंडी में सेफ भी पहुंचाया गया.
आमतौर पर दाम 150 से 180 रुपए तक: गाला सेब के दाम आमतौर पर औसतन 150 से 180 रुपए तक रहते हैं. हालांकि इस बार गाला सेब के दाम 180 से 220 रुपए प्रति किलो तक भी बागवानों को मिले हैं, लेकिन कोटखाई गाला सेब ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. इसकी एक वजह सेब की कम फसल भी है. वहीं, अगस्त में मंडियों में गाला की आमद बहुत कम है, इसलिए भी इस सेब के अच्छे रेट मिल रहे हैं.
जुलाई से मंडियों में पहुंचने लगता है यह सेब: गाला किस्म का सेब अर्ली किस्म का सेब है. जिसकी फसल जुलाई माह में मंडियों में आने लगती है. 15 जुलाई से 20 जुलाई में इसकी फसल तैयार होकर मंडियों में पहुंचने लगती है. इस समय रॉयल और अन्य किस्म के सेब मंडियों में नहीं आते हैं. केवल टाइडमैन सेब ही मार्केट में आता है. इसके अलावा स्पर सेब की दूसरी किस्में भी आती हैं. ये भी एक कारण है कि शुरुआत में गाला सेब के अच्छे दाम मिलते हैं. मगर यहां खास बात ये है कि कोटखाई के गाला सेब को यह ज्यादा दाम उस समय में मिला है, जब रॉयल सेब पहले ही मंडियों में पहुंच रहा है.
कम चिलिंग ऑवर की जरूरत: गाला सेब की खास बात ये है कि ये जल्दी तैयार होता है. वहीं, इस वैरायटी की खासियत है कि इसे महज 600 से 800 घंटे चिलिंग ऑवर की जरूरत रहती है. जबकि रॉयल किस्म के सेब को 1400 से 1600 घंटे चिलिंग ऑवर चाहिए. यह भी पाया गया है कि गाला वैरायटी पथरीली जमीन और तेज धूप वाली जगहों पर भी कामयाब है. इसलिए अपेक्षाकृत निचले क्षेत्रों में भी सेब की गाला वैरायटी का उत्पादन संभव है. गाला किस्म सेब की सबसे अच्छी किस्मों में से एक है, जिसकी मांग बहुत अधिक रहती है.
लगातार फसल देने की क्षमता: गाला किस्म का सेब सेल्फ पॉलिनाइजर किस्म का है. इसलिए कभी भी इसकी फसल नहीं टूटती है. इसके विपरीत रॉयल डिलीशियस सेब को गोल्डन, रेड गोल्डन आदि पॉलिनाइजर की जरूरत रहती है. ऐसे में अगर पॉलिनाइजर में फूल कम हो या इसकी टाइमिंग आगे पीछे हो, तो इसका असर रॉयल पर पड़ता है. इससे फसल टूटने का खतरा लगातार बना रहता है. यही नहीं इसमें रॉयल डिलीशियस के मुकाबले गाला में बीमारियों का खतरा भी कम रहता है.
अर्ली वैरायटी का है गाला सेब: कोटखाई के प्रोग्रेसिव बागवान संजीव चौहान का कहना है कि उनकी पांच किलो की गाला की पैकिंग लुधियाना में बहुत ही अच्छे दामों पर बिकी है. मार्केट में 250 रुपए प्रति किलो के हिसाब से उनका सेब बिका है. उनका कहना है कि यह अर्ली वैरायटी है. रॉयल के आने से पहले यह फसल तैयार हो जाती है. यही वजह है कि इसके दाम भी अच्छे मिलते हैं. हालांकि उनके गाला किस्म के सेब की इस बार रिकार्ड बिक्री रही है.