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हिमाचल में वाटर सेस लागू करने का विरोध, HC एक साथ करेगा सभी याचिकाओं की सुनवाई

सुक्खू सरकार के वाटर सेस वसूलने के फैसले के खिलाफ याचिका पर हाई कोर्ट अब सभी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करेगी. मामले में अगली सुनवाई अब 30 मई को होगी.

Oppose of water cess implementation in Himachal
हिमाचल हाई कोर्ट (फाइल फोटो).
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Published : May 24, 2023, 10:49 PM IST

शिमला: हिमाचल की नदियों पर स्थापित हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स से वाटर सेस वसूलने के सुखविंदर सिंह सरकार के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार के उपक्रमों और प्राइवेट कंपनियों ने हाई कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की हैं. हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान एवं न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने बुधवार को इस मामले की सुनवाई के बाद फैसला लिया कि अब इस संदर्भ में दाखिल की गई सभी याचिकाओं की सुनवाई एक साथ ही होगी.

अब हाई कोर्ट ने इस मामले में अलग-अलग दाखिल की गई याचिकाओं को एक साथ सुनने का निर्णय लिया है. खंडपीठ ने अब 30 मई को आगामी सुनवाई तय की है. उल्लेखनीय है कि एनटीपीसी यानी नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन, बीबीएमबी यानी भाखड़ा-ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड, एनएचपीसी यानी नेशनल हाइड्रो पावर कारपोरेशन व एसजेएनवीएल यानी सतलुज जलविद्युत निगम लिमिटेड ने अलग-अलग याचिकाएं दाखिल कर वाटर सेस का विरोध किया है.

इस पर हाई कोर्ट ने सभी याचिकाओं को एक साथ सुनने का निर्णय लिया. कुछ निजी पावर प्रोजेक्ट कंपनियों ने भी वाटर सेस लागू करने के फैसले को चुनौती दी है. हिमाचल सरकार ने इसी बजट सेशन में वाटर सेस से संबंधित विधेयक पारित किया है. विधेयक पारित होने के बाद से पंजाब व हरियाणा ने भी इस फैसले पर आपत्ति जताते हुए अपनी-अपनी विधानसभाओं में इसके खिलाफ संकल्प प्रस्ताव पारित किया है. वहीं, केंद्र सरकार के एक पत्र के बाद हिमाचल सरकार की चिंता बढ़ गई है.

केंद्र ने अपने पत्र में स्पष्ट किया है कि जलविद्युत कंपनियां इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील करें. वहीं, हिमाचल सरकार का तर्क है कि प्रदेश की नदियों में बहते जल पर राज्य सरकार के जल शक्ति विभाग का हक बनता है. इस हक के तहत राज्य सरकार वाटर सेस लगा सकती है. वहीं, कंपनियों ने भी याचिका में अपने तर्क देकर इसे संविधान के खिलाफ बताया है. फिलहाल, बुधवार को सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने पाया कि सभी कंपनियों ने हिमाचल प्रदेश वाटर सेस अधिनियम को चुनौती दी है. इनमें से प्रमुख दो कंपनियों ने अधिनियम को असंवैधानिक करार दिए जाने की गुहार लगाई है.

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली खंडपीठ ने फैसला लिया कि इस पर एक साथ 30 मई को सुनवाई की जाएगी. एनटीपीसी, बीबीएमबी, एनएचपीसी और एसजेवीएनएल ने अपनी याचिकाओं में दलील दी है कि केंद्र और राज्य सरकार के साथ अनुबंध के आधार पर कंपनियां राज्य को 12 से 15 फीसदी बिजली निशुल्क देती हैं. इस स्थिति में हिमाचल प्रदेश वाटर सेस अधिनियम के तहत कंपनियों से सेस वसूलने का प्रावधान संविधान के अनुरूप नहीं है.

अदालत को बताया गया कि 25 अप्रैल 2023 को केंद्र सरकार ने पाया कि कुछ राज्य भारत सरकार के उपक्रमों पर वाटर सेस वसूल रहे हैं अथवा वसूलने की प्रक्रिया शुरू कर चुके हैं. इस पर केंद्र सरकार ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को हिदायत दी थी कि ऐसे उपक्रमों से वाटर सेस न वसूला जाए. याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि इसके बावजूद राज्य सरकार उपरोक्त निर्देशों की अनुपालना नहीं कर रही है.

इससे पहले प्रदेश में निजी जल विद्युत कंपनियों ने भी हिमाचल प्रदेश वाटर सेस अधिनियम को चुनौती दी है. निजी जल विद्युत कंपनियों ने आरोप लगाया गया है कि पनबिजली परियोजना पर वाटर सेस लगाया जाना संविधान के प्रावधानों के खिलाफ है. मामले की सुनवाई अब 30 मई को होगी.

ये भी पढ़ें: Bijli Mahadev Ropeway: विरोध में उतरे खराहल-कशावरी के लोग, बोले: 'देवता का आदेश, नहीं बनेगा रोपवे'

शिमला: हिमाचल की नदियों पर स्थापित हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स से वाटर सेस वसूलने के सुखविंदर सिंह सरकार के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार के उपक्रमों और प्राइवेट कंपनियों ने हाई कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की हैं. हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान एवं न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने बुधवार को इस मामले की सुनवाई के बाद फैसला लिया कि अब इस संदर्भ में दाखिल की गई सभी याचिकाओं की सुनवाई एक साथ ही होगी.

अब हाई कोर्ट ने इस मामले में अलग-अलग दाखिल की गई याचिकाओं को एक साथ सुनने का निर्णय लिया है. खंडपीठ ने अब 30 मई को आगामी सुनवाई तय की है. उल्लेखनीय है कि एनटीपीसी यानी नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन, बीबीएमबी यानी भाखड़ा-ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड, एनएचपीसी यानी नेशनल हाइड्रो पावर कारपोरेशन व एसजेएनवीएल यानी सतलुज जलविद्युत निगम लिमिटेड ने अलग-अलग याचिकाएं दाखिल कर वाटर सेस का विरोध किया है.

इस पर हाई कोर्ट ने सभी याचिकाओं को एक साथ सुनने का निर्णय लिया. कुछ निजी पावर प्रोजेक्ट कंपनियों ने भी वाटर सेस लागू करने के फैसले को चुनौती दी है. हिमाचल सरकार ने इसी बजट सेशन में वाटर सेस से संबंधित विधेयक पारित किया है. विधेयक पारित होने के बाद से पंजाब व हरियाणा ने भी इस फैसले पर आपत्ति जताते हुए अपनी-अपनी विधानसभाओं में इसके खिलाफ संकल्प प्रस्ताव पारित किया है. वहीं, केंद्र सरकार के एक पत्र के बाद हिमाचल सरकार की चिंता बढ़ गई है.

केंद्र ने अपने पत्र में स्पष्ट किया है कि जलविद्युत कंपनियां इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील करें. वहीं, हिमाचल सरकार का तर्क है कि प्रदेश की नदियों में बहते जल पर राज्य सरकार के जल शक्ति विभाग का हक बनता है. इस हक के तहत राज्य सरकार वाटर सेस लगा सकती है. वहीं, कंपनियों ने भी याचिका में अपने तर्क देकर इसे संविधान के खिलाफ बताया है. फिलहाल, बुधवार को सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने पाया कि सभी कंपनियों ने हिमाचल प्रदेश वाटर सेस अधिनियम को चुनौती दी है. इनमें से प्रमुख दो कंपनियों ने अधिनियम को असंवैधानिक करार दिए जाने की गुहार लगाई है.

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली खंडपीठ ने फैसला लिया कि इस पर एक साथ 30 मई को सुनवाई की जाएगी. एनटीपीसी, बीबीएमबी, एनएचपीसी और एसजेवीएनएल ने अपनी याचिकाओं में दलील दी है कि केंद्र और राज्य सरकार के साथ अनुबंध के आधार पर कंपनियां राज्य को 12 से 15 फीसदी बिजली निशुल्क देती हैं. इस स्थिति में हिमाचल प्रदेश वाटर सेस अधिनियम के तहत कंपनियों से सेस वसूलने का प्रावधान संविधान के अनुरूप नहीं है.

अदालत को बताया गया कि 25 अप्रैल 2023 को केंद्र सरकार ने पाया कि कुछ राज्य भारत सरकार के उपक्रमों पर वाटर सेस वसूल रहे हैं अथवा वसूलने की प्रक्रिया शुरू कर चुके हैं. इस पर केंद्र सरकार ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को हिदायत दी थी कि ऐसे उपक्रमों से वाटर सेस न वसूला जाए. याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि इसके बावजूद राज्य सरकार उपरोक्त निर्देशों की अनुपालना नहीं कर रही है.

इससे पहले प्रदेश में निजी जल विद्युत कंपनियों ने भी हिमाचल प्रदेश वाटर सेस अधिनियम को चुनौती दी है. निजी जल विद्युत कंपनियों ने आरोप लगाया गया है कि पनबिजली परियोजना पर वाटर सेस लगाया जाना संविधान के प्रावधानों के खिलाफ है. मामले की सुनवाई अब 30 मई को होगी.

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