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Himachal High Court: सरकार नियुक्तियों को कभी भी रद्द कर सकती है, जानें क्या था मामला - अनुसूचित जाति आयोग अध्यक्ष को हटाने का मामला

हिमाचल हाईकोर्ट ने अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों को पद से हटाने के फैसले में हस्तक्षेप करने से इंकार दिया है. हाईकोर्ट ने याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि नियुक्तियों को सरकार कभी भी रद्द कर सकती है. सरकार के इस निर्णय को मनमाना या असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता है.

Himachal High Court
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Published : Apr 15, 2023, 9:08 AM IST

शिमला: प्रदेश हाईकोर्ट ने मौजूदा सरकार द्वारा अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों को पद से हटाने के फैसले में हस्तक्षेप करने से इंकार दिया. न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने राम लोक व अन्य द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया.

कैबिनेट के निर्णय के बिना हटाया गया: प्रार्थियों ने अपनी याचिका में दलील दी थी कि पिछली सरकार ने उनकी नियुक्तियां तीन वर्ष के लिए की थी, लेकिन मौजूदा सरकार ने कैबिनेट के निर्णय के बिना ही उन्हें हटा दिया जोंकि कानूनी तौर पर गलत है. याचिका में यह भी दलील दी गई थी कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशाें के बाद राज्य में अनुसूचित जाति आयोग का गठन किया गया था, इसमें प्रार्थी राम लोक को अध्यक्ष, दिले राम, रिमा धीमान और शिव चरण चौधरी को इसका सदस्य बनाया गया था.

तीन साल के लिए थी नियुक्ति: याचिका में आरोप लगाया गया था कि इन सभी की नियुक्तियां तीन वर्ष के लिए की गई थी, लेकिन, 17 दिसंबर 2022 को मौजूदा सरकार ने इन्हें हटाने के आदेश पारित कर दिए थे. सरकार के इस निर्णय को अदालत के समक्ष चुनौती दी गई. कोर्ट ने मामले से जुड़े रिकॉर्ड का अवलोकन करने पर पाया कि प्रार्थीगण सरकार के निर्णय को चुनौती देने का हक नहीं रखते हैं.

सरकार का निर्णय मनमाना नहीं माना जा सकता: कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि जहां उच्च पदों पर बिना प्रतिस्पर्धा चयन प्रक्रिया से उच्च पदों पर नियुक्तियां होती हैं, वे केवल सरकार की मर्जी से की जाती है, इसमें सार्वजनिक कार्यालय जैसे आयोग के अध्यक्ष, बोर्ड के सदस्य इत्यादी शामिल है. इन नियुक्तियों को सरकार कभी भी रद्द कर सकती है. सरकार के इस निर्णय को मनमाना या असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता है.

ये भी पढ़ें : हाई कोर्ट की बड़ी व्यवस्था, चयन प्रक्रिया में भाग लेने के बाद असफल उम्मीदवार नहीं दे सकता चुनौती

शिमला: प्रदेश हाईकोर्ट ने मौजूदा सरकार द्वारा अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों को पद से हटाने के फैसले में हस्तक्षेप करने से इंकार दिया. न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने राम लोक व अन्य द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया.

कैबिनेट के निर्णय के बिना हटाया गया: प्रार्थियों ने अपनी याचिका में दलील दी थी कि पिछली सरकार ने उनकी नियुक्तियां तीन वर्ष के लिए की थी, लेकिन मौजूदा सरकार ने कैबिनेट के निर्णय के बिना ही उन्हें हटा दिया जोंकि कानूनी तौर पर गलत है. याचिका में यह भी दलील दी गई थी कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशाें के बाद राज्य में अनुसूचित जाति आयोग का गठन किया गया था, इसमें प्रार्थी राम लोक को अध्यक्ष, दिले राम, रिमा धीमान और शिव चरण चौधरी को इसका सदस्य बनाया गया था.

तीन साल के लिए थी नियुक्ति: याचिका में आरोप लगाया गया था कि इन सभी की नियुक्तियां तीन वर्ष के लिए की गई थी, लेकिन, 17 दिसंबर 2022 को मौजूदा सरकार ने इन्हें हटाने के आदेश पारित कर दिए थे. सरकार के इस निर्णय को अदालत के समक्ष चुनौती दी गई. कोर्ट ने मामले से जुड़े रिकॉर्ड का अवलोकन करने पर पाया कि प्रार्थीगण सरकार के निर्णय को चुनौती देने का हक नहीं रखते हैं.

सरकार का निर्णय मनमाना नहीं माना जा सकता: कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि जहां उच्च पदों पर बिना प्रतिस्पर्धा चयन प्रक्रिया से उच्च पदों पर नियुक्तियां होती हैं, वे केवल सरकार की मर्जी से की जाती है, इसमें सार्वजनिक कार्यालय जैसे आयोग के अध्यक्ष, बोर्ड के सदस्य इत्यादी शामिल है. इन नियुक्तियों को सरकार कभी भी रद्द कर सकती है. सरकार के इस निर्णय को मनमाना या असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता है.

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