शिमला: प्रदेश हाईकोर्ट ने पालतू पशुओं को बेसहारा होने से बचाने व उन्हें बेसहारा छोड़ने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई न करने पर राज्य सरकार व पंचायती राज संस्थाओं की विफलता को जिम्मेवार ठहराया है. कोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि गांव, सड़कों व गलियों के घूमने वाले बेसहारा जानवर सम्भवतः स्थानीय लोगों द्वारा नहीं बल्कि बाहर से तस्करी व अन्य तरीकों से लाये जाते हैं.
कोर्ट के आदेशों के बावजूद सरकार व पंचायतीराज संस्थायें ऐसा करने से नहीं रोक पा रही है. ऐसे गैर कानूनी काम करने वाले लोग खुले घूम रहे हैं और उन्हें संबंधित अधिकारियों व सरकारी विभागों के ढुलमुल रवैये के कारण कानून से सजा का कोई डर नहीं रह गया है. सड़कों व गांव में बेसहारा पशु छोड़ने वालों को सरकार व स्थानीय प्रसाशन ढूंढ नहीं पा रहा है. सड़कों व गांव की गलियों में छोड़े गए बेसहारा जानवर एक ओर भोजन व पानी के अभाव में जीने को मजबूर हैं और दूसरी ओर वे ग्रामीणों की फसलों को बर्बाद कर रहे हैं.
राज्य सरकार ने शपथपत्र के माध्यम से अदालत को बताया था कि बेसहारा पशुओं के रख रखाव के लिए हिमाचल प्रदेश गौवंश संरक्षण और संवर्द्धन अधिनियम 2018 बनाया गया है. इस अधिनियम के तहत प्रदेश के हरेक जिले में “पशु अभ्यारण” स्थापित किए जाएंगे, जहां बेसहारा पशु, खासतौर पर गाय को सुरक्षित रखा जाएगा. अदालत को बताया गया था कि अधिनियम के नियमों के अनुसार सिरमौर, सोलन, ऊना और हमीरपुर में “पशु अभ्यारण” बनाए जाने के लिए उचित राशी जारी कर दी गई है.
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प्रदेश के अन्य जिलों में “पशु अभ्यारण” बनाए जाने के लिए भूमि तलाशने के बारे में प्रभावी कदम उठाए जा रहे हैं. जनहित याचिका की सुनवाई के बाद न्यायाधीश धर्म चंद चौधरी और न्यायाधीश ज्योत्सना रेवाल दुआ की खंडपीठ ने राज्य सरकार के मुख्य सचिव को आदेश दिए थे कि वs शपथ पत्र के माध्यम से अदालत को बताए कि सिरमौर, सोलन, ऊना और हमीरपुर में “पशु अभ्यारण” बनाए जाने के बारे में कितनी प्रोग्रेस है और कितनी राशी खर्च की जा चुकी है. साथ ही बाकी जिलों में पशु अभ्यारण्य स्थापित करने के बारे क्या कदम उठाए गए हैं.
इसके बाद सरकार ने शपथ पत्र दायर किया जिसे कोर्ट ने आधा अधूरा पाते हुए मामले के पक्षकारों को जरूरी सुझाव अदालत के समक्ष रखने के आदेश दिए ताकि इस समस्या से निजात दिलाने के लिए ठोस कार्रवाई की जा सके. मामले पर सुनवाई 26 सितंबर को होगी.
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