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संस्थानों को डी-नोटिफाई करने के मामले में अब 16 मई को होगी सुनवाई, सभी याचिकाओं को एक साथ सुनेगा हाईकोर्ट - हिमाचल की ताजा खबरें

हिमाचल हाईकोर्ट 16 मई को सभी संस्थानों को डी-नोटिफाई करने के मामले में सुनवाई करेगा. डी-नोटिफाई करने के मामले से जुड़ी एक याचिका में आरोप लगाया है कि सरकार द्वेष की भावना से कार्य कर रही है. (Hearing on denotify in High Court on 16th May )

हिमाचल संस्थानों को डीनोटिफाई करने का मामला
हिमाचल संस्थानों को डीनोटिफाई करने का मामला
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Published : Apr 26, 2023, 6:39 AM IST

शिमला: सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने सत्ता में आते ही सैकड़ों सरकारी संस्थान डी-नोटिफाई कर दिए थे. कई संस्थान बंद भी किए गए थे. इस पर हाईकोर्ट में विभिन्न याचिकाओं को एक साथ सुनने के आदेश जारी किए हैं. इस मामले में अदालत अगली सुनवाई 16 मई को करेगी. हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान व न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ मामले की सुनवाई कर रही है. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान की अगुवाई वाली खंडपीठ ने दोनों ही पक्षों को मामले से जुड़े सारे दस्तावेज पूरे करने के आदेश जारी किए हैं.

बिना कैबिनेट का गठन कर लिया फैसला: संस्थानों को डी-नोटिफाई करने के मामले से जुड़ी एक याचिका में आरोप लगाया है कि पूर्व की भाजपा सरकार के कार्यकाल में कांगड़ा जिले के जसवां परागपुर विधानसभा क्षेत्र के कोटला बेहड़ और रक्कड़ में खुले एसडीएम दफ्तर को सुखविंदर सिंह सरकार ने बंद कर दिया था. सत्ता परिवर्तन के बाद कांग्रेस सरकार ने विगत 12 दिसंबर 2022 को इन्हें बंद कर दिया. कांग्रेस सरकार द्वारा जारी प्रशासनिक आदेश के आधार पर दोनों एसडीएम ऑफिस बंद किए गए. याचिका में आरोप लगाया गया है कि बिना कैबिनेट का गठन किए ही कांग्रेस सरकार ने पूर्व कैबिनेट के फैसलों को रद्द कर दिया था.

नामित सदस्यों की नियुक्तियां रद्द कर दी: याचिका में दलील दी गई कि सरकार की ओर से जारी प्रशासनिक आदेशों से कैबिनेट के फैसलों को निरस्त करना गैर कानूनी है. भारतीय संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है. याचिका में अदालत को बताया गया कि गत 12 दिसंबर को सरकार ने सभी विभागों के अधिकारियों को दिया गया पुन: रोजगार भी खत्म कर दिया. इसी तरह एक अप्रैल 2022 के बाद कैबिनेट में लिए गए सभी फैसलों की भी समीक्षा किए जाने का निर्णय लिया गया. कांग्रेस सरकार ने निगमों, बोर्डों में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, नामित सदस्यों और अन्य कमेटियों तथा शहरी निकायों में नामित सदस्यों की नियुक्तियां भी रद्द कर दी.

सरकार द्वेष की भावना से कार्य कर रही: जिन अधिकारियों व कर्मचारियों के तबादले किए गए थे, उन पर अमल न किए जाने का निर्णय भी लिया गया था. याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि सरकार द्वेष की भावना से कार्य कर रही है. याचिकाकर्ता ने सरकार के 12 दिसंबर को जारी प्रशासनिक आदेश को रद्द करने की गुहार लगाई है. अब हाईकोर्ट इस मामले में दाखिल की गई सभी याचिकाओं की एक साथ सुनवाई करेगा. ये सुनवाई 16 मई को होगी.

ये भी पढ़ें : ढालपुर में बीजेपी कार्यकर्ताओं का प्रदर्शन, सरकारी कार्यालयों को डी नोटिफाई करने का किया विरोध

शिमला: सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने सत्ता में आते ही सैकड़ों सरकारी संस्थान डी-नोटिफाई कर दिए थे. कई संस्थान बंद भी किए गए थे. इस पर हाईकोर्ट में विभिन्न याचिकाओं को एक साथ सुनने के आदेश जारी किए हैं. इस मामले में अदालत अगली सुनवाई 16 मई को करेगी. हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान व न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ मामले की सुनवाई कर रही है. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान की अगुवाई वाली खंडपीठ ने दोनों ही पक्षों को मामले से जुड़े सारे दस्तावेज पूरे करने के आदेश जारी किए हैं.

बिना कैबिनेट का गठन कर लिया फैसला: संस्थानों को डी-नोटिफाई करने के मामले से जुड़ी एक याचिका में आरोप लगाया है कि पूर्व की भाजपा सरकार के कार्यकाल में कांगड़ा जिले के जसवां परागपुर विधानसभा क्षेत्र के कोटला बेहड़ और रक्कड़ में खुले एसडीएम दफ्तर को सुखविंदर सिंह सरकार ने बंद कर दिया था. सत्ता परिवर्तन के बाद कांग्रेस सरकार ने विगत 12 दिसंबर 2022 को इन्हें बंद कर दिया. कांग्रेस सरकार द्वारा जारी प्रशासनिक आदेश के आधार पर दोनों एसडीएम ऑफिस बंद किए गए. याचिका में आरोप लगाया गया है कि बिना कैबिनेट का गठन किए ही कांग्रेस सरकार ने पूर्व कैबिनेट के फैसलों को रद्द कर दिया था.

नामित सदस्यों की नियुक्तियां रद्द कर दी: याचिका में दलील दी गई कि सरकार की ओर से जारी प्रशासनिक आदेशों से कैबिनेट के फैसलों को निरस्त करना गैर कानूनी है. भारतीय संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है. याचिका में अदालत को बताया गया कि गत 12 दिसंबर को सरकार ने सभी विभागों के अधिकारियों को दिया गया पुन: रोजगार भी खत्म कर दिया. इसी तरह एक अप्रैल 2022 के बाद कैबिनेट में लिए गए सभी फैसलों की भी समीक्षा किए जाने का निर्णय लिया गया. कांग्रेस सरकार ने निगमों, बोर्डों में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, नामित सदस्यों और अन्य कमेटियों तथा शहरी निकायों में नामित सदस्यों की नियुक्तियां भी रद्द कर दी.

सरकार द्वेष की भावना से कार्य कर रही: जिन अधिकारियों व कर्मचारियों के तबादले किए गए थे, उन पर अमल न किए जाने का निर्णय भी लिया गया था. याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि सरकार द्वेष की भावना से कार्य कर रही है. याचिकाकर्ता ने सरकार के 12 दिसंबर को जारी प्रशासनिक आदेश को रद्द करने की गुहार लगाई है. अब हाईकोर्ट इस मामले में दाखिल की गई सभी याचिकाओं की एक साथ सुनवाई करेगा. ये सुनवाई 16 मई को होगी.

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