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मानवाधिकार आयोग गठित न करने पर HC की सख्ती, एक हफ्ते में सरकार से मांगा जवाब - प्रदेश हाईकोर्ट

प्रदेश हाईकोर्ट ने हिमाचल में लोकायुक्त और मानवाधिकार आयोग का गठन न होने पर सरकार के खिलाफ कड़ा रुख जाहिर किया है. न्यायालय ने प्रदेश सरकार से इस मामले पर एक हफ्ते में जवाब मांगा है.

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Published : Nov 2, 2019, 8:37 AM IST

शिमला: हिमाचल में लोकायुक्त और मानवाधिकार आयोग का गठन न किए जाने पर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार पर कड़ा रुख जाहिर किया है. न्यायालय ने प्रदेश सरकार से इस मामले पर एक हफ्ते में जवाब मांगा है.

हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति धर्मचंद चौधरी और न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने आदेश दिए हैं कि सात दिन के भीतर प्रदेश सरकार को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक राज्य में मानवाधिकार आयोग की स्थापना न किए जाने का कारण बताना पड़ेगा.

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बता दें कि इस संदर्भ में हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई थी. याचिका की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि यदि राज्य सरकार तय समय में जवाब दाखिल नहीं करती है तो अदालत कड़ा आदेश पारित करेगी. अदालत में दाखिल की गई जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि हिमाचल में राज्य मानवाधिकार आयोग वर्ष 2005 से कार्य नहीं कर रहा है.

हाईकोर्ट के अनुसार प्रदेश सरकार ने मानवाधिकार आयोग को फंक्शनल रखने के लिए जरूरी पदों पर नियुक्तियां नहीं की है. हाईकोर्ट की माने तो डेढ़ दशक में तीन सरकारें बदल गई, लेकिन किसी भी सरकार में आयोग का गठन नहीं हुआ. ऐसे में जनता के अधिकारों का हनन होने की स्थिति में उनको तुरंत न्याय दिलवाने के लिए कोई उपयुक्त मंच नहीं है. याचिका में ऐसे कई उदाहरण दिए गए हैं कि मानवाधिकार आयोग के न होने पर लोगों को गुहार लगाने के लिए अदालतों का सहारा लेना पड़ा. अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 7 नवंबर को निर्धारित की है.

शिमला: हिमाचल में लोकायुक्त और मानवाधिकार आयोग का गठन न किए जाने पर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार पर कड़ा रुख जाहिर किया है. न्यायालय ने प्रदेश सरकार से इस मामले पर एक हफ्ते में जवाब मांगा है.

हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति धर्मचंद चौधरी और न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने आदेश दिए हैं कि सात दिन के भीतर प्रदेश सरकार को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक राज्य में मानवाधिकार आयोग की स्थापना न किए जाने का कारण बताना पड़ेगा.

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बता दें कि इस संदर्भ में हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई थी. याचिका की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि यदि राज्य सरकार तय समय में जवाब दाखिल नहीं करती है तो अदालत कड़ा आदेश पारित करेगी. अदालत में दाखिल की गई जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि हिमाचल में राज्य मानवाधिकार आयोग वर्ष 2005 से कार्य नहीं कर रहा है.

हाईकोर्ट के अनुसार प्रदेश सरकार ने मानवाधिकार आयोग को फंक्शनल रखने के लिए जरूरी पदों पर नियुक्तियां नहीं की है. हाईकोर्ट की माने तो डेढ़ दशक में तीन सरकारें बदल गई, लेकिन किसी भी सरकार में आयोग का गठन नहीं हुआ. ऐसे में जनता के अधिकारों का हनन होने की स्थिति में उनको तुरंत न्याय दिलवाने के लिए कोई उपयुक्त मंच नहीं है. याचिका में ऐसे कई उदाहरण दिए गए हैं कि मानवाधिकार आयोग के न होने पर लोगों को गुहार लगाने के लिए अदालतों का सहारा लेना पड़ा. अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 7 नवंबर को निर्धारित की है.

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लोकायुक्त व मानवाधिकार आयोग गठित न करने पर एचसी की सख्ती, एक हफ्ते में सरकार से मांगा जवाब
शिमला। हिमाचल में लोकायुक्त व मानवाधिकार आयोग का गठन न करने पर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार पर कड़ी टिप्पणी की है। अदालत ने प्रदेश सरकार से इस मामले पर एक हफ्ते में जवाब मांगा है। हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति धर्मचंद चौधरी व न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने प्रदेश सरकार को आदेश दिए हैं कि वो सात दिन के भीतर ये बताए कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक राज्य में मानवाधिकार आयोग की स्थापना क्यों नहीं की गई है। इस संदर्भ में हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई थी। याचिका की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि यदि राज्य सरकार तय समय में जवाब दाखिल नहीं करती है तो अदालत कड़ा आदेश पारित करेगी। अदालत में दाखिल की गई जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि हिमाचल में राज्य मानवाधिकार आयोग वर्ष 2005 से कार्य नहीं कर रहा है। प्रदेश सरकार ने इसे फंक्शनल रखने के लिए जरूरी पदों पर नियुक्तियां नहीं की। डेढ़ दशक में तीन सरकारें बदल गई, लेकिन आयोग का गठन नहीं हुआ। ऐसे में जनता के अधिकारों का हनन होने की स्थिति में उनको तुरंत न्याय दिलवाने के लिए कोई उपयुक्त मंच नहीं है। याचिका में ऐसे कई उदाहरण दिए गए हैं कि मानवाधिकार आयोग के न होने पर लोगों को गुहार लगाने के लिए अदालतों का सहारा लेना पड़ा। इसी तरह राज्य सरकार की ओर से लोकायुक्त का भी गठन नहीं किया गया है। इस कारण लोकायुक्त के अधीन आने वाले मामलों पर कोई कार्यवाही नहीं हो पा रही है। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 7 नवंबर को निर्धारित की है।
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