शिमला: हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के गेयटी थियेटर में दस दिवसीय हथकरघा एवं हस्तशिल्प प्रदर्शनी का आयोजन किया है. इस प्रदर्शनी की शुरुआत 13 दिसंबर को हुई थी, जो 23 दिसंबर तक चलेगी. इस मेले में हिमाचल सहित मणिपुर, बनारस, हैदराबाद, कश्मीर, मध्यप्रदेश व नागालैंड से व्यापारी अपने-अपने राज्यों की खास पारंपरिक वस्तुएं बिक्री के लिए लेकर आए हैं. इसमें हिमाचल के ऊनी वस्त्र, मणिपुर-नागालैंड के सूट व वहां की मशहूर परंपरागत शॉल, मध्यप्रदेश से महेश्वर सिल्क सूट और साड़ी 4000 से 8000 रुपये की रेंज में मिल रही है.
वहीं, इस प्रदर्शनी में हैदराबाद की आर्टिफिशियल ज्वैलरी में पर्ल (मोती) 100 रुपये से 1000 रुपये में मिल रहे हैं. बनारस की सिल्क साड़ी व सूट 1200 से 1600 की रेंज से शुरू है. कश्मीरी से कश्मीरी सूट, स्टॉल, शॉल प्रदर्शनी में आने वाले सभी लोगों को आकर्षित कर रहे हैं. कश्मीरी सूट 4000 से शुरू होकर 10 हजार तक में उपलब्ध हैं. इसी तरह स्टॉल जिसमें पूरी कश्मीरी कढ़ाई की गई है, 4000 और जिसके किनारों पर कढ़ाई की गई है वह 12 सौ रुपये में उपलब्ध है.
इस प्रदर्शनी में आदिवासी हथकरघा एवं हस्तशिल्प, आदिवासी चित्र प्रदर्शनी, आदिवासी पर्ल ज्वैलरी, कॉटन, सिल्क व ऊनी गर्म कपड़े, शॉल, स्टॉल, नागालैंड के कुर्ते, मणिपुर की बास्केट और अन्य उपहार का सामान बेचने के लिए रखा गया है. स्थानीय लोगों के साथ-साथ पर्यटक भी प्रदर्शनी में आकर खरीदारी करने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं.
प्रदर्शनी में मणिपुर से आए रोबिनसन के स्टॉल में ब्लैक स्टोन से बने सामान को देखकर हर कोई आकर्षित हो रहा है. यह विशेष काला पत्थर मणिपुर के मैनमार में पाया जाता है. इससे विभिन्न तरह के आकर्षक बर्तन बनाए जाते हैं. रोबिनसन ने बताया कि इनके पूरे परिवार के सदस्य इस व्यवसाय से जुड़े हैं. वह प्रदर्शनी में चाय-कॉफी पीने वाले कप व सूप पीने वाला बाउल लेकर आए हैं. इसके साथ नागालैंड की शॉल व वाटर रीड से बनी बास्केट भी हैं. इनमें सबसे अधिक पसंद काले पत्थर से बने बर्तन आ रहे हैं.
कप व अन्य बर्तन बनाने की प्रक्रिया को लेकर उन्होंने बताया कि करीब पांच दिन में 3 से 4 कप और सूप बाउल 2 से 3 बन पाते हैं. इसे बनाने के लिए किसी भी तरह का केमिकल यूज नहीं होता है, यह केवल प्राकृतिक है. काले पत्थर को ग्राइंड करके शेप बनाकर आग में तपाकर पक्का किया जाता है. इसमें चाय-कॉफी व सूप कुछ भी पिया जा सकता है. शरीर को किसी तरह की कोई नुकसान नहीं होता है. छोटे कप का मूल्य 300 और बड़े कप का 800 रुपये रखा गया है.
इसी तरह छोटी बास्केट 700 और बड़ी 2000 रुपये तक उपलब्ध है. वहीं, नागालैंड की शॉल जिसमें पारंपरिक आदिवासी कारीगरी के साथ बुनी गई है, इस एक शॉल को बनाने के लिए करीब एक माह का समय लगता है. यह 2200 रुपये में उपलब्ध है. रोबिनसन ने बताया कि यह इससे पहले दिल्ली में भी प्रदर्शनी में अपना सामान बेच चुके हैं. हिमाचल में उनकी यह दूसरी प्रदर्शनी है.
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