शिमलाः ब्रिटिशकाल में भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला में सत्ता का सर्वोच्च केंद्र रही वायसरीगल लॉज की इमारत खुद में अजूबों का संसार समेटे हुए है. आज से 130 साल पहले 38 लाख रुपए की लागत से तैयार वायसरीगल लॉज ने राष्ट्रपति भवन से लेकर भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान का सफर तय किया है.
वर्ष 1884 में वायसरीगल लॉज बनना शुरू हुआ. चार साल में ये इमारत तैयार हो गई तो इसमें एक साथ कई अद्भुत बातों का समावेश हुआ. ये इमारत आटोमैटिक फायर फाइटिंग सिस्टम से युक्त है. यहां बिजली की इंटरनल वायरिंग है. रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम इस इमारत की खूबी है. इसके अलावा 120 कमरों वाली इस भव्य इमारत में भारत की आजादी की एक-एक हलचल की गवाहियां मौजूद हैं.
सैलानियों की शिमला की सैर इस इमारत के दीदार के बिना अधूरी मानी जाती है. यहां साल भर में हजारों सैलानी आते हैं. टिकट की बिक्री के तौर पर संस्थान को साल भर में 75 लाख रुपए तक आय होती है. यहां की लाइब्रेरी में दो लाख से अधिक किताबें हैं. किताबों की सारी जानकारी माउस के एक क्लिक पर उपलब्ध है. यहां कई दुर्लभ संस्कृत, फारसी व तिब्बती भाषा के ग्रंथ भी हैं. आइये, यहां इस इमारत के साथ जुड़े अहम तथ्यों पर एक नजर डालते हैं.
भारत के इतिहास की अहम गवाही है ये इमारत
ब्रिटिश हुकूमत से भारत को आजादी मिले सात दशक का लंबा अरसा बीत गया है. आजादी के आसपास जन्मी पीढ़ी उम्र की ढलान पर है और ऐसे में नई पीढ़ी को भारत की स्वतंत्रता के साथ-साथ देश विभाजन से जुड़ी तथ्यात्मक जानकारियां होनी चाहिए. ब्रिटिश काल के दौरान शिमला देश की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी. ब्रिटिश वायसराय गर्मियों में शिमला में प्रवास करते थे.
इसी पहाड़ी शहर शिमला में वायसरीगल लॉज और अब भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के रूप में एक ऐसी आलीशान इमारत मौजूद है, जो देश की आजादी और विभाजन की एक-एक हलचल की गवाह रही है. इसी इमारत में वर्ष 1945 में शिमला कॉन्फ्रेंस हुई थी. उसके बाद वर्ष 1946 में कैबिनेट मिशन की मीटिंग हुई, जिसमें देश की आजादी के ड्राफ्ट पर चर्चा हुई थी. इस बैठक में जवाहर लाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, मौलाना आजाद सहित कई अन्य नेता शामिल थे. महात्मा गांधी भी उस दौरान शिमला में ही थे, लेकिन वे वायसरीगल लॉज में हो रही बैठकों में शामिल नहीं हुए थे. अलबत्ता वे शिमला में ही एक स्थान पर कांग्रेस के नेताओं को सलाह देते रहे थे.
नई पीढ़ी के लिए जरूरी है इतिहास में झांकना
नई सदी यानी वर्ष 2000 के बाद जन्मी पीढ़ी इस समय किशोर अवस्था में है. उनमें से अधिकांश को शायद ही मालूम होगा कि देश की आजादी और विभाजन से जुड़े तमाम दस्तावेजों पर इस इमारत में चर्चा हुई होगी. यह भी कि इस इमारत ने बापू गांधी, चाचा नेहरू से लेकर मौलाना आजाद और मोहम्मद अली जिन्ना सहित कई नामी हस्तियों के कदमों की आहट सुनी है. भारत की आजादी के परवाने पर हुए दस्तखत की इबारत भी इस इमारत ने देखी है. इस इमारत को मौजूदा समय में भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के तौर पर जाना जाता है. आजादी से पहले इसका नाम वायसरीगल लॉज था. आजादी के बाद ये राष्ट्रपति निवास के रूप में पहचानी गई और भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने इसे वर्ष 1965 में ज्ञान के केंद्र के रूप में विकसित किया तथा यहां भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान की शुरूआत हुई.
130 साल पहले 38 लाख में बनी ये भव्य इमारत
ब्रिटिश शासक गर्मियों में दिन बिताने के लिए किसी पहाड़ी स्थान की तलाश में थे. उनकी ये तलाश शिमला में पूरी हुई. तत्कालीन ब्रिटिश वायसराय लार्ड डफरिन ने शिमला को भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का फैसला लिया. उसके लिए यहां एक आलीशान इमारत तैयार करने की जरूरत महसूस हुई. वर्ष 1884 में वायसरीगल लॉज का निर्माण शुरू हुआ. कुल 38 लाख रुपए की लागत से वर्ष 1888 में ये इमारत बनकर तैयार हुई. इस इमारत में देश की आजादी तक कुल 13 वायसराय रहे. लार्ड माउंटबेटन अंतिम वायसराय थे.
ये इमारत स्काटिश बेरोनियन शैली की है. यहां मौजूद फर्नीचर विक्टोरियन शैली का है. इमारत में कुल 120 कमरे हैं. इमारत की आंतरिक साज-सज्जा बर्मा से मंगवाई गई टीक की लकड़ी से हुई है. वर्ष 1945 में तत्कालीन वायसराय लार्ड वेबल की अगुवाई में यहां शिमला कान्फ्रेंस का आयोजन किया गया. ये कान्फ्रेंस वायसराय की कार्यकारी परिषद के गठन से संबंधित थी. इस परिषद में कांग्रेस के कुछ नेताओं को शामिल किया जाना प्रस्तावित था. लार्ड वेबल के साथ कुल 21 भारतीय नेता इसमें शिरकत कर रहे थे. कुल 20 दिन तक ये सम्मेलन चला, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. बताया जाता है कि मोहम्मद अली जिन्ना कार्यकारी परिषद में मौलाना आजाद को मुस्लिम नेता के तौर पर शामिल करने में सहमत नहीं थे. उनका तर्क था कि मौलाना आजाद कांग्रेस के नेता हैं न कि मुस्लिम नेता. इस कान्फ्रेंस में बापू गांधी, जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद व मौलाना आजाद सहित कुल 21 भारतीय नेता शामिल हुए थे.
कैबिनेट मिशन ने की थी आजादी पर चर्चा
दूसरा विश्व युद्ध खत्म हो चुका था. इस युद्ध ने ग्रेट ब्रिटेन की ताकत को गहरा झटका दिया था. अंग्रेज शासक अब भारत पर शासन करने में कामयाब होते नहीं दिख रहे थे. ऐसे में उन्होंने भारत को आजादी देने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी. इसके लिए शिमला में कैबिनेट मिशन की बैठक बुलाई गई. ये बैठक 1946 की गर्मियों में हुई थी. इसमें कांग्रेस सहित मुस्लिम लीग के नेता मौजूद थे. कैबिनेट मिशन की बैठक में भारत को आजाद करने के ड्राफ्ट पर चर्चा हुई. साथ ही विभाजन की नींव भी इसी बैठक में पड़ी. इस बात पर इतिहासकार एकमत नहीं हैं कि विभाजन के ड्राफ्ट पर वायसरीगल लॉज में दस्तखत हुए थे या फिर एक अन्य इमारत पीटरहाफ में. लेकिन ये तय है कि ड्राफ्ट पर शिमला में ही चर्चा हुई और हस्ताक्षर भी.
आजादी के बाद राष्ट्रपति निवास बनी इमारत
देश आजाद होने के बाद वायसरीगल लॉज को राष्ट्रपति निवास बनाया गया. भारत के राष्ट्रपति यहां गर्मियों का अवकाश बिताने के लिए आते थे. महान शिक्षाविद् सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने इस आलीशान इमारत का सदुपयोग करने पर विचार किया और वर्ष 1965 में इसे उच्च अध्ययन के केंद्र के तौर पर भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान का रूप दिया. अब ये इमारत देश-विदेश के सैलानियों के आकर्षण का केंद्र है. यहां स्थापित म्यूजियम में देश की आजादी व विभाजन से संबंधित फोटो रखे गए हैं. आजादी पर लिखी गई किताबें भी हैं. संस्थान की लाइब्रेरी में 1.5 लाख किताबों का खजाना है. हर साल ये इमारत सैलानियों की आमद से टिकट बिक्री के रूप में 75 लाख रुपए की आय अर्जित करती है.
आग का कोई खतरा नहीं यहां
भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान की इस इमारत को आग से कोई खतरा नहीं है. आग लगने की स्थिति में यहां का ऑटोमैटिक फायर फाइटिंग सिस्टम एक्टिव हो जाएगा. इमारत की छत्त पर मोम की परत बिछाई गई है. इमारत ऑटोमेटिक फायर फाइटिंग सिस्टम से लैस है. आग लगने की सूरत में यह इमारत खुद ही उस पर काबू पा सकती है. ऐसा इसकी छत पर स्थापित किए गए स्प्रिंकल्ज की वजह से है. इमारत की छत पर 52 स्प्रिंकल्ज बनाए गए हैं. इनके ऊपर पानी मौजूद है. स्प्रिंकल्ज के छिद्र मोम से बंद किए गए हैं. आग लगने की सूरत में तापमान बढऩे पर स्प्रिंकल्ज के छिद्र खुल जाएंगे और पानी की बौछार से आग बुझ जाएगी.