शिमलाः कोरोना ने हर कारोबार को बुरी तरह प्रभावित किया है. कोरोना की दूसरी लहर की वजह से आम आदमी के रोजगार पर गहरा संकट पैदा हो गया है. हालात यह है कि आम आदमी के लिए घर परिवार का गुजर-बसर करना भी मुश्किल हो गया है.
आम आदमी को एक ओर महंगाई की मार पड़ रही है दूसरी ओर कोरोना (corona) ने लोगों का रोजगार छीन लिया है. ऐसे में आम आदमी के लिए घर परिवार को पालना के लिए रोजी-रोटी का जुगाड़ भी मुश्किल हो रहा है.
इसी कड़ी में अगर धोबियों के काम की बात करें तो राजधानी शिमला में कोरोना की वजह से धोबियों का काम भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है. रोजाना लोगों के कपड़े धो कर गुजर-बसर करने वाले इन धोबियों का काम ठप हो गया है.
हालात यह हैं कि कई धोबी शिमला से पलायन कर चुके हैं. राजधानी में काम करने वाले अधिकतर धोबी उत्तर प्रदेश और बिहार के रहने वाले हैं, जो लंबे समय से शिमला में रहकर अपना गुजर-बसर कर रहे हैं. पहले काम अच्छा खासा चल रहा था, लेकिन कोरोना ने धोबियों के जीवन को भी हिला कर रख दिया.
घरों से धोबियों को नाममात्र का ही काम मिलता है
शिमला में मुख्य रूप से धोबियों का काम होटल व्यवसाय से जुड़ा हुआ है. शहर भर के होटलों से चादरें, तकिए कवर और अन्य कपड़े धुलने के लिए आते हैं, लेकिन कोरोना की वजह से होटल बंद पड़े हुए हैं. ऐसे में धोबियों को भी काम नहीं मिल रहा. शहर भर के घरों से धोबियों को नाममात्र का ही काम मिलता है. ऐसे में जब पर्यटन कारोबार ठप पड़ा हुआ है. होटल बंद हैं, तो धोबियों को भी रोजगार (Employment) नहीं मिल रहा.
ईटीवी भारत की टीम जब धोबी घाट पर पहुंची, तो धोबी घाट पूरी तरह खाली नजर आया. केवल एक ही धोबी वहां काम करते नजर आए और वह भी के लिए अपने काउंटर को दुरुस्त कर रहे थे. सुबह से शाम तक कपड़ों से भरे रहने वाला धोबी घाट बिलकुल खाली पड़ा हुआ है. कोरोना की दूसरी लहर ने धोबियों के काम को इस तरह प्रभावित किया कि कई धोबी वापस अपने पैतृक स्थानों को लौट गए हैं.
घर-परिवार का गुजर-बसर करना मुश्किल हुआ
शिमला शहर में धोबी का काम करने वाले रविंद्र कुमार ने बताया कि कोरोना से उनका काम बुरी तरह प्रभावित हुआ है. होटल बंद पड़े हुए हैं. ऐसे में उनका काम भी नहीं चल रहा. काम न होने की वजह से घर-परिवार का गुजर-बसर करना मुश्किल हुआ है. जैसे तैसे रोटी का तो जुगाड़ हो जाता है, लेकिन अन्य खर्चा चलाना मुश्किल हो गया है.
इसके अलावा स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की फीस देना भी एक बड़ी चुनौती है. रविंद्र कुमार ने बताया कि धोबी घाट पर करीब 15 धोबी अपने परिवार के साथ मिलकर काम करते थे, लेकिन कोरोना की वजह से काम ठप हो गया है. फिलहाल वे इंतजार कर रहे हैं कि होटल खुलें और उनका काम चल सके.
वहीं, मोहित कुमार ने बताया कि वह रोजाना कमाकर शाम को रोटी खाते हैं. धोबी घाट पर जब तक दिहाड़ी नहीं लगती, तब तक गुजर-बसर नहीं होता. कोरोना ने काम को बुरी तरह प्रभावित कर दिया है. ऐसे में उन्हें समस्या का सामना करना पड़ रहा है.
होटल कारोबार के पटरी पर लौटने का इंतजार
एक और धोबी का काम करने वाले नवीन कुमार ने बताया कि कोरोना की वजह से उनका काम बुरी तरह प्रभावित हो गया है. पर्यटक शिमला (Shimla) नहीं पहुंच रहे. ऐसे में होटल बंद पड़े हुए हैं. ऐसे में उनका काम पूरी तरह होटल कारोबार पर ही निर्भर है. जब तक होटल कारोबार (Hotel Business) पटरी पर नहीं लौटेगा, तब तक उन्हें समस्याओं का सामना करना पड़ेगा.
रमन कुमार ने बताया कि कोरोना की मार इस कदर पड़ी है कि धोबी घाट पूरी तरह खाली पड़ा हुआ है. कोरोना से काम नहीं मिल रहा है और जब तक होटल नहीं खुलेंगे, तब तक काम नहीं चलेगा.
बच्चों की फीस देना भी मुश्किल हो गया है
धोबी घाट पर काम करने वाली किरण का कहना है कि कोरोना की वजह से काम प्रभावित हो गया है. ऐसे में वे अपने बच्चों के भविष्य को लेकर भी चिंतित हैं. कमाई नहीं हो रही है. ऐसे में उनके लिए बच्चों की फीस देना भी मुश्किल हो गया है. उन्होंने सरकार से धोबियों के बारे में सोचने और उन्हें राहत देने की मांग की है.
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