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दिव्यांग अंजना ठाकुर के हौसले की कहानी, दुर्घटना में गंवाया दायां हाथ, चुनौतियों से लड़ बनी प्रोफेसर

मंडी की अंजना ठाकुर ने दिव्यांगता के बावजूद अपने हौंसलों को उड़ान दी है. एक दुर्घटना में दायां हाथ गवां चुकी अंजना का चयन कॉलेज कैडर में बॉटनी की असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर हुआ है. अंजना हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी में पीएचडी कर रही है. (Divyang Anjana Thakur became Assistant Professor)

Divyang Anjana Thakur became Assistant Professor
दिव्यांग अंजना ठाकुर बनी असिस्टेंट प्रोफेसर
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Oct 5, 2023, 1:37 PM IST

शिमला: जब बात कुछ कर दिखाने की हो तो बड़ी से बड़ी चुनौती भी आडे़ नहीं आती है. ऐसा ही कुछ मंडी की अंजना ठाकुर ने कर दिखाया है. दिव्यांगता को अपने लिए अंजना ने शाप नहीं बनने दिया और कड़ी मेहनत से अपने सपने को पूरा किया. दरअसल एक दुर्घटना में बीपीएल परिवार की बेटी अंजना ठाकुर ने अपना दायां हाथ गंवा दिया था. अंजना उस दौरान कॉलेज की पढ़ाई कर रही थी.

दिव्यांग अंजना बनी असिस्टेंट प्रोफेसर: मौजूदा समय में अंजना ठाकुर हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रही है. अंजना ने दिव्यांगता के बावजूद हिम्मत नहीं हारी और बाएं हाथ से लिखना शुरू कर दिया. अंजना की इस कड़ी मेहनत का फल भी उसे मिला और वह आज बॉटनी की असिस्टेंट प्रोफेसर बन गई है. एचपीयू के कुलपति प्रोफेसर एसपी बंसल ने बधाई देते हुए कहा कि अंजना का संघर्ष और सफलता सभी युवाओं के लिए प्रेरणा है.

बॉटनी की असिस्टेंट प्रोफेसर बनी: दिव्यांगों के लिए काम कर रही संस्था उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष और राज्य विकलांगता सलाहकार बोर्ड के विशेषज्ञ सदस्य अजय श्रीवास्तव ने बताया कि अंजना ठाकुर मंडी जिले के करसोग के गांव गोड़न की रहने वाली हैं. बेटी की इस सफलता से पिता हंसराज और माता चिंतादेवी की खुशी का ठिकाना न रहा है. राज्य लोक सेवा आयोग ने उसका चयन कॉलेज कैडर में बॉटनी की असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर किया है. आयोग ने बुधवार को परिणाम घोषित किया था.

पिछले साल भी हुई थी सम्मानित: इसके अलावा बीते साल एचपीयू में राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने अंजना ठाकुर को पूर्व छात्र सम्मेलन में उसकी उपलब्धियां के लिए सम्मानित भी किया था. अंजना की मां चिंतादेवी ने कहा कि उनकी बेटी ने इतनी बड़ी सफलता पाकर पूरे परिवार का नाम रोशन किया है. वहीं, बहन के लिए खुद की पढ़ाई कुर्बान करने वाले भाई गंगेश कुमार को भी अंजना पर गर्व है.

करंट लगने से कटा हाथ: प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल से लेने के बाद मेधावी छात्रा अंजना ठाकुर जब साल 2016 में करसोग कॉलेज से बीएससी (द्वितीय वर्ष) कर रही थी, तो बिजली का करंट लगने से वह बुरी तरह घायल हो गई थी. कई महीने तक शिमला के आईजीएमसी अस्पताल और फिर पीजीआई चंडीगढ़ में भर्ती रहने के बाद उसका दाहिना बाजू काट दिया गया. हमेशा उच्च प्रथम श्रेणी में पास होने वाली अंजना ठाकुर प्रोफेसर बनने का सपना आंखों में संजोए हुए थी. उसके लिए यह बहुत बड़ा सदमा था. सामाजिक दबाव में आकर परिवार भी 12वीं के बाद आगे पढ़ाने की बजाय उसकी शादी कर देना चाहता था, लेकिन अंजना की पढ़ने की जिद के आगे सभी को झुकना पड़ा.

भाई ने छोड़ी पढ़ाई: अपना सपना पूरा करने के लिए अंजना ने अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान ही बाएं हाथ से लिखना सीखा. अस्पताल से छुट्टी के बाद फिर उसी कॉलेज में दाखिला लिया और बहुत अच्छे अंकों से बीएससी की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली. अंजना के बड़े भाई गंगेश कुमार ने बहन को आगे पढ़ाने के लिए अपनी पढ़ाई छोड़ दी और घर की आर्थिक मदद करने के लिए पेंट का काम शुरू किया.

हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी में एमएससी(बॉटनी) में प्रवेश लेने के बाद से अंजना के हौसलों को पंख लग गए. उसने पहले ही प्रयास में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की अत्यंत कठिन जूनियर रिसर्च फैलोशिप (जेआरएफ) परीक्षा भी पास कर ली. वर्तमान में वह प्रदेश विश्वविद्यालय के बायो-साइंसेज विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. धीरज रावत के निर्देशन में पीएचडी कर रही है.

ये भी पढ़ें: प्रेरणादायक: मेलों में चूड़ियां बेचकर पूरी की पढ़ाई, अब बनी असिस्टेंट प्रोफेसर, संगीता ने पेश की मिसाल

शिमला: जब बात कुछ कर दिखाने की हो तो बड़ी से बड़ी चुनौती भी आडे़ नहीं आती है. ऐसा ही कुछ मंडी की अंजना ठाकुर ने कर दिखाया है. दिव्यांगता को अपने लिए अंजना ने शाप नहीं बनने दिया और कड़ी मेहनत से अपने सपने को पूरा किया. दरअसल एक दुर्घटना में बीपीएल परिवार की बेटी अंजना ठाकुर ने अपना दायां हाथ गंवा दिया था. अंजना उस दौरान कॉलेज की पढ़ाई कर रही थी.

दिव्यांग अंजना बनी असिस्टेंट प्रोफेसर: मौजूदा समय में अंजना ठाकुर हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रही है. अंजना ने दिव्यांगता के बावजूद हिम्मत नहीं हारी और बाएं हाथ से लिखना शुरू कर दिया. अंजना की इस कड़ी मेहनत का फल भी उसे मिला और वह आज बॉटनी की असिस्टेंट प्रोफेसर बन गई है. एचपीयू के कुलपति प्रोफेसर एसपी बंसल ने बधाई देते हुए कहा कि अंजना का संघर्ष और सफलता सभी युवाओं के लिए प्रेरणा है.

बॉटनी की असिस्टेंट प्रोफेसर बनी: दिव्यांगों के लिए काम कर रही संस्था उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष और राज्य विकलांगता सलाहकार बोर्ड के विशेषज्ञ सदस्य अजय श्रीवास्तव ने बताया कि अंजना ठाकुर मंडी जिले के करसोग के गांव गोड़न की रहने वाली हैं. बेटी की इस सफलता से पिता हंसराज और माता चिंतादेवी की खुशी का ठिकाना न रहा है. राज्य लोक सेवा आयोग ने उसका चयन कॉलेज कैडर में बॉटनी की असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर किया है. आयोग ने बुधवार को परिणाम घोषित किया था.

पिछले साल भी हुई थी सम्मानित: इसके अलावा बीते साल एचपीयू में राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने अंजना ठाकुर को पूर्व छात्र सम्मेलन में उसकी उपलब्धियां के लिए सम्मानित भी किया था. अंजना की मां चिंतादेवी ने कहा कि उनकी बेटी ने इतनी बड़ी सफलता पाकर पूरे परिवार का नाम रोशन किया है. वहीं, बहन के लिए खुद की पढ़ाई कुर्बान करने वाले भाई गंगेश कुमार को भी अंजना पर गर्व है.

करंट लगने से कटा हाथ: प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल से लेने के बाद मेधावी छात्रा अंजना ठाकुर जब साल 2016 में करसोग कॉलेज से बीएससी (द्वितीय वर्ष) कर रही थी, तो बिजली का करंट लगने से वह बुरी तरह घायल हो गई थी. कई महीने तक शिमला के आईजीएमसी अस्पताल और फिर पीजीआई चंडीगढ़ में भर्ती रहने के बाद उसका दाहिना बाजू काट दिया गया. हमेशा उच्च प्रथम श्रेणी में पास होने वाली अंजना ठाकुर प्रोफेसर बनने का सपना आंखों में संजोए हुए थी. उसके लिए यह बहुत बड़ा सदमा था. सामाजिक दबाव में आकर परिवार भी 12वीं के बाद आगे पढ़ाने की बजाय उसकी शादी कर देना चाहता था, लेकिन अंजना की पढ़ने की जिद के आगे सभी को झुकना पड़ा.

भाई ने छोड़ी पढ़ाई: अपना सपना पूरा करने के लिए अंजना ने अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान ही बाएं हाथ से लिखना सीखा. अस्पताल से छुट्टी के बाद फिर उसी कॉलेज में दाखिला लिया और बहुत अच्छे अंकों से बीएससी की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली. अंजना के बड़े भाई गंगेश कुमार ने बहन को आगे पढ़ाने के लिए अपनी पढ़ाई छोड़ दी और घर की आर्थिक मदद करने के लिए पेंट का काम शुरू किया.

हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी में एमएससी(बॉटनी) में प्रवेश लेने के बाद से अंजना के हौसलों को पंख लग गए. उसने पहले ही प्रयास में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की अत्यंत कठिन जूनियर रिसर्च फैलोशिप (जेआरएफ) परीक्षा भी पास कर ली. वर्तमान में वह प्रदेश विश्वविद्यालय के बायो-साइंसेज विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. धीरज रावत के निर्देशन में पीएचडी कर रही है.

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