शिमला: हिमाचल प्रदेश में औषधीय व औद्योगिक इस्तेमाल में भांग की खेती को वैध बनाने संबंधी सभी पहलुओं को देखने के लिए एक कमेटी बनाई गई है. मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने द्रंग के विधायक पूर्ण चंद ठाकुर के भांग के औषधीय गुणों को देखते हुए प्रदेश में इसकी खेती को वैध करने के बारे में लाए गए प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब देते हुए इसका ऐलान किया. मुख्यमंत्री ने कहा कि NDPS एक्ट 1985 की सेक्शन-10 के तहत भांग की खेती, परिवहन, क्रय-विक्रय का अधिकार राज्य सरकार का है. इसके अलावा इसके सेक्शन-40 के तहत राज्य सरकार उद्योग या बागवानी में इसके सीड्स व फाइबर के इस्तेमाल के लिए आदेश दे सकती है. ऐसे में इसको लेकर एक कमेटी गठित की जा सकती है, जिसको सदन ने मंजूरी दी. यह कमेटी बागवानी एवं राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी की अध्यक्षता में गठित की गई है, जिसमें विधायक पूर्ण चंद ठाकुर, हंसराज, डॉ. जनकराज, सुंदर ठाकुर को सदस्य बनाया गया है. यह कमेटी औषधीय और इसके औद्योगिक इस्तेमाल के लिए भांग की खेती को वैध बनाने के विभिन्न पहलुओं को देखेगी. कमेटी एक माह में इसकी रिपोर्ट सरकार को देगी.
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि भांग के पौधे से रेजिन और पूलों पर प्रतिबंध पर है. हालांकि इसकी पत्तियों और बीज के इस्तेमाल पर सोचा जा सकता है. उन्होंने कहा कि अफीम की लाइसेंस के आधार खेती देश के कुछ जगहों में की जा रही है. इससे पहले द्रंग के विधायक पूर्णचंद ठाकुर ने कहा कि द्रंग में 50 पंचायतें हैं जो कि OBC के तहत आती हैं, यहां कमाई का कोई दूसरा साधन नहीं है. यहां एक मात्र फसल होती है, ऐसे में अगर भांग की खेती की वैध किया जाता है तो इससे लोगों को आय का अतिरिक्त साधन मिलेगा. उन्होंने कहा कि हिमाचल में भांग को अवैध घोषित किया गया है, जिस कारण बेरोजगार रोजगार जेल की हवा खा रहे हैं. उन्होंने कहा कि इसका इस्तेमाल दवाइयों के अलावा अन्य घरेलू उपयोग में किया जाता है. ऐसे में इसकी खेती को वैध करना जरूरी है. उन्होंने कहा कि इससे पहले उत्तराखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार में भांग की खेती की इजाजत है. यहां भांग का उद्यौगिक और औषधीय इस्तेमाल किया जा रहा है.
कुल्लू के विधायक सुंदर सिंह ठाकुर ने चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा कि भांग की खेती को लेकर पालिसी बनाने के निर्देश कोर्ट ने पूर्व सरकार को दिए थे, लेकिन सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया .उन्होंने कहा कि इसकी खेती को ना-नार्कोटिक्स यूज के लिए वैध बनाया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि इसका कैंसर, ट्यूमर अर्थराइटिस, पार्किन्स जैसी बीमारियों के इलाज के लिए भांग का विकसित देश सही इस्तेमाल कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि कहा कि चिट्टा और भांग को एक बराबर नहीं माना जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि भांग के इस्तेमाल को लेकर मध्य प्रदेश, जम्मू कश्मीर में पॉलिसी है. उत्तराखंड में औद्योगिक इस्तेमाल को लेकर पॉलिसी लेकर आए हैं.
ऐसे में इसका औद्योगिक और मेडिसिनल यूज पर हिमाचल सरकार को लिबरल व्यू लेकर रखना चाहिए. बंजार के विधायक सुरेंद्र शौरी ने कहा कि नशे और औद्योगिक व औषधीय इस्तेमाल में होने वाली भांग को अलग अलग माना जाता है क्योंकि इन दोनों की किस्में अलग-अलग हैं. एक ओर जहां भांग का नशे वाला पौधा दो से तीन फुट लंबा होता जिसमें नशे की मात्रा 30 फीसदी रहती है, जबकि 10 से 12 फीट लंबे वाले पौधे में नशा 0.3 फीसदी से भी कम रहता है. ऐसे में औषधीय इस्तेमाल वाली भांग को वैध किया जाना चाहिए. चुराह के विधायक हंसराज ने कहा कि भांग के बड़े तस्कर अक्सर बच रहे हैं जबकि एक से दो हजार रुपए लेकर इसकी ट्रांसपोर्टेशन करने वाले पकडे जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि हिमाचल को इसके औषधीय और औद्योगिक इस्तेमाल के लिए कोई पॉलिसी बनाई जाए और कोई कानून लाए. डॉ. जनक राज ने कहा कि अफीम से निकलने वाले पदार्थ कैंसर जैसे बीमारियों में इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा मिर्गी, अल्सर, कैंसर की कीमो थैरेपी, न्यूरोपैथी से संबधित बीमारी में भी इसके इस्तेमाल किया जाता है. इसी तरह भांग के पौधों के रेशे का इस्तेमाल जूट की तरह से इस्तेमाल होता है. उन्होंने कहा कि सरकार वैज्ञानिक तरीके से इसकी खेती की कानूनी तरीके इसके नान नारकोटिक्स यूज में इसकी अनुमति दे.
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