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कांगड़ा चाय को GI टैग देने पर यूरोपियन यूनियन का CPS आशीष बुटेल ने जताया आभार, बोले: चाय उत्पादकों को होगा फायदा

कांगड़ा चाय को GI टैग मिलने पर पालमपुर के विधायक और CPS आशीष बुटेल ने यूरोपिय यूनियन का आभार जताया है. पढ़ें पूरी खबर...

Mla Ashish Butail on Kangra Tea
पालमपुर के विधायक और CPS आशीष बुटेल
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Published : Apr 4, 2023, 8:33 PM IST

पालमपुर के विधायक और CPS आशीष बुटेल

शिमला: अपने स्वाद के लिए देश भर में मशहूर कांगड़ा चाय अब विदेशों में भी मशहूर होने वाली है. यूरोपियन यूनियन ने कांगड़ा चाय को जीआई टैग दे दिया है. जीआई टैग मिलने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कांगड़ा चाय की पहचान और मजबूत होगी. वहीं, जीआई टैग मिलने पर पालमपुर के विधायक और सरकार में CPS आशीष बुटेल ने यूरोपियन यूनियन का आभार जताया है और कहा कि ये बहुत बड़ी उपलब्धि है.

CPS आशीष बुटेल ने कहा कि कांगड़ा चाय को हाल ही में जीआई टैग मिला है. टैग मिलने का मकसद यह है कि एक एरिया चयनित किया जाता है. जहां इस तरह की चाय होती है. यूरोपियन यूनियन ने कांगड़ा चाय को इसके लिए चुना है और जीआई टैग दिया है. अब विदेशों में कांगड़ा चाय के नाम से चाय प्रसिद्ध होगी और वहां पर बिक सकती है. जो भी लोग कांगड़ा चाय का एक्सपोर्ट का कार्य करते हैं उनके लिए उनके लिए बहुत फायदेमंद है.

उन्होंने कहा कि हिमाचल में 2500 हेक्टेयर पर चाय की खेती होती है. कंगड़ा चाय की क्वलिटी काफी अच्छी है और लंबी पत्ती वाली चाय के नाम से भी इसे जाना जाता है. कांगड़ा चाय को भारतवर्ष में पहले ही जीआई टैग मिला हुआ है. जिससे कांगड़ा चाय की बहुत प्रसिद्धि हुई थी. वहीं, अब यूरोपियन यूनियन से जीआई टैग मिलने पर विदेशों में भी ये चाय प्रसिद्ध होगी.

बता दें कि कांगड़ा चाय के इतिहास करीब 174 साल पुराना है. साल 1849 में बॉटनिकल टी गार्डन के तत्कालीन अधीक्षक डॉ. जेम्सन ने कांगड़ा क्षेत्र घूमने आए थे. इस दौरान उन्होंने जब ये क्षेत्र देखा तो उन्हें ये चाय की खेती के ल‍िए सबसे मुफीद लगा. इसके बाद उन्होंने कांगड़ा को चाय की खेती के लिए आदर्श बताया था. मौजूदा समय में वैश्व‍िक स्तर पर अपनी छाप छोड़ रहा है.

कांगड़ा चाय का स्वाद है खास: कांगड़ा चाय की खेती अन्य चाय बागान क्षेत्रों की तुलना में सबसे कम में होती है. वहीं, कांगड़ा चाय की व‍िशेष पहचान हरी और काली चाय है, काली चाय का स्वाद मीठा है. वहीं, हरी चाय में एक वुडी सुगंध होती है. इस वजह से कांगड़ा की चाय की बेहद ही मांग है. इसके स्वाद की वजह से स्थानीय स्तर पर ही इसकी खपत बहुत अध‍िक होती है, जबक‍ि इसका न‍िर्यात भी होता है.

Read Also- हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा TEA को मिला GI टैग, खासियतें जानकर आप भी हो जाएंगे हैरान

पालमपुर के विधायक और CPS आशीष बुटेल

शिमला: अपने स्वाद के लिए देश भर में मशहूर कांगड़ा चाय अब विदेशों में भी मशहूर होने वाली है. यूरोपियन यूनियन ने कांगड़ा चाय को जीआई टैग दे दिया है. जीआई टैग मिलने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कांगड़ा चाय की पहचान और मजबूत होगी. वहीं, जीआई टैग मिलने पर पालमपुर के विधायक और सरकार में CPS आशीष बुटेल ने यूरोपियन यूनियन का आभार जताया है और कहा कि ये बहुत बड़ी उपलब्धि है.

CPS आशीष बुटेल ने कहा कि कांगड़ा चाय को हाल ही में जीआई टैग मिला है. टैग मिलने का मकसद यह है कि एक एरिया चयनित किया जाता है. जहां इस तरह की चाय होती है. यूरोपियन यूनियन ने कांगड़ा चाय को इसके लिए चुना है और जीआई टैग दिया है. अब विदेशों में कांगड़ा चाय के नाम से चाय प्रसिद्ध होगी और वहां पर बिक सकती है. जो भी लोग कांगड़ा चाय का एक्सपोर्ट का कार्य करते हैं उनके लिए उनके लिए बहुत फायदेमंद है.

उन्होंने कहा कि हिमाचल में 2500 हेक्टेयर पर चाय की खेती होती है. कंगड़ा चाय की क्वलिटी काफी अच्छी है और लंबी पत्ती वाली चाय के नाम से भी इसे जाना जाता है. कांगड़ा चाय को भारतवर्ष में पहले ही जीआई टैग मिला हुआ है. जिससे कांगड़ा चाय की बहुत प्रसिद्धि हुई थी. वहीं, अब यूरोपियन यूनियन से जीआई टैग मिलने पर विदेशों में भी ये चाय प्रसिद्ध होगी.

बता दें कि कांगड़ा चाय के इतिहास करीब 174 साल पुराना है. साल 1849 में बॉटनिकल टी गार्डन के तत्कालीन अधीक्षक डॉ. जेम्सन ने कांगड़ा क्षेत्र घूमने आए थे. इस दौरान उन्होंने जब ये क्षेत्र देखा तो उन्हें ये चाय की खेती के ल‍िए सबसे मुफीद लगा. इसके बाद उन्होंने कांगड़ा को चाय की खेती के लिए आदर्श बताया था. मौजूदा समय में वैश्व‍िक स्तर पर अपनी छाप छोड़ रहा है.

कांगड़ा चाय का स्वाद है खास: कांगड़ा चाय की खेती अन्य चाय बागान क्षेत्रों की तुलना में सबसे कम में होती है. वहीं, कांगड़ा चाय की व‍िशेष पहचान हरी और काली चाय है, काली चाय का स्वाद मीठा है. वहीं, हरी चाय में एक वुडी सुगंध होती है. इस वजह से कांगड़ा की चाय की बेहद ही मांग है. इसके स्वाद की वजह से स्थानीय स्तर पर ही इसकी खपत बहुत अध‍िक होती है, जबक‍ि इसका न‍िर्यात भी होता है.

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