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26 नवंबर को होगी मजदूरों की राष्ट्रव्यापी हड़ताल, शिमला में ट्रेड यूनियनों की बैठक में फैसला

कर्मचारियों की ओर से मोदी सरकार की मजदूर, कर्मचारी और किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ राष्ट्रव्यापी हड़ताल की जाएगी. इस दिन हिमाचल प्रदेश के सभी उद्योग व संस्थान बंद रहेंगे और मजदूर, कर्मचारी सड़कों पर उतरकर आंदोलन करेंगे. हड़ताल को सफल बनाने के लिए इससे पहले ब्लॉक, जिला और राज्य स्तर पर ट्रेड यूनियनों और कर्मचारी फेडरेशनोंं की संयुक्त बैठकें होंगी.

केंद्रीय ट्रेड यूनियन
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Published : Oct 27, 2020, 4:28 PM IST

शिमला: 26 नवंबर को होने वाली राष्ट्रव्यापी हड़ताल के सिलसिले में केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और राष्ट्रीय फेडरेशनों के हिमाचल प्रदेश के संयुक्त मंच की बैठक सीटू कार्यालय शिमला में सम्पन्न हुई. संयुक्त मंच ने ऐलान किया है कि 26 नवंबर को देश के करोड़ों मजदूरों और

कर्मचारियों की ओर से मोदी सरकार की मजदूर, कर्मचारी और किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ राष्ट्रव्यापी हड़ताल की जाएगी. इस दिन हिमाचल प्रदेश के सभी उद्योग व संस्थान बंद रहेंगे और मजदूर, कर्मचारी सड़कों पर उतरकर आंदोलन करेंगे. हड़ताल को सफल बनाने के लिए इससे पहले ब्लॉक, जिला और राज्य स्तर पर ट्रेड यूनियनों और कर्मचारी फेडरेशनोंं की संयुक्त बैठकें होंगी.

ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच के हिमाचल प्रदेश के संयोजक कश्मीर ठाकुर, इंटक प्रदेशाध्यक्ष बाबा हरदीप सिंह, एटक प्रदेशाध्यक्ष जगदीश भारद्वाज और सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा ने संयुक्त बयान जारी किया.

उन्होंने कहा कि 26 नवंबर को राष्ट्रीय आह्वान पर हिमाचल प्रदेश के सभी उद्योगों व संस्थानों में हड़ताल रहेगी. इस दिन सभी जिला, ब्लॉकों और स्थानीय स्तर पर प्रदर्शन होंगे. प्रदेश के लाखों मजदूर सड़कों पर उतरकर केंद्र की मोदी सरकार और प्रदेश सरकार की मजदूर व कर्मचारी विरोधी नीतियों के खिलाफ हल्ला बोलेंगे.

संयुक्त मंच ने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार पूंजीपतियों के हित में कार्य कर रही है और मजदूर विरोधी निर्णय ले रही है. पिछले सौ साल के अंतराल में बने चवालिस श्रम कानूनों को खत्म करके मजदूर विरोधी चार श्रम संहिताएं या लेबर कोड बनाना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है.

कोरोना काल का फायदा उठाते हुए मोदी सरकार के नेतृत्व में हिमाचल प्रदेश जैसी कई राज्य सरकारों ने आम जनता, मजदूरों और किसानों के लिए आपदाकाल को पूंजीपतियों और कॉरपोरेट्स के लिए अवसर में तब्दील कर दिया है.

यह सरकार लगातार गरीबों के खिलाफ कार्य कर रही है. सरकार के इन निर्णयों से अस्सी करोड़ से ज्यादा मजदूर और किसान सीधे तौर पर प्रभाविक होंगे. सरकार फैक्टरी मजदूरों के लिए बारह घण्टे के काम करने के आदेश जारी करके उन्हें बंधुआ मजदूर बनाने की कोशिश कर रही है.

संयुक्त मंच ने मांग की है कि मजदूरों का न्यूनतम वेतन इक्कीस हजार रुपये घोषित किया जाए. केंद्र और राज्य का एक समान वेतन घोषित किया जाए. किसान विरोधी हाल ही में पारित किए गए तीनों कानून को रद्द किया जाए और किसानों की फसल के लिए स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशें लागू की जाएं.

आंगनबाड़ी, मिड-डे मील, आशा और अन्य योजना कर्मियों को सरकारी कर्मचारी घोषित किया जाए. इसके अलावा नई शिक्षा नीति को वापिस लिया जाए. मनरेगा में दो सौ दिन का रोजगार दिया जाए और सरकार की ओर से घोषित दो सौ पच्चहत्तर रुपये न्यूनतम दैनिक वेतन लागू किया जाए.

श्रमिक कल्याण बोर्ड में मनरेगा व निर्माण मजदूरों का पंजीकरण सरल किया जाए. मजदूरों की पेंशन तीन हजार रुपये की जाए और उनके सभी लाभों में बढ़ोतरी की जाए. कॉन्ट्रैक्ट, फिक्स टर्म, आउटसोर्स और ठेका प्रणाली की जगह नियमित रोजगार दिया जाए. सुप्रीम कोर्ट के निर्णयानुसार समान काम का समान वेतन दिया जाए.

ये भी पढ़ें: हिमाचल में अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन अकादमी खोलने की तैयारी, साइना नेहवाल से होगा करार

शिमला: 26 नवंबर को होने वाली राष्ट्रव्यापी हड़ताल के सिलसिले में केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और राष्ट्रीय फेडरेशनों के हिमाचल प्रदेश के संयुक्त मंच की बैठक सीटू कार्यालय शिमला में सम्पन्न हुई. संयुक्त मंच ने ऐलान किया है कि 26 नवंबर को देश के करोड़ों मजदूरों और

कर्मचारियों की ओर से मोदी सरकार की मजदूर, कर्मचारी और किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ राष्ट्रव्यापी हड़ताल की जाएगी. इस दिन हिमाचल प्रदेश के सभी उद्योग व संस्थान बंद रहेंगे और मजदूर, कर्मचारी सड़कों पर उतरकर आंदोलन करेंगे. हड़ताल को सफल बनाने के लिए इससे पहले ब्लॉक, जिला और राज्य स्तर पर ट्रेड यूनियनों और कर्मचारी फेडरेशनोंं की संयुक्त बैठकें होंगी.

ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच के हिमाचल प्रदेश के संयोजक कश्मीर ठाकुर, इंटक प्रदेशाध्यक्ष बाबा हरदीप सिंह, एटक प्रदेशाध्यक्ष जगदीश भारद्वाज और सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा ने संयुक्त बयान जारी किया.

उन्होंने कहा कि 26 नवंबर को राष्ट्रीय आह्वान पर हिमाचल प्रदेश के सभी उद्योगों व संस्थानों में हड़ताल रहेगी. इस दिन सभी जिला, ब्लॉकों और स्थानीय स्तर पर प्रदर्शन होंगे. प्रदेश के लाखों मजदूर सड़कों पर उतरकर केंद्र की मोदी सरकार और प्रदेश सरकार की मजदूर व कर्मचारी विरोधी नीतियों के खिलाफ हल्ला बोलेंगे.

संयुक्त मंच ने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार पूंजीपतियों के हित में कार्य कर रही है और मजदूर विरोधी निर्णय ले रही है. पिछले सौ साल के अंतराल में बने चवालिस श्रम कानूनों को खत्म करके मजदूर विरोधी चार श्रम संहिताएं या लेबर कोड बनाना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है.

कोरोना काल का फायदा उठाते हुए मोदी सरकार के नेतृत्व में हिमाचल प्रदेश जैसी कई राज्य सरकारों ने आम जनता, मजदूरों और किसानों के लिए आपदाकाल को पूंजीपतियों और कॉरपोरेट्स के लिए अवसर में तब्दील कर दिया है.

यह सरकार लगातार गरीबों के खिलाफ कार्य कर रही है. सरकार के इन निर्णयों से अस्सी करोड़ से ज्यादा मजदूर और किसान सीधे तौर पर प्रभाविक होंगे. सरकार फैक्टरी मजदूरों के लिए बारह घण्टे के काम करने के आदेश जारी करके उन्हें बंधुआ मजदूर बनाने की कोशिश कर रही है.

संयुक्त मंच ने मांग की है कि मजदूरों का न्यूनतम वेतन इक्कीस हजार रुपये घोषित किया जाए. केंद्र और राज्य का एक समान वेतन घोषित किया जाए. किसान विरोधी हाल ही में पारित किए गए तीनों कानून को रद्द किया जाए और किसानों की फसल के लिए स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशें लागू की जाएं.

आंगनबाड़ी, मिड-डे मील, आशा और अन्य योजना कर्मियों को सरकारी कर्मचारी घोषित किया जाए. इसके अलावा नई शिक्षा नीति को वापिस लिया जाए. मनरेगा में दो सौ दिन का रोजगार दिया जाए और सरकार की ओर से घोषित दो सौ पच्चहत्तर रुपये न्यूनतम दैनिक वेतन लागू किया जाए.

श्रमिक कल्याण बोर्ड में मनरेगा व निर्माण मजदूरों का पंजीकरण सरल किया जाए. मजदूरों की पेंशन तीन हजार रुपये की जाए और उनके सभी लाभों में बढ़ोतरी की जाए. कॉन्ट्रैक्ट, फिक्स टर्म, आउटसोर्स और ठेका प्रणाली की जगह नियमित रोजगार दिया जाए. सुप्रीम कोर्ट के निर्णयानुसार समान काम का समान वेतन दिया जाए.

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