शिमला: देश की सियासत इन दिनों 5 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के इर्द गिर्द घूम रही है. खासकर देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश को लेकर हर दल ने कमर कसी हुई है. यूपी में चुनाव कोई भी है जातिगत समीकरण और जाति की बात के बिना अधूरी है. हिमाचल में भी इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं, यूपी से इतर यहां भले जात-पात या जातिगत समीकरण का बोल बाला उस स्तर का ना हो, लेकिन हिमाचल का सियासी इतिहास और सियासी दलों की हर प्लानिंग बताती है कि जाति के बिना सियासत यहां भी अधूरी (caste factor play an important role in himachal) है.
हिमाचल का जातिगत समीकरण ?- उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में जाति की राजनीति एक कड़वा सच है. हिमाचल में इतनी कड़वाहट भले ना घुली हो, लेकिन जाति के फैक्टर पर ही सियासत (caste factor in himachal) की हर चाल चली जाती है. हिमाचल का सियासी इतिहास बताता है कि यहां सियासत से लेकर सत्ता तक में राजपूतों का वर्चस्व रहा है.
जनसंख्या के आधार पर जातिगत समीकरण- साल 2011 की जनगणना (himachal census 2011) के मुताबिक हिमाचल में 50 फीसदी से अधिक आबादी सवर्ण है. 50.72 फीसदी इस आबादी में सबसे ज्यादा 32.72 फीसदी राजपूत हैं और 18 फीसदी ब्राह्मण, इसके अलावा अनुसूचित जाति की आबादी 25.22% और अनुसूचित जनजाति की आबादी 5.71% है. प्रदेश में ओबीसी 13.52 फीसदी और अल्पसंख्यक 4.83 फीसदी हैं.
प्रदेश का सियासी नक्शा- हिमाचल प्रदेश में 68 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें से 17 सीटें अनुसूचित जाति (SC) और 3 सीटें अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित हैं. इसी तरह 4 लोकसभा सीटों में से शिमला की सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं.
हिमाचल के 6 में से 5 सीएम राजपूत- हिमाचल प्रदेश के अब तक 6 मुख्यमंत्री (list of himachal cm) रहे हैं. जिनमें से सबसे ज्यादा 5 मुख्यमंत्री राजपूत (Rajput Chief Ministers of Himachal) थे जबकि शांता कुमार इकलौते ब्राह्मण मुख्यमंत्री (Brahmin Chief Minister of Himachal) रहे, जिन्होंने 2 बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. हिमाचल निर्माता यशवंत परमार प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री रहे. उन्होंने 4 बार सूबे की कमान संभाली. इसके अलावा रामलाल ठाकुर दो बार, वीरभद्र सिंह ने 6 बार और प्रेम कुमार धूमल ने दो बार हिमाचल के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. साल 2017 में जयराम ठाकुर ने पहली बार प्रदेश की कमान संभाली.
13वीं विधानसभा का सूरत-ए-हाल- 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी की सत्ता में वापसी हुई और जयराम ठाकुर पहली बार मुख्यमंत्री बने. वैसे 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश की जनता ने करीब 50 फीसदी चेहरों को विधानसभा पहुंचाया. कुल 68 विधानसभा सीटों में से 48 सीटें अनारक्षित हैं, इनमें से 33 सीटों पर राजपूत चेहरों को जीत मिली. जिनमें बीजेपी के 18, कांग्रेस से 12, सीपीआईएम का एक और दो निर्दलीय चेहरे विधायक बने.
जयराम मंत्रिमंडल का जातिगत समीकरण- हिमाचल मंत्रिमंडल में सीएम जयराम ठाकुर को मिलाकर कुल 12 मंत्री हैं. इनमें से 6 मंत्री राजपूत हैं, मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के अलावा मंत्रियों में महेंद्र सिंह, बिक्रम सिंह, गोबिंद सिंह ठाकुर, राकेश पठानिया शामिल हैं.
सत्ता और संगठन का जातिगत तालमेल- बीजेपी जब विपक्ष में रही तो प्रदेश अध्यक्ष राजपूत चेहरे सतपाल सत्ती को बनाया गया. इस वक्त कांग्रेस विपक्ष में है तो प्रदेश में पार्टी की कमान कुलदीप राठौर के हाथ है. बीजेपी के सत्ता में आने के बाद पहले राजीव बिंदल और फिर अनुसूचित जाति से संबंध रखने वाले शिमला के सांसद सुरेश कश्यप को संगठन की कमान सौंप दी. जनसंख्या के लिहाज से राजपूतों के बाद एससी समुदाय का नंबर है. इसके अलावा ब्राह्मण हिमाचल की सियासत में किंगमेकर की भूमिका निभाते हैं. शांता कुमार के अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम हिमाचल के कद्दावर ब्राह्मण नेता हैं. इसके अलावा बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का संबंध भी हिमाचल से है.
वीरभद्र सिंह सबसे ज्यादा बार रहे मुख्यमंत्री- वीरभद्र सिंह को हिमाचल की जनता राजा साहब के नाम से जानती है. वीरभद्र सिंह ने हिमाचल की सत्ता में जो मुकाम हासिल किया उसके आस-पास भी कोई नहीं पहुंच पाया है. 7 बार विधायक, 5 बार सांसद और केंद्रीय मंत्री रह चुके वीरभद्र सिंह वैसे तो 5 बार मुख्यमंत्री बने लेकिन वो हमेशा खुद को 6 बार का मुख्यमंत्री कहते थे.
दरअसल, साल 1998 में हिमाचल विधानसभा के लिए चुनाव हुए. तो उस समय कुल 65 सीटों पर हुए चुनाव हुए. जिनमें से कांग्रेस को 31 सीटें मिली और भाजपा को 29 सीटों से संतोष करना पड़ा. एक सीट पर मौजूदा भाजपा विधायक रमेश धवाला आजाद उम्मीदवार के रूप में जीते थे. पहले ध्वाला ने कांग्रेस और बाद में भाजपा को समर्थन दिया था. हालांकि, कांग्रेस सरकार एक पखवाड़े तक चल सकी थी लेकिन वीरभद्र सिंह शपथ ग्रहण के बाद विधानसभा में बहुमत साबित करने नहीं आए थे और एक पखवाड़े के अंदर ही वीरभद्र सिंह ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद 24 मार्च 1998 को भाजपा ने हिमाचल विकास कांग्रेस के साथ सरकार का गठन किया, जोकि पांच साल तक चली थी. प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल भाजपा और हिविकां की गठबंधन सरकार में पहली बार मुख्यमंत्री बने.
हिमाचल की सियासत के दमदार ठाकुर- हिमाचल प्रदेश की सियासत की बात करें तो यहां राजपूतों का शुरुआत से ही दबदबा रहा है. बड़े नेताओं में डॉ. वाईएस परमार, वीरभद्र सिंह, रामलाल ठाकुर, प्रेम कुमार धूमल, कर्म सिंह ठाकुर, ठाकुर जगदेव चंद, जयराम ठाकुर, अनुराग ठाकुर, जेबीएल खाची, कौल सिंह ठाकुर, गुलाब सिंह ठाकुर, महेश्वर सिंह, गंगा सिंह ठाकुर, महेंद्र सिंह ठाकुर, कुंजलाल ठाकुर, गोविंद सिंह ठाकुर, मेजर विजय सिंह मनकोटिया, प्रतिभा सिंह, सुजान सिंह पठानिया, गुमान सिंह ठाकुर, हर्षवर्धन सिंह, रामलाल ठाकुर, सुखविंद्र सिंह ठाकुर का नाम शामिल है. भाजपा और कांग्रेस दोनों में ही राजपूत नेताओं की धमक रही है.
हिमाचल विधानसभा चुनाव 2022- इस साल के आखिर में हिमाचल में विधानसभा चुनाव (Himachal Assembly Election 2022) होने हैं. हिमाचल में बीते तीन दशक से ज्यादा वक्त में कोई भी सरकार हिमाचल में रिपीट नहीं हो पाई यानी कोई भी लगातार दो बार सरकार नहीं बन पाई. एक बार कांग्रेस और दूसरी बार सत्ता का ताज बीजेपी के सिर ही सजता है. ऐसे में इस बार क्या होगा ? क्या बीजेपी इस इतिहास को झुठला पाएगी? या सत्ता में कांग्रेस की वापसी होगी ? हर बार की तरह दोनों पार्टियां अपनी-अपनी जीत का दावा कर रही है. लेकिन सच ये है कि हिमाचल का जातिगत समीकरण ही तय करेगी कि प्रदेश किसके साथ है. सियासी जानकार मानते हैं कि इस बार भी जातिगत समीकरण के मामले में ज्यादा कुछ नहीं बदलने वाला, क्योंकि हिमाचल की शांत वादियों में जाति का शोर उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारों की तरह भले ना गूंजता हो. लेकिन यहां का जातिगत समीकरण चुपचाप अपना नतीजा सुना देता है.