शिमलाः कुछ बेहतर करने का जुनून हो तो फासले पैरों से नहीं, हौसलों से तय किए जा सकते हैं. शिमला के राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर के व्हीलचेयर टेबल टेनिस खिलाड़ी व कंप्यूटर इंजीनियर पीयूष शर्मा ने इन्दौर में राष्ट्रीय पैरा टेबल टेनिस प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीतकर हिमाचल का नाम रोशन किया है. वे नीदरलैंड्स में अंतरराष्ट्रीय पैरा टेबल टेनिस चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. अब फ्रांस में साल 2024 के अंतरराष्ट्रीय पैरालंपिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व करने का सपना पाले हुए हैं.
उमंग फाउंडेशन के संपर्क में हैं पीयूष शर्मा
हिमाचल प्रदेश राज्य विकलांगता सलाहकार बोर्ड के विशेषज्ञ सदस्य और उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो. अजय श्रीवास्तव ने बताया कि एनआईटी हमीरपुर जैसे प्रतिष्ठित संस्थान से कंप्यूटर साइंस में बीटेक करने वाले पीयूष शर्मा बैंगलोर में एक बड़ी विदेशी कंपनी में 4 साल तक सॉफ्टवेयर इंजीनियर रह चुके हैं. आजकल गुरुग्राम प्ल्कशा यूनिवर्सिटी में एक वर्ष की टेक-लीडर्स फेलोशिप पर उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के विशेषज्ञ पीयूष ऐसे कई प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं, जिनसे विकलांग व्यक्तियों का जीवन टेक्नोलॉजी की सहायता से बहुत आसान हो जाएगा. पीयूष शर्मा पिछ्ले तीन वर्ष से राष्ट्रीय पैरा टेबल टेनिस प्रतियोगिता में हिमाचल प्रदेश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. वर्ष 2019 में नीदरलैंड्स में डच पैरा टेबल टेनिस चैंपियनशिप में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया था. वह एक बेहतरीन मोटिवेशनल स्पीकर भी हैं और हजारों युवा उनसे प्रेरणा लेते हैं.
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पीयूष शर्मा को है रीढ़ की हड्डी की समस्या
शिमला शहर के शिवपुरी क्षेत्र के एक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे पीयूष शर्मा रीढ़ की हड्डी की समस्या के कारण चल नहीं पाते हैं. सैंट एडवर्ड स्कूल से 12वीं की परीक्षा बहुत बेहतरीन अंक से पास करने वाले पीयूष को उनके माता-पिता पीठ पर उठाकर स्कूल पहुंचाते थे. उसके बाद हमीरपुर के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी उन्होंने कंप्यूटर साइंस में बीटेक किया. आर्थिक संकट के कारण जब उन्हें पढ़ाई में दिक्कत आती थी, तो सामाजिक कार्यकर्ता उमा बाल्दी और शिमला की पूर्व मेयर मधु सूद उनकी सहायता करती थीं. वर्ष 2013 में उमंग फाउंडेशन ने पीयूष को उनकी उपलब्धियों के लिए सम्मानित भी किया था.
माता-पिता को प्रतिभाशाली बेटे पर गर्व
पीयूष की मां संतोष शर्मा और पिता अनिल कुमार शर्मा कहते हैं कि हमें अपने प्रतिभाशाली बेटे पर गर्व है, क्योंकि उसने खुद को कभी कमजोर नहीं समझा. वह कठिन से कठिन चुनौती का सामना करके आगे बढ़ा. शिमला के स्कूल में बाधारहित वातावरण न होने से विकलांग बच्चों को ज्यादा मुश्किलें पेश आती हैं. उसे रोज स्कूल ले जाना और वापस लाना हमारे लिए एक मुश्किल भरा काम था, लेकिन उसका पढ़ाई का जज्बा हमें भी ताकत देता था.
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