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ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों में हो रही तेजी से बढ़ोतरी, डॉक्टर ने की समय पर इलाज करवाने की अपील

प्रदेश के अस्पतालों में ब्रेन स्ट्रोक के मामले बढ़ते जा रहे हैं. डॉक्टरों का कहना है कि ब्रेन स्ट्रोक के लक्षण दिखाई देने पर अगर मरीज को 3 से 4 घंटे में अस्पताल पहुंचा दिया जाए तो वह ठीक हो सकता है. लोगों में जागरूकता की कमी के कारण मरीज देरी से अस्पताल पहुंचते हैं, जिससे मरीज को बचाना मुश्किल हो जाता है.

igmc shimla
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Published : Jan 21, 2021, 6:16 PM IST

शिमला: हिमाचल में कम आयु के लोग ब्रेन स्ट्रोक की चपेट में आ रहे हैं, जो कि एक चिंता का विषय बनता जा रहा है. अस्पतालों में एक साल के अंदर 300 से अधिक मरीज ब्रेन स्ट्रोक के पहुंच रहे हैं. जिसमें से 1/3 की मौत भी हो जाती है.

प्रदेश में तेजी से फैल रही ब्रेन स्ट्रोक बीमारी

ब्रेन स्ट्रोक के बारे में जानकारी देते हुए आईजीएमसी में न्यूरोलॉजी विभाग से डॉ. सुधीर शर्मा ने बताया कि ब्रेन स्ट्रोक यानी लकवा, पक्षाघात और विभिन्न नामों से जानी जाने वाली यह बीमारी प्रदेश में तेजी से फैलती जा रही है, जिसके कारण लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है. सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि अस्पताल में आने वाले 20 प्रतिशत ब्रेन स्ट्रोक के मरीज 40 साल से कम उम्र के होते हैं. इनमें 80 प्रतिशत लोग ब्लॉकेज और 15 से 20 प्रतिशत लोग हेमरेज के अस्पताल में आ रहे हैं. जिस उम्र में युवा कुछ करने की सोचता है, उस उम्र में पक्षाघात के कारण वह दूसरों पर निर्भर हो कर रह जाते हैं. इसलिए प्रदेश के लोगों में इस बीमारी के प्रति जागरूकता फैलाने की जरूरत है.

वीडियो

'समय पर करवाएं इलाज'

प्रदेश के अस्पतालों में ब्रेन स्ट्रोक का इलाज करने के पूरे साधन हैं, लेकिन लोग समय से अपना इलाज नहीं करवाते हैं. यही कारण है कि लोग समय से अपना इलाज करवाना शुरू नहीं करते हैं. डॉक्टरों का कहना है कि ब्रेन स्ट्रोक के लक्षण दिखाई देने पर अगर मरीज को 3 से 4 घंटे में अस्पताल पहुंचा दिया जाए तो वह ठीक हो सकता है. लोगों में जागरूकता की कमी के कारण मरीज देरी से अस्पताल पहुंचते हैं, जिससे मरीज को बचाना मुश्किल हो जाता है.

रेन स्ट्रोक के लिए इंजेक्शन निशुल्क

सरकार ने मरीजों की सुविधा के लिए अस्पतालों में ब्रेन स्ट्रोक से बचने के लिए इंजेक्शन निशुल्क किया है. ऐसे में ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों का इलाज आसानी से हो रहा. इससे पहले मरीजों को भारी पैसे खर्च कर यह इंजेक्शन बाहर से खरीदना पड़ता था. ऐसे में बदलते परिदृश्य में ब्रेन स्ट्रोक के मामले तेजी से बढ़ते देखकर सरकार ने टी.पी.ए. यानी टिशू प्लांट एक्टिवेशन इंजेक्शन अस्पतालों में निशुल्क उपलबध करवाया है.

ब्रेन स्ट्रोक को कई नामो से भी जानते हैं. इसमें पक्षाघात, लकवा और अधरंग है. इसका कारण ब्रेन तक खून की सप्लाई प्रभावित होना है. अस्पताल में 75 फीसदी मरीज ऐसे आते हैं, जिनके मुंह, हाथ हिलना-ढुलना बंद कर देते हैं या फिर उन्हें बोलने में परेशानी होती है. कभी भी व्यक्ति में मुंह टेडा होना, हाथ का काम न करना, बोलने-सुनने में समस्या का होना और ब्रेन स्ट्रोक के लक्षण दिखाई दे तो तुरंत अस्पताल में चेक करवाना चाहिए.

IGMC में ब्रेन स्ट्रोक के इलाज की सुविधा

आईजीएमसी में इस बीमारी के मरीज आ रहे हैं. कई मरीजों का उपचार आईजीएमसी में जारी है. आईजीएमसी में ब्रेन स्ट्रोक को लेकर उपचार की पूरी सुविधा है. लोगों को यही तर्क दिया जा रहा है कि अगर इस बीमारी के कोई लक्षण दिखे तो वे समय से उपचार करवाने अस्पताल में आए.

ये भी पढे़ं- सरबजीत बॉबी के समर्थन में उतरे पूर्व CM वीरभद्र सिंह, बोलेः IGMC को न बनाए राजनीति का अखाड़ा

शिमला: हिमाचल में कम आयु के लोग ब्रेन स्ट्रोक की चपेट में आ रहे हैं, जो कि एक चिंता का विषय बनता जा रहा है. अस्पतालों में एक साल के अंदर 300 से अधिक मरीज ब्रेन स्ट्रोक के पहुंच रहे हैं. जिसमें से 1/3 की मौत भी हो जाती है.

प्रदेश में तेजी से फैल रही ब्रेन स्ट्रोक बीमारी

ब्रेन स्ट्रोक के बारे में जानकारी देते हुए आईजीएमसी में न्यूरोलॉजी विभाग से डॉ. सुधीर शर्मा ने बताया कि ब्रेन स्ट्रोक यानी लकवा, पक्षाघात और विभिन्न नामों से जानी जाने वाली यह बीमारी प्रदेश में तेजी से फैलती जा रही है, जिसके कारण लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है. सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि अस्पताल में आने वाले 20 प्रतिशत ब्रेन स्ट्रोक के मरीज 40 साल से कम उम्र के होते हैं. इनमें 80 प्रतिशत लोग ब्लॉकेज और 15 से 20 प्रतिशत लोग हेमरेज के अस्पताल में आ रहे हैं. जिस उम्र में युवा कुछ करने की सोचता है, उस उम्र में पक्षाघात के कारण वह दूसरों पर निर्भर हो कर रह जाते हैं. इसलिए प्रदेश के लोगों में इस बीमारी के प्रति जागरूकता फैलाने की जरूरत है.

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'समय पर करवाएं इलाज'

प्रदेश के अस्पतालों में ब्रेन स्ट्रोक का इलाज करने के पूरे साधन हैं, लेकिन लोग समय से अपना इलाज नहीं करवाते हैं. यही कारण है कि लोग समय से अपना इलाज करवाना शुरू नहीं करते हैं. डॉक्टरों का कहना है कि ब्रेन स्ट्रोक के लक्षण दिखाई देने पर अगर मरीज को 3 से 4 घंटे में अस्पताल पहुंचा दिया जाए तो वह ठीक हो सकता है. लोगों में जागरूकता की कमी के कारण मरीज देरी से अस्पताल पहुंचते हैं, जिससे मरीज को बचाना मुश्किल हो जाता है.

रेन स्ट्रोक के लिए इंजेक्शन निशुल्क

सरकार ने मरीजों की सुविधा के लिए अस्पतालों में ब्रेन स्ट्रोक से बचने के लिए इंजेक्शन निशुल्क किया है. ऐसे में ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों का इलाज आसानी से हो रहा. इससे पहले मरीजों को भारी पैसे खर्च कर यह इंजेक्शन बाहर से खरीदना पड़ता था. ऐसे में बदलते परिदृश्य में ब्रेन स्ट्रोक के मामले तेजी से बढ़ते देखकर सरकार ने टी.पी.ए. यानी टिशू प्लांट एक्टिवेशन इंजेक्शन अस्पतालों में निशुल्क उपलबध करवाया है.

ब्रेन स्ट्रोक को कई नामो से भी जानते हैं. इसमें पक्षाघात, लकवा और अधरंग है. इसका कारण ब्रेन तक खून की सप्लाई प्रभावित होना है. अस्पताल में 75 फीसदी मरीज ऐसे आते हैं, जिनके मुंह, हाथ हिलना-ढुलना बंद कर देते हैं या फिर उन्हें बोलने में परेशानी होती है. कभी भी व्यक्ति में मुंह टेडा होना, हाथ का काम न करना, बोलने-सुनने में समस्या का होना और ब्रेन स्ट्रोक के लक्षण दिखाई दे तो तुरंत अस्पताल में चेक करवाना चाहिए.

IGMC में ब्रेन स्ट्रोक के इलाज की सुविधा

आईजीएमसी में इस बीमारी के मरीज आ रहे हैं. कई मरीजों का उपचार आईजीएमसी में जारी है. आईजीएमसी में ब्रेन स्ट्रोक को लेकर उपचार की पूरी सुविधा है. लोगों को यही तर्क दिया जा रहा है कि अगर इस बीमारी के कोई लक्षण दिखे तो वे समय से उपचार करवाने अस्पताल में आए.

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