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बड़ी खबर: सरकारी भूमि से नहीं हटाए जाएंगे ढारे बनाकर रहने वाले, हाईकोर्ट का आदेश - शिमला लेटेस्ट न्यूज

प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकारी भूमि पर ढारे बनाकर जीवनयापन करने वाले हजारों परिवारों को बड़ी राहत देते हुए उनकी बेदखली पर तुरंत प्रभाव से रोक लगाने के आदेश दिए.

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Published : Apr 6, 2021, 8:14 PM IST

शिमला: प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकारी भूमि पर ढारे बनाकर जीवनयापन करने वाले हजारों परिवारों को बड़ी राहत देते हुए उनकी बेदखली पर तुरंत प्रभाव से रोक लगाने के आदेश दिए. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब तक सरकारी व अन्य विभागों की जमीन पर जीवन यापन करने के लिये ढारे बनाने वालों के पुनर्वास के लिए कोई उचित निर्णय नहीं ले लिया जाता तब तक उनकी बेदखली की कार्यवाही रोक दी जाए.

न्यायाधीश रवि मलिमथ ने अपने आदेशों के माध्यम से राज्य सरकार को उसके संवैधानिक दायित्वों की याद भी दिलाई. कोर्ट ने कहा कि यह सरकार का कर्तव्य है कि वह यह सुनिश्चित करे कि सभी नागरिकों का जीवनयापन का अधिकार पूर्णतया सुरक्षित है. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह भी सरकार का ही दायित्व है कि वह सरकारी भूमि की रक्षा करे. कोर्ट ने कहा कि सरकार की तरफ से याचिकाकर्ता व ऐसे ही अति निर्धन लोगों को विशेष सरंक्षण की जरूरत है ताकि वे मानव जीवन जी सके.

प्रदेश में तो क्या पूरी धरती पर एक इंच भी भूमि नहीं है: याचिकाकर्ता

मामले के अनुसार बोहरी देवी व अन्य याचिकाकर्ताओं का आरोप था कि वे प्रदेश में कई दशकों से रह रहे हैं और उनके नाम प्रदेश में तो क्या पूरी धरती पर एक इंच भी भूमि नहीं है. प्रार्थियों का मानना था कि इसी कारण वे अनेकों वर्षो से सरकारी भूमि पर छोटे छोटे ढारे बनाकर जीवन यापन कर रहे हैं.

अब सरकार ने उनका पुनर्वास किए बगैर उनके खिलाफ बेदखली प्रक्रिया आरम्भ कर दी है. सरकार का कहना था कि प्रार्थियों ने सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा किया है और सरकारी सम्पति का सरंक्षक होने के नाते उसे सरकारी भूमि खाली करवाने के लिए उनके खिलाफ बेदखली प्रक्रिया आरम्भ की गई है.

पुनर्वास के लिए 6 महीने के भीतर सरकार समक्ष प्रतिवेदन पेश करना होगा

कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के पश्चात कहा कि पूरे प्रदेश में याचिकाकर्ताओं की तरह अपना जीवन यापन करने के लिए सरकारी भूमि पर ढारे बनाने वालों को अपने पुनर्वास के लिए 6 महीने के भीतर सरकार समक्ष प्रतिवेदन पेश करना होगा. इसके पश्चात सरकार को संवैधानिक कर्तव्यों को ध्यान में रखते हुए उनके पुनर्वास बारे निर्णय लेना होगा. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब तक सरकार द्वारा ऐसे अतिनिर्धन परिवारों के लिए पुनर्वास सम्बन्धी निर्णय नहीं ले लिया जाता तब तक उनकी बेदखली प्रक्रिया पर रोक रहेगी.

ये भी पढ़ें- कोविड टीकाकरण अभियान का अनुराग ठाकुर ने किया निरीक्षण, लोगों से की ये अपील

शिमला: प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकारी भूमि पर ढारे बनाकर जीवनयापन करने वाले हजारों परिवारों को बड़ी राहत देते हुए उनकी बेदखली पर तुरंत प्रभाव से रोक लगाने के आदेश दिए. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब तक सरकारी व अन्य विभागों की जमीन पर जीवन यापन करने के लिये ढारे बनाने वालों के पुनर्वास के लिए कोई उचित निर्णय नहीं ले लिया जाता तब तक उनकी बेदखली की कार्यवाही रोक दी जाए.

न्यायाधीश रवि मलिमथ ने अपने आदेशों के माध्यम से राज्य सरकार को उसके संवैधानिक दायित्वों की याद भी दिलाई. कोर्ट ने कहा कि यह सरकार का कर्तव्य है कि वह यह सुनिश्चित करे कि सभी नागरिकों का जीवनयापन का अधिकार पूर्णतया सुरक्षित है. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह भी सरकार का ही दायित्व है कि वह सरकारी भूमि की रक्षा करे. कोर्ट ने कहा कि सरकार की तरफ से याचिकाकर्ता व ऐसे ही अति निर्धन लोगों को विशेष सरंक्षण की जरूरत है ताकि वे मानव जीवन जी सके.

प्रदेश में तो क्या पूरी धरती पर एक इंच भी भूमि नहीं है: याचिकाकर्ता

मामले के अनुसार बोहरी देवी व अन्य याचिकाकर्ताओं का आरोप था कि वे प्रदेश में कई दशकों से रह रहे हैं और उनके नाम प्रदेश में तो क्या पूरी धरती पर एक इंच भी भूमि नहीं है. प्रार्थियों का मानना था कि इसी कारण वे अनेकों वर्षो से सरकारी भूमि पर छोटे छोटे ढारे बनाकर जीवन यापन कर रहे हैं.

अब सरकार ने उनका पुनर्वास किए बगैर उनके खिलाफ बेदखली प्रक्रिया आरम्भ कर दी है. सरकार का कहना था कि प्रार्थियों ने सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा किया है और सरकारी सम्पति का सरंक्षक होने के नाते उसे सरकारी भूमि खाली करवाने के लिए उनके खिलाफ बेदखली प्रक्रिया आरम्भ की गई है.

पुनर्वास के लिए 6 महीने के भीतर सरकार समक्ष प्रतिवेदन पेश करना होगा

कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के पश्चात कहा कि पूरे प्रदेश में याचिकाकर्ताओं की तरह अपना जीवन यापन करने के लिए सरकारी भूमि पर ढारे बनाने वालों को अपने पुनर्वास के लिए 6 महीने के भीतर सरकार समक्ष प्रतिवेदन पेश करना होगा. इसके पश्चात सरकार को संवैधानिक कर्तव्यों को ध्यान में रखते हुए उनके पुनर्वास बारे निर्णय लेना होगा. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब तक सरकार द्वारा ऐसे अतिनिर्धन परिवारों के लिए पुनर्वास सम्बन्धी निर्णय नहीं ले लिया जाता तब तक उनकी बेदखली प्रक्रिया पर रोक रहेगी.

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