शिमलाः खुशहाली और संपन्नता का पर्व बैसाखी राजधानी शिमला में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. राजधानी के सभी गुरुद्वारों को दुल्हन की तरह सजाया गया. 322वां खालसा सृजना दिवस के उपलक्ष्य पर सिख समुदाय व लोगों ने गुरुद्वारा में जाकर माथा टेका. बैसाखी के इस शुभ अवसर पर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम का आयोजन किया गया.
बैशाखी के मौके पर शिमला के सभी गुरुद्वारों में कीर्तन का आयोजन किया गया. राजधानी के बस स्टैंड स्थित गुरुद्वारा साहिब में कीर्तन पाठ किया गया, वहीं कोरोना के चलते इस बार बैसाखी के अवसर पर गुरु सिंह सभा शिमला की ओर से पैकिंग लंगर का आयोजन किया गया.
कोरोना के नियमों को ध्यान में रखते हुए मनाया बैसाखी पर्व
वहीं, सिंह सभा के प्रमुख सेवादार जसविंदर सिंह ने सभी प्रदेश वासियों को बैसाखी पर्व की शुभकामनाएं दी. उन्होंने कहा कि इस बार कोरोना के नियमों को ध्यान में रखते हुए बैसाखी पर्व मनाया जा रहा है. उन्होंने बताया कि शिमला के हर गुरुद्वारे में बैसाखी पर्व मनाया जा रहा है ताकि शिमला की संगत बंट जाए और किसी भी गुरुद्वारे में भीड़ न हो. उन्होंने कहा कि इस पर्व पर हर साल सिटिंग लंगर लगता था लेकिन महामारी की वजह से इस बार पैकिंग में संगत को लंगर दिया जा रहा है. उन्होंने कहा कि हमने संगत को भी विशेष हिदायत दे रखी है कि मास्क, सोशल डिस्टनसिंग का भी विशेष ध्यान रखें.
बैसाखी का महत्व
बैसाखी पर्व को ऋतु परिवर्तन का पर्व भी माना जाता है इसलिए इस पर्व के उपलक्ष्य पर श्रद्धालुओं ने सर्दी को अलविदा कहकर गर्मी के मौसम का स्वागत करने की तैयारी की. सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह ने इसी दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी जिसके कारण इस त्यौहार की महानता और गरिमा और बढ़ जाती है.
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