शिमला: भारत मे सबसे अधिक आंखों की बीमारी सफेद मोतिया बिंद और समय पर इलाज न करने की वजह से बढ़ रही है. कल वर्ल्ड आई साइट डे था. हर साल अक्टूबर के दूसरे गुरूवार को आंखों से संबंधित बीमारियों और उसके इलाज के प्रति लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से यह दिवस मनाया जाता है.
पूरी दुनिया मे इस दिन लोगों को आंखों के महत्व के बारे में बताया जाता है. इस दुनिया के रंगों को देखने के लिए आंखे हमारे शरीर का एक अभिन्न अंग है. इसके बिना दुनिया बेरंग है. दुनिया में एक से एक रंग है. प्रकृति की सुंदरता है, जिसको केवल आंखों से निहारा जा सकता है, लेकिन हमारी इस दुनिया मे ऐसे भी लोग हैं जिनकी आंखों मे रोशनी नहीं हैं. उनके लिए दुनिया का एक ही रंग है. आंखे हमारे शरीर के सबसे संवेदनशील अंगों में से एक हैं. इसलिए इनकी खास देखभाल बहुत जरूरी हो जाती है.
डिजिटल होती तकनीक में आज हर आदमी स्मार्ट फोन और कम्प्यूटर का अधिक प्रयोग कर रहे है. आंखों की देखरेख के लिए ठियोग में भी एक जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया. ठियोग अस्पताल में आयोजित इस कार्यक्रम में आंखों के मरीजों और अन्य लोगों को आंखों की देखरेख के बारे में जानकारी दी गई.
ठियोग अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी डॉ. दलीप टेक्टा ने कहा कि आंखों की देखरेख हर आदमी के लिए जरूरी है. उन्होंने कहा कि उम्र के साथ हर आदमी को सफेद और काले मोतिया होता है, लेकिन अगर समय-समय पर लोग आंखों का चेकअप करें तो इन रोगों से बचा जा सकता है. बच्चों और आम लोगों में बढ़ रही मोबाइल की लत से बचने की भी उन्होंने सलाह दी और कहा कि जितना अधिक हो सके बच्चों को मोबाइल से दूर रखना चाहिए. उन्होंने कहा कि मोबाइल की वजह से बच्चों की आंखे ड्राई हो जाती है और गर्दन की दर्द और मानसिक परेशानी का कारण भी इससे ज्यादा हो जाता है.
उन्होंने कहा कि इससे बचने के लिए मोबाइल का कम प्रयोग और लोगों को साल में एक दो बार नियमित रूप से आंखों का चेकअप कराना चाहिए. बता दे कि विश्व मे 36 मिलियन लोग है जो देख नहीं पाते हैं. मध्यम या गंभीर दूरी दृष्टि दोष वाले 217 मिलियन लोग अंधेपन और एमएसवीआई वाले लोगों में से 124 मिलियन लोगों में अपवर्तक त्रुटियां हैं. 65 मिलियन लोगों में मोतियाबिंद है.
इन लक्षणों को न करें अनदेखाः
- अक्सर मूविंग स्पॉट (आई फ्लोटिंग्स) नजर आना
- ब्लैक और ग्रे डॉट्स दिखना
- टेढी-मेढ़ी लाइनें दिखना
- मकड़ी के जाले जैसा दिखना
- गोल-गोल शेप दिखना
- दूर की चीजें धुंधली दिखना
क्या है इलाज
आंखों की बीमारियों के इलाज के लिए आई-ड्रॉप्स के अलावा चश्मा लगाने की सलाह दी जाती है. कई लोग चश्मे की बजाय लेंस लगाना पसंद करते हैं, क्योंकि तमाम लोगों को चश्मा लगाना पसंद नहीं होता है. यह फिर असुविधाजनक लगता है. इसके अलावा, जरूरत पड़ने पर सर्जरी भी की जाती है.
- आंखों से जुड़ी ऊपर दी गए कोई भी समस्या होने पर चश्मा पहनना होता है. चश्मा खरीदते वक्त कुछ बातों का ख्याल रखें:
- चश्मे का लेंस और फ्रेम आरामदायक और अच्छी तरह फिट होना चाहिए.
- फ्रेम वजन में कम हो और नाक और कान पर ज्यादा दबाव न डालता हो.
- चश्मा ऐसा हो कि आंख को पूरी तरह कवर कर ले.
कब बदलें चश्मा:
- 6 महीने में चेकअप के बाद बच्चों का चश्मा बदलवा देना चाहिए.
- सामान्य शख्स 1 साल में चश्मा बदल ले तो अच्छा रहता है.
- शुगर के मरीजों को 6 महीने से 1 साल के अंतराल पर चेकअप कराना चाहिए और जरूरत हो तो चश्मा बदलवाना चाहिए.