शिमला: B यानी भाजपा और C यानी कांग्रेस, हिमाचल की राजनीति इन्हीं दो दलों के इर्द-गिर्द घूमती है. अब B और C को टक्कर देने के लिए A यानी आम आदमी पार्टी पहाड़ में आई है. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के गृह जिला मंडी से आम आदमी पार्टी ने (AAP road show in mandi) बुधवार को यहां की सियासी धरती पर अपने अस्तित्व का बीज डाला है. आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal rally in Mandi) के साथ पंजाब के सीएम भगवंत मान ने रोड शो किया. इस आयोजन में भीड़ बेशक उम्मीद से कम थी, लेकिन इस रोड शो ने भाजपा व कांग्रेस को सोच में जरूर डाल दिया है.
कारण ये है कि बिना संगठन और सक्रियता के भी आम आदमी पार्टी का एक शोर जरूर हुआ है. भाजपा के कद्दावर नेता महेंद्र सिंह ठाकुर इस चाहे मदारी की डुगडुगी बजाने से आई छोटी-मोटी भीड़ कह रहे हों, लेकिन किसी भी दल के लिए शुरुआती रुझान ऐसे ही होते हैं. फिलहाल हिमाचल की राजनीतिक चर्चा में ये सवाल तैर गया है कि क्या केजरीवाल यहां तीसरे विकल्प की उम्मीद को रोशन करेंगे? उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश में भाजपा व कांग्रेस के अलावा तीसरे विकल्प का खास स्पेस नहीं रहा है.
विगत में जनता दल, बसपा, एनसीपी ने जरूर कोशिश की, लेकिन वो कोशिश कामयाब नहीं हुई. हिमाचल विकास कांग्रेस ने जरूर कुछ समय हिमाचल की राजनीति में हलचल मचाई थी, लेकिन पंडित सुखराम के उस दल में अधिकांश नेता कांग्रेस से ही टूटकर आए थे. इसी तरह भाजपा नेता महेश्वर सिंह ने हिमाचल लोकहित पार्टी बनाई थी. हिलोपा से केवल महेश्वर सिंह ही विधायक रहे. पूर्व में बसपा को भी खास सफलता नहीं मिली. अब आम आदमी पार्टी ने कदम आगे बढ़ाया है.
वैसे तो किसी भी स्थापित दल को किसी नए दल को नजर अंदाज करने की भूल नहीं करनी चाहिए, लेकिन हिमाचल के संदर्भ में यहां के सियासी माहौल पर चर्चा जरूरी है. हिमाचल में बारी-बारी से भाजपा व कांग्रेस सत्ता में आते रहे हैं. इन दोनों दलों के पास मजबूत कैडर है. खासकर हिमाचल में भाजपा के पास छह लाख कार्यकर्ताओं की ताकत है. कांग्रेस एक स्थापित दल है और हिमाचल में इसकी प्रासंगिकता निरंतर बनी हुई है. नए जमाने के हिसाब से देखें तो भाजपा ने अपने आपको निरंतर नई परिस्थितियों में ढाला है.
भाजपा सोशल मीडिया का प्रभावशाली प्रयोग करती है. साल भर भाजपा की संगठनात्मक गतिविधियां चलती हैं. आम आदमी पार्टी के संदर्भ में बात करें, तो इसे अभी कार्यकर्ताओं की फौज बढ़ाने की चुनौती से जूझना है. भावनाओं में बहकर किसी नए दल के साथ जुड़ने वाले हमेशा साथ नहीं रहते. फिर हिमाचल प्रदेश में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में देश के अन्य राज्यों के मुकाबले अच्छा काम हुआ है. यहां आम आदमी पार्टी की लच्छेदार बातों का खास असर नहीं होगा. रैली में आए कुछ युवाओं से मीडिया की बात हुई, तो वे दिल्ली मॉडल के स्कूलों व अस्पतालों के बारे में कुछ नहीं बता पाए.
ऐसे में आम आदमी पार्टी को हिमाचल में अपने विस्तार के लिए बूथ स्तर पर काम करने की जरूरत है. अभी आम आदमी पार्टी को हिमाचल के हिसाब से रणनीति बनाने में समय लगेगा. यदि आप आने वाले समय के लिहाज से चल रही है, तो मंडी रोड शो को श्रीगणेश माना जाएगा. आम आदमी पार्टी को अभी युवाओं, किसानों, कर्मचारियों, व्यापारियों को साथ जोड़ने के लिए उनके संगठन तैयार करने बाकी हैं. चुनावी साल में इतनी जल्दी संगठन का विस्तार नहीं हो सकता. ऐसे में ये स्पष्ट है कि आम आदमी पार्टी भविष्य की सोच को लेकर आगे बढ़ने जा रही है.
अभी हिमाचल के मतदाता पंजाब में आप की सरकार की कार्यप्रणाली भी देखेंगे. भगवंत मान की सरकार को अभी तीन सौ यूनिट बिजली और हर महिला के खाते में एक हजार रुपए महीना जमा करने के वादे को पूरा करना है. जिस तरह की पंजाब की आर्थिक हालत (economic condition of punjab) है, उससे ये वादा पूरा करना आसान नहीं है. यदि पंजाब में आप सरकार ने वादे पूरे नहीं किए, तो पड़ौसी राज्य हिमाचल में चुनावी साल में उसका टिकना मुश्किल होगा. हिमाचल में इस समय एक ये भी चर्चा है कि आम आदमी पार्टी में शामिल होने वाले खुद को नेता अधिक और कार्यकर्ता कम समझ रहे हैं.
टिकट के चाहवान अधिक हैं. आप ने दावा किया है कि वो सभी 68 सीटों पर प्रत्याशी उतारेगी. आप नेता सत्येंद्र जैन ने दावा किया था कि भाजपा के कई बड़े नेता आप में शामिल होंगे. लेकिन ऐसा फिलहाल दिख नहीं रहा है. आम आदमी पार्टी चुनाव में लोक लुभावन वादे करने में विश्वास रखती है. पंजाब में फ्री का लालच देने के बाद खाली खजाने का रोना रोते हुए सीएम भगवंत मान केंद्र सरकार के पास एक लाख करोड़ रुपए की मदद मांगने पहुंच गए.
हिमाचल में बिजली देश के अन्य राज्यों के मुकाबले सस्ती है. यहां फ्री बिजली वाला दांव शायद ही कामयाब हो. अलबत्ता निजी स्कूलों की लूट के मामले पर जरूर आम आदमी पार्टी भावनात्मक बढ़त लेने का प्रयास करेगी. बाकी हिमाचल का आधारभूत ढांचा भी अच्छी हालत में है. फिर यहां कर्मचारी राजनीति की अलग जटिलता है. यदि आम आदमी पार्टी ओल्ड पेंशन स्कीम (Old pension scheme in Himachal) को बहाल करने का वादा करती है, तो उसके लिए बजट का इंतजाम करना कठिन होगा. फिर हिमाचल प्रदेश के पास खुद के आर्थिक संसाधन सीमित हैं और यहां फ्री-फ्री का नारा इतना कामयाब नहीं होगा.
हिमाचल में भाजपा सरकार ने हाल ही के बजट में सामाजिक सुरक्षा पेंशन को लेकर प्रभावशाली फैसले लिए हैं. ऐसे में आम आदमी पार्टी के लिए ऐसा मुद्दा तलाशना कठिन है, जिसे वो दोनों दलों के खिलाफ इस्तेमाल कर सके. मंडी रोड शो में अरविंद केजरीवाल ने भ्रष्टाचार दूर करने की बात को जोर देकर कहा है. अब आने वाले समय में केजरीवाल क्या रणनीति बनाते हैं, इस पर सभी की नजर है. पहाड़ की राजनीति के गहराई से परखने वाले वरिष्ठ मीडियाकर्मी विनोद भावुक का कहना है कि आम आदमी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को अभी हिमाचल की राजनीति को समझने में समय लगेगा.
संगठन को खड़ा करना आसान नहीं होता. आखिर कोई तो कारण है कि हिमाचल की जनता ने तीसरे विकल्प को कभी तरजीह नहीं दी. ये सही है कि आम आदमी पार्टी ने पंजाब में जीत हासिल की है, लेकिन हिमाचल और पंजाब की परिस्थितियां अलग हैं. वहीं, भाजपा अध्यक्ष सुरेश कश्यप का कहना है कि आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party in Himachal) का केवल शोर ही है, जमीन पर कुछ मजबूती नहीं है. फिलहाल, चुनावी साल में आने वाले समय में ये देखना रोचक होगा कि हिमाचल में ए क्या बी और सी को टक्कर देगी.
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