ETV Bharat / state

रतुआ रोग की चपेट में गेहूं की फसल, 25,200 क्विंटल अनाज हो सकता है बर्बाद

प्रदेश में कर्फ्यू के चलते किसानों को इन दिनों चौतरफी मार झेलनी पड़ रही है. करसोग की सब्जी मंडी बंद होने के कारण तैयार फसल शहरों तक नहीं पहुंच पा रही है. साथ ही अब खेतों में बीजी हुई गेहुं की फसल में भी पीले रतुए का डर सताने लगा है. किसानों ने प्रशासन से मदद की गुहार लगाई है.

Wheat crop affected of yellow rust in himachal
करसोग में रतुआ रोग की चपेट में गेहूं की फसल
author img

By

Published : Apr 5, 2020, 6:23 PM IST

करसोगः प्रदेश में लगे कर्फ्यू की सबसे अधिक मार ग्रामीण क्षेत्रों में पड़ रही है. करसोग में किसान इन दिनों चौतरफी मार झेल रहे हैं. कर्फ्यू के कारण मनरेगा सहित अन्य रोजगार पहले ही चौपट हो गए हैं. ऐसे में खरीफ की फसल न आने तक अगली छह महीने की रोटी के लिए किसान मटर सहित गेहूं की फसल पर ही निर्भर हैं.

मंडी न खुलने से मटर की फसल संकट में पड़ गई है. ऐसे में गेहूं की फसल ही एक मात्र उम्मीद बची है, लेकिन उपमंडल में गेहूं को पीला रतुआ ने अपनी चपेट में ले लिया है. करसोग के जेंस सहित कई क्षेत्रों में दिन-प्रतिदिन फसल पर पीला रतुआ का खतरा बढ़ता जा रहा है.

ऐसे में गेहूं की फसल बर्बाद होने से किसानों को आर्थिक नुकसान तो उठाना ही पड़ेगा. अगले फसल न आने तक किसानों को बाजार से ही गेहूं का आटा भी खरीदना पड़ेगा.

गेहूं की फसल को यह बीमारी करीब 10 दिनों से अधिक नजर आने लगी है. पहले गेहूं के कुछ पौधों से शुरू हुए इस रोग ने अब पूरे खेतों को अपनी चपेट में ले लिया है. इससे किसानों की परेशानियां बढ़ गई हैं.

इस बीमारी का सीधा असर उत्पादन पर पड़ेगा. यह एक फफुंद जनित रोग है, जिसमें गेहूं की पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे पड़ जाते हैं. मुरारी शर्मा का कहना है कि पूरी फसल पीला रतुआ से बर्बाद हो रही है. चार साल पहले भी इस रोग के लगने के कारण फसल को जलाकर नष्ट करना पड़ा था. विभाग से आग्रह है कि कर्मचारियों को मौके पर भेजकर फसल को देखा जाए.

वीडियो.
कैसे पहचाने पीला रतुआ:

गेहूं की फसल केवल पीला रतुआ के कारण ही पीली नहीं पड़ती है. कई बार गेहूं की पत्तियां अन्य कारणों से भी सुख कर पीली पड़ जाती हैं, जोकि एक नेचुरल प्रोसेस है. विशेषज्ञों के मुताबिक गेहूं की पत्तियां छूने पर अगर हाथ में पीला कलर लगे तो ये पीला रतुआ के लक्षण है.

अगर गेहूं की पत्तियां छूने पर हाथ पर कुछ न लगे तो ये नेचुरल प्रोसेस से सूखी हैं. पीला रतुआ पर तुरन्त प्रभाव से कीटनाशक की स्प्रे करना जरूरी है, नहीं तो ये रोग पूरी फसल को बर्बाद कर सकता है.

1400 हेक्टेयर में कई गई है गेहूं की बिजाई:

करसोग में नकदी फसलों के अतिरिक्त रबी सीजन में ली जाने वाली गेहूं एक प्रमुख फसल है. इस बार उपमंडल के विभन्न क्षेत्रों में 1400 हेक्टेयर के करीब कृषि योग्य भूमि में गेहूं की बिजाई की गई है. कृषि विभाग ने इस बार 25,200 क्विंटल गेहूं उत्पादन का लक्ष्य रखा है.

ऐसे में अगर समय रहते पीला रतुआ पर काबू नहीं पाया गया तो आने वाले समय में उत्पादन पर इसका सीधा असर पड़ेगा. खरीफ की अगली फसल अभी सितम्बर या अक्टूबर में आएगी. ऐसे में किसान तब तक गेहूं की फसल पर ही निर्भर रहते हैं.

प्रोपीकोनाजोल का करें छिड़काव: एसएमएस

कृषि विभाग करसोग के विषय वार्ता विशेषज्ञ (एसएमएस) रामकृष्ण चौहान का कहना है कि किसान पीला रतुआ पर काबू पाने के लिए एक लीटर पानी में एक मिलीलीटर प्रोपीकोनाजोल का छिड़काव करें. ये कीटनाशक कॄषि विभाग के सेल सेंटरों पर उपलब्ध है. इसके अतिरिक्त पीला रतुआ से बचाव के लिए गेहूं पर जीवामृत का भी छिड़काव किया जा सकता है.

पढ़ेंः 'जमातियों' को डीजीपी का अल्टीमेटम, 5 बजे तक पहचान बताओ वरना दर्ज होगा हत्या की कोशिश का केस

करसोगः प्रदेश में लगे कर्फ्यू की सबसे अधिक मार ग्रामीण क्षेत्रों में पड़ रही है. करसोग में किसान इन दिनों चौतरफी मार झेल रहे हैं. कर्फ्यू के कारण मनरेगा सहित अन्य रोजगार पहले ही चौपट हो गए हैं. ऐसे में खरीफ की फसल न आने तक अगली छह महीने की रोटी के लिए किसान मटर सहित गेहूं की फसल पर ही निर्भर हैं.

मंडी न खुलने से मटर की फसल संकट में पड़ गई है. ऐसे में गेहूं की फसल ही एक मात्र उम्मीद बची है, लेकिन उपमंडल में गेहूं को पीला रतुआ ने अपनी चपेट में ले लिया है. करसोग के जेंस सहित कई क्षेत्रों में दिन-प्रतिदिन फसल पर पीला रतुआ का खतरा बढ़ता जा रहा है.

ऐसे में गेहूं की फसल बर्बाद होने से किसानों को आर्थिक नुकसान तो उठाना ही पड़ेगा. अगले फसल न आने तक किसानों को बाजार से ही गेहूं का आटा भी खरीदना पड़ेगा.

गेहूं की फसल को यह बीमारी करीब 10 दिनों से अधिक नजर आने लगी है. पहले गेहूं के कुछ पौधों से शुरू हुए इस रोग ने अब पूरे खेतों को अपनी चपेट में ले लिया है. इससे किसानों की परेशानियां बढ़ गई हैं.

इस बीमारी का सीधा असर उत्पादन पर पड़ेगा. यह एक फफुंद जनित रोग है, जिसमें गेहूं की पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे पड़ जाते हैं. मुरारी शर्मा का कहना है कि पूरी फसल पीला रतुआ से बर्बाद हो रही है. चार साल पहले भी इस रोग के लगने के कारण फसल को जलाकर नष्ट करना पड़ा था. विभाग से आग्रह है कि कर्मचारियों को मौके पर भेजकर फसल को देखा जाए.

वीडियो.
कैसे पहचाने पीला रतुआ:

गेहूं की फसल केवल पीला रतुआ के कारण ही पीली नहीं पड़ती है. कई बार गेहूं की पत्तियां अन्य कारणों से भी सुख कर पीली पड़ जाती हैं, जोकि एक नेचुरल प्रोसेस है. विशेषज्ञों के मुताबिक गेहूं की पत्तियां छूने पर अगर हाथ में पीला कलर लगे तो ये पीला रतुआ के लक्षण है.

अगर गेहूं की पत्तियां छूने पर हाथ पर कुछ न लगे तो ये नेचुरल प्रोसेस से सूखी हैं. पीला रतुआ पर तुरन्त प्रभाव से कीटनाशक की स्प्रे करना जरूरी है, नहीं तो ये रोग पूरी फसल को बर्बाद कर सकता है.

1400 हेक्टेयर में कई गई है गेहूं की बिजाई:

करसोग में नकदी फसलों के अतिरिक्त रबी सीजन में ली जाने वाली गेहूं एक प्रमुख फसल है. इस बार उपमंडल के विभन्न क्षेत्रों में 1400 हेक्टेयर के करीब कृषि योग्य भूमि में गेहूं की बिजाई की गई है. कृषि विभाग ने इस बार 25,200 क्विंटल गेहूं उत्पादन का लक्ष्य रखा है.

ऐसे में अगर समय रहते पीला रतुआ पर काबू नहीं पाया गया तो आने वाले समय में उत्पादन पर इसका सीधा असर पड़ेगा. खरीफ की अगली फसल अभी सितम्बर या अक्टूबर में आएगी. ऐसे में किसान तब तक गेहूं की फसल पर ही निर्भर रहते हैं.

प्रोपीकोनाजोल का करें छिड़काव: एसएमएस

कृषि विभाग करसोग के विषय वार्ता विशेषज्ञ (एसएमएस) रामकृष्ण चौहान का कहना है कि किसान पीला रतुआ पर काबू पाने के लिए एक लीटर पानी में एक मिलीलीटर प्रोपीकोनाजोल का छिड़काव करें. ये कीटनाशक कॄषि विभाग के सेल सेंटरों पर उपलब्ध है. इसके अतिरिक्त पीला रतुआ से बचाव के लिए गेहूं पर जीवामृत का भी छिड़काव किया जा सकता है.

पढ़ेंः 'जमातियों' को डीजीपी का अल्टीमेटम, 5 बजे तक पहचान बताओ वरना दर्ज होगा हत्या की कोशिश का केस

For All Latest Updates

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.