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रोचक हिमाचल: पराशर झील का भूभाग बदलता रहता है अपना स्थान, पानी माना जाता है औषधी

आज के आधुनिक युग में कई ऐसे प्राचीन प्रमाण मौजूद हैं जो विज्ञान की समझ से परे हैं. ऐसे प्रमाणों को दैवीय चमत्कार के सिवाय और दूसरा कोई नाम नहीं दिया जा सकता. ऐसा ही दैवीय प्रमाण देखने को मिलता है पराशर झील में.

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Published : Feb 9, 2019, 9:07 AM IST

मंडी: आज के आधुनिक युग में कई ऐसे प्राचीन प्रमाण मौजूद हैं जो विज्ञान की समझ से परे हैं. ऐसे प्रमाणों को दैवीय चमत्कार के सिवाय और दूसरा कोई नाम नहीं दिया जा सकता. ऐसा ही दैवीय प्रमाण देखने को मिलता है पराशर झील में.
इस झील के बीच एक भूभाग है जो अपने आप चलता है और अपनी दिशा बदलता रहता है. देवभूमि हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला मुख्यालय से करीब 56 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. देवता पराशर ऋषि का मंदिर और प्राचीन झील का नाम पराशर ऋषि के नाम पर ही पड़ा.
पुराणों के अनुसार ऋषि पराशर ने इस स्थान पर तप किया था. यहां पराशर ऋषि का मंदिर तो 14वीं और 15वीं शताब्दी में मंडी रियासत के तत्कालीन राजा बानसेन ने बनवाया था, लेकिन झील के बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं. माना जाता है कि जबसे संसार का निर्माण हुआ तभी यह झील भी बनी.

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पराशर झील

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9,100 फुट की उंचाई पर बनी इस झील में पानी कहां से आता है और कहां जाता है किसी को कोई खबर नहीं, लेकिन यह पानी ठहरा हुआ भी नहीं है. इस झील के बीच में एक भूभाग है और यही भूभाग यहां किसी दैवीय शक्ति के होने का प्रमाण देता है.
यह भूभाग एक प्रकार से पृथ्वी के अनुपात को भी दर्शाता है. यह भूभाग एक स्थान पर नहीं रहता बल्कि चलता रहता है. कभी यह एक छोर पर नजर आता है तो कभी दूसरे छोर पर. पराशर देवता मंदिर कमेटी के प्रधान बलवीर ठाकुर बताते हैं कि वर्षों पहले यह भूभाग सुबह पूर्व की तरफ होता था और शाम को पश्चिम की तरफ. इसके चलने और रूकने को पुण्य और पाप के साथ जोड़कर देखा जाता है.
हालांकि अब यह भूभाग कभी कुछ महीनों के लिए एक ही स्थान पर रूक भी जाता है और कभी चलने लग जाता है. कुछ लोगों ने इस भूभाग को रोकने का प्रयास भी किया था लेकिन वो इसमें सफल नहीं हो सके और देवता से क्षमा याचना करके माफी मांगी थी. इलाके के दर्जनों देवी-देवता इस पवित्र झील के पास आकर स्नान करते हैं. पुजारी देवलुओं के साथ देवरथों को झील के पास लाते हैं और यहां के पानी से देवरथों का स्नान करवाते हैं.
पराशर झील की गहराई को आज दिन तक कोई नहीं नाप सका. हालांकि विज्ञान के लिए यह खोज का विषय हो सकता है लेकिन वैज्ञानिक भी इस स्थान तक नहीं पहुंच पाए हैं. मंदिर कमेटी के प्रधान बलवीर ठाकुर बताते हैं कि सदियों पूर्व एक राजा ने झील की गहराई रस्सियों से नापने की कोशिश की थी, लेकिन सफलता नहीं मिली. ऐसा भी बताया जाता है कि कुछ दशक पूर्व एक विदेशी महिला ऑक्सिजन सिलेंडर के साथ इस झील में गई थी, लेकिन उसके साथ अंग्रेजी में संवाद करने वाला कोई नहीं था जिस कारण यह मालूम नहीं चल सका कि वो झील में कितना नीचे तक गई थी. झील के अंदर क्या रहस्य है इस बात का पता आज दिन तक कोई नहीं लगा सका है.
पराशर मंदिर कमेटी प्रधान बलवीर ठाकुर ने बताया कि पराशर ऋषि मंदिर और इस झील के प्रति लोगों की भारी आस्था है. यह मंदिर पैगोड़ा शैली में बना है और इसका सुंदर नजारा देखते ही बनता है. बलवीर ठाकुर बताते हैं कि मंदिर में मांगी गई हर मुराद पूरी होती है और यदि किसी को कोई शारीरिक कष्ट हो तो देवता के आदेश पर वो कुछ दिन यहां रूककर झील के पानी का सेवन करता है, जिससे उसकी बीमारियां दूर हो जाती हैं. इसके साथ ही दंपति यहां पुत्र प्राप्ति के लिए भी आते हैं.
पराशर मंदिर सिर्फ गर्मियों के मौसम में ही जाया जा सकता है और यही कारण है कि आजकल यहां श्रद्धालुओं की भरमार देखने को मिल रही है. मंदिर में आए हुए श्रद्धालुओं का कहना है कि देवता के दर्शन के साथ इस जगह पर आकर गर्मी से भी निजात मिलती है.
बता दें कि पराशर ऋषि को मंडी रियासत के राजपरिवार का विशेष देवता माना गया है. राजपरिवार के सभी सदस्यों के मुंडन संस्कार इसी मंदिर में आकर करवाए जाते हैं. पहले मंदिर तक पैदल पहुंचा जाता था लेकिन अब सड़क मार्ग बनने से श्रद्धालुओं को अच्छी सुविधा हो गई.

मंडी: आज के आधुनिक युग में कई ऐसे प्राचीन प्रमाण मौजूद हैं जो विज्ञान की समझ से परे हैं. ऐसे प्रमाणों को दैवीय चमत्कार के सिवाय और दूसरा कोई नाम नहीं दिया जा सकता. ऐसा ही दैवीय प्रमाण देखने को मिलता है पराशर झील में.
इस झील के बीच एक भूभाग है जो अपने आप चलता है और अपनी दिशा बदलता रहता है. देवभूमि हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला मुख्यालय से करीब 56 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. देवता पराशर ऋषि का मंदिर और प्राचीन झील का नाम पराशर ऋषि के नाम पर ही पड़ा.
पुराणों के अनुसार ऋषि पराशर ने इस स्थान पर तप किया था. यहां पराशर ऋषि का मंदिर तो 14वीं और 15वीं शताब्दी में मंडी रियासत के तत्कालीन राजा बानसेन ने बनवाया था, लेकिन झील के बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं. माना जाता है कि जबसे संसार का निर्माण हुआ तभी यह झील भी बनी.

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यह भूभाग एक प्रकार से पृथ्वी के अनुपात को भी दर्शाता है. यह भूभाग एक स्थान पर नहीं रहता बल्कि चलता रहता है. कभी यह एक छोर पर नजर आता है तो कभी दूसरे छोर पर. पराशर देवता मंदिर कमेटी के प्रधान बलवीर ठाकुर बताते हैं कि वर्षों पहले यह भूभाग सुबह पूर्व की तरफ होता था और शाम को पश्चिम की तरफ. इसके चलने और रूकने को पुण्य और पाप के साथ जोड़कर देखा जाता है.
हालांकि अब यह भूभाग कभी कुछ महीनों के लिए एक ही स्थान पर रूक भी जाता है और कभी चलने लग जाता है. कुछ लोगों ने इस भूभाग को रोकने का प्रयास भी किया था लेकिन वो इसमें सफल नहीं हो सके और देवता से क्षमा याचना करके माफी मांगी थी. इलाके के दर्जनों देवी-देवता इस पवित्र झील के पास आकर स्नान करते हैं. पुजारी देवलुओं के साथ देवरथों को झील के पास लाते हैं और यहां के पानी से देवरथों का स्नान करवाते हैं.
पराशर झील की गहराई को आज दिन तक कोई नहीं नाप सका. हालांकि विज्ञान के लिए यह खोज का विषय हो सकता है लेकिन वैज्ञानिक भी इस स्थान तक नहीं पहुंच पाए हैं. मंदिर कमेटी के प्रधान बलवीर ठाकुर बताते हैं कि सदियों पूर्व एक राजा ने झील की गहराई रस्सियों से नापने की कोशिश की थी, लेकिन सफलता नहीं मिली. ऐसा भी बताया जाता है कि कुछ दशक पूर्व एक विदेशी महिला ऑक्सिजन सिलेंडर के साथ इस झील में गई थी, लेकिन उसके साथ अंग्रेजी में संवाद करने वाला कोई नहीं था जिस कारण यह मालूम नहीं चल सका कि वो झील में कितना नीचे तक गई थी. झील के अंदर क्या रहस्य है इस बात का पता आज दिन तक कोई नहीं लगा सका है.
पराशर मंदिर कमेटी प्रधान बलवीर ठाकुर ने बताया कि पराशर ऋषि मंदिर और इस झील के प्रति लोगों की भारी आस्था है. यह मंदिर पैगोड़ा शैली में बना है और इसका सुंदर नजारा देखते ही बनता है. बलवीर ठाकुर बताते हैं कि मंदिर में मांगी गई हर मुराद पूरी होती है और यदि किसी को कोई शारीरिक कष्ट हो तो देवता के आदेश पर वो कुछ दिन यहां रूककर झील के पानी का सेवन करता है, जिससे उसकी बीमारियां दूर हो जाती हैं. इसके साथ ही दंपति यहां पुत्र प्राप्ति के लिए भी आते हैं.
पराशर मंदिर सिर्फ गर्मियों के मौसम में ही जाया जा सकता है और यही कारण है कि आजकल यहां श्रद्धालुओं की भरमार देखने को मिल रही है. मंदिर में आए हुए श्रद्धालुओं का कहना है कि देवता के दर्शन के साथ इस जगह पर आकर गर्मी से भी निजात मिलती है.
बता दें कि पराशर ऋषि को मंडी रियासत के राजपरिवार का विशेष देवता माना गया है. राजपरिवार के सभी सदस्यों के मुंडन संस्कार इसी मंदिर में आकर करवाए जाते हैं. पहले मंदिर तक पैदल पहुंचा जाता था लेकिन अब सड़क मार्ग बनने से श्रद्धालुओं को अच्छी सुविधा हो गई.
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