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सिमटने की कगार पर उत्तरी भारत के प्रसिद्ध नलवाड़ मेले, जानें इसकी वजह - etv bharat

सिमटने की कगार पर उत्तरी भारत के प्रसिद्ध नलवाड़ मेले, जानें इसकी वजह

नलवाड़ मेला
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Published : Mar 22, 2019, 7:35 PM IST

मंडी: भारतवर्ष में त्योहार व मेलों के जरिए देश में सांस्कृतिक संपन्नता के बारे में पता चलता है. देश के सांस्कृतिक जीवन के परिपेक्ष्य में कई मोड़ आए और कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं को हमेशा याद रखने के लिए त्योहार व मेलों का प्रचलन शुरू हुआ.

किसी भी समाज के सांस्कृतिक जीवन का असली चेहरा त्योहारों व मेलों में देखने को मिलता है. सुंदरनगर का ऐतिहासिक राज्यस्तरीय नलवाड़ मेला भी इसी बात का प्रमाण है. मान्यता है कि शुकदेव ऋषि की तपोभूमि सुंदरनगर में करीब 500 वर्ष पहले से मनाए जाने वाले नलवाड़ मेले का अहम स्थान है.

मेले में जहां किसानों को एक ही स्थान पर अच्छी नस्ल के मवेशी खरीदने का मौका मिलता है. वहीं, व्यापारियों को अपने पशु बेचने का बाजार मिल जाता है, लेकिन समय के साथ सुकेत नलवाड़ मेला अपनी आखिरी सांसें गिन रहा है. वहीं, आधुनिकता व राजनीति के चलते इस समृद्धशाली परंपरा को ग्रहण लगने से अधिकांश मेलों का वजूद सिमटने के कगार पर है.

local tradser

पिछले 20 वर्षों से लगातार नलवाड़ मेले में आने वाले सुंदरनगर उपमंडल की ग्राम पंचायत बायला निवासी व्यापारी रत्ती राम ने कहा कि सुंदरनगर नलवाड़ मेला उत्तर भारत का सबसे बड़ा पशु मेला था. उन्होंने कहा कि समय के साथ-साथ आधुनिकता की दौड़ व राजनीति के कारण नलवाड़ मेला अपनी आखिरी सांसें गिन रहा है.

वर्तमान सरकार के मेलों में टैक्स के कारण सरकार के साथ-साथ व्यापारियों को भी नुकसान उठाना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि पहले मेले में प्रत्येक बैल की खरीद-फरोख्त पर प्रति हजार 3.50 रुपये बतौर टैक्स वसूला जाता था. अब सरकार के टैक्स न लेने के कारण कोई पता नहीं लग रहा कि कौन सा पशु बिक गया है और कौन सा नहीं. स्थानीय लोगों का कहना है कि मेले में आने वाले पशुओं की टैगिंग भी नहीं की जा रही, जिससे आवारा पशुओं की समस्या बढ़ने से दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

मंडी: भारतवर्ष में त्योहार व मेलों के जरिए देश में सांस्कृतिक संपन्नता के बारे में पता चलता है. देश के सांस्कृतिक जीवन के परिपेक्ष्य में कई मोड़ आए और कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं को हमेशा याद रखने के लिए त्योहार व मेलों का प्रचलन शुरू हुआ.

किसी भी समाज के सांस्कृतिक जीवन का असली चेहरा त्योहारों व मेलों में देखने को मिलता है. सुंदरनगर का ऐतिहासिक राज्यस्तरीय नलवाड़ मेला भी इसी बात का प्रमाण है. मान्यता है कि शुकदेव ऋषि की तपोभूमि सुंदरनगर में करीब 500 वर्ष पहले से मनाए जाने वाले नलवाड़ मेले का अहम स्थान है.

मेले में जहां किसानों को एक ही स्थान पर अच्छी नस्ल के मवेशी खरीदने का मौका मिलता है. वहीं, व्यापारियों को अपने पशु बेचने का बाजार मिल जाता है, लेकिन समय के साथ सुकेत नलवाड़ मेला अपनी आखिरी सांसें गिन रहा है. वहीं, आधुनिकता व राजनीति के चलते इस समृद्धशाली परंपरा को ग्रहण लगने से अधिकांश मेलों का वजूद सिमटने के कगार पर है.

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पिछले 20 वर्षों से लगातार नलवाड़ मेले में आने वाले सुंदरनगर उपमंडल की ग्राम पंचायत बायला निवासी व्यापारी रत्ती राम ने कहा कि सुंदरनगर नलवाड़ मेला उत्तर भारत का सबसे बड़ा पशु मेला था. उन्होंने कहा कि समय के साथ-साथ आधुनिकता की दौड़ व राजनीति के कारण नलवाड़ मेला अपनी आखिरी सांसें गिन रहा है.

वर्तमान सरकार के मेलों में टैक्स के कारण सरकार के साथ-साथ व्यापारियों को भी नुकसान उठाना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि पहले मेले में प्रत्येक बैल की खरीद-फरोख्त पर प्रति हजार 3.50 रुपये बतौर टैक्स वसूला जाता था. अब सरकार के टैक्स न लेने के कारण कोई पता नहीं लग रहा कि कौन सा पशु बिक गया है और कौन सा नहीं. स्थानीय लोगों का कहना है कि मेले में आने वाले पशुओं की टैगिंग भी नहीं की जा रही, जिससे आवारा पशुओं की समस्या बढ़ने से दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

उत्तर भारत का प्रसिद नलवाड़ मेला सिमटने की कगार पर,
आधुनिकता व राजनीति की भेंट चढ़ रही नलवाड़,
राजनीति के कारण नलवाड़ मेला गिन रहा अपनी आखिरी सांसे,
शुकदेव ऋषि की तपोभूमि सुंदरनगर में 500 वर्ष पहले से मनाए जाने वाले नलवाड़ मेले का है अहम स्थान,
व्यपारियो का कहना राजनीति के लिए सरकार टैक्स कर रही माफ लेकिन खामियाजा भुगत रहे व्यापारी.

सुंदरनगर (नितेश सैनी)

एकर : भारतवर्ष में त्योहार व मेलों के जरिए देश में सांस्कृतिक संपन्नता के बारे में पता चलता है। देश के सांस्कृतिक जीवन के परिपेक्ष्य में कई मोड़ आए और कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं को हमेशा याद रखने के लिए त्योहार व मेलों का प्रचलन शुरू हुआ। किसी भी समाज के सांस्कृतिक जीवन का असली चेहरा त्योहारों व मेलों में देखने को मिलता है। सुंदरनगर का ऐतिहासिक राज्यस्तरीय नलवाड़ मेला भी इसी बात का प्रमाण है। शुकदेव ऋषि की तपोभूमि सुंदरनगर में  लगभग 500 वर्ष पहले से मनाए जाने वाले नलवाड़ मेले का अहम स्थान है। मेले में जहां  किसानों को एक ही स्थान पर अच्छी नस्ल के मवेशी खरीदने का मौका मिलता हैं, वहीं व्यापारियों को अपने पशु बेचने का बाजार मिल जाता है। लेकिन समय के साथ सुकेत नलवाड़ मेला अपनी आखिरी सांसे गीन रहा है। वहीं आधुनिकता व राजनीति के चलते इस समृद्धशाली परंपरा को ग्रहण लगने से अधिकांश मेलों का वजूद सिमटने के कगार पर है। पिछले 20 वर्षों से लगातार नलवाड़ मेले में आने वाले सुंदरनगर उपमंडल की ग्राम पंचायत बायला निवासी व्यापारी रत्ती राम ने कहा कि सुंदरनगर नलवाड़ मेला उत्तर भारत का सबसे बड़ा पशु मेला था। उन्होंने कहा कि समय के साथ-साथ आधुनिकता की दौड़ व राजनीति के कारण नलवाड़ मेला अपनी आखिरी सांसे गीन रहा है। उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार के मेलों में लगान(टैक्स) नहीं लेने के कारण सरकार के साथ-साथ व्यापारियों को भी नुकसान उठाना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि पहले मेले में प्रत्येक बैल की खरीद-फरोख्त पर प्रति हजार 3.50 रूपए बतौर टैक्स वसूला जाता था। उन्होंने कहा कि इस प्रकार से कभी भी खरीद के बाद पशु को बिना किसी कारण वापिस लौटा देता है। उन्होंने कहा कि अब टैक्स न कटने के कारण कौन सा पशु बिक गया है कौन सा नहीं पता नहीं चलता है। उन्होंने कहा कि वोट की राजनीति के लिए सरकार टैक्स तो माफ कर रही है, लेकिन इसका खामियाजा व्यापारी भुगतने को मजबूर हैं। रत्ती राम ने कहा कि मेले में आने वाले पशुओं की टैगिंग भी नहीं की जा रही है। जिससे मेले के उपरांत आवारा पशुओं को व्यापारियों द्वारा छोड़कर जाने से शहर में समस्या उत्पन्न होगी।

बाइट 01 : व्यपारी रत्ती राम

सुंदरनगर प्रशासन राज्यस्तरीय नलवाड़ मेले को सफल बताने को लेकर दावे करने से नहीं थकता है। राज्यस्तरीय नलवाड़ मेला-2019 के पहले दिन बैलों की संख्या को लेकर प्रभारी नगौण खड्ड व फिल्ड कानूनगो लेखराज महलोत्रा ने कहा कि मेले में पहले दिन दोपहर तक 1250 तक बैल पंजीकृत हुए हैं। उन्होंने कहा कि इससे व्यापारी वर्ग खुश है। उन्होंने कहा कि प्रशासन की ओर से पशुओं के लिए चारा व मेडिकल सुविधा प्रदान करवाई जा रही है। उन्होंने कहा कि मेले में आने वाले पशुओं से कोई टैक्स वसूला नहीं जा रहा है।

बाइट 02 : नगौण खड्ड व फिल्ड कानूनगो लेखराज महलोत्रा

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