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अनछुआ हिमाचल: बल्ह घाटी में बसा है मुरारी देवी का ये खूबसूरत मंदिर - मंडी के पर्यटन स्थल

हिमाचल प्रदेश को अपनी देव संस्कृति के लिए भी जाना जाता है. यहां पर सैकड़ों ऐसे मंदिर है, जिन्हें धार्मिक पर्यटन के नजरिए से संवारने की जरूरत है. आज ईटीवी भारत की खास सीरीज अनछुआ हिमाचल में हम आपको जिला मंडी के एक ऐसे ही मंदिर से रूबरू करवाएंगे, जिसे पर्यटन की दृष्टि से संवार कर देश के मानचित्र पर लाने की जरूरत है. आज हम आपको जानकारी देने वाले हैं छोटी काशी मंडी की बल्ह घाटी में बसे मुरारी देवी मंदिर की.

murari devi temple
मुरारी देवी मंदिर अनछुआ हिमाचल
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Published : Feb 22, 2020, 2:56 PM IST

सुंदरनगर: हिमाचल प्रदेश को अपनी देव संस्कृति के लिए भी जाना जाता है. यहां पर सैकड़ों ऐसे मंदिर है, जिन्हें धार्मिक पर्यटन के नजरिए से संवारने की जरूरत है. आज ईटीवी भारत की खास सीरीज अनछुआ हिमाचल में हम आपको जिला मंडी के एक ऐसे ही मंदिर से रूबरू करवाएंगे, जिसे पर्यटन की दृष्टि से संवार कर देश के मानचित्र पर लाने की जरूरत है.

आज हम आपको जानकारी देने वाले हैं छोटी काशी मंडी की बल्ह घाटी में बसे मुरारी देवी मंदिर की. मुरारी देवी मंदिर का इतिहास पांडवों के अज्ञातवास से जुड़ा है. अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण किया था. साथ ही मंदिर में मौजूद माता की मूर्तियां उसी समय से स्थापित की गई हैं.

इस मंदिर का इतिहास दैत्य मूर के वध से जुड़ा है. कहा जाता है कि प्राचीन काल में पृथ्वी पर दैत्य मूर को घोर तपस्या करने पर ब्रह्मा ने वरदान दिया कि तुम्हारा वध कोई भी देवता, मानव या जानवर नहीं करेगा, बल्कि एक कन्या के हाथों से होगा.

वीडियो

घमंडी मूर दैत्य अपने आप को अमर सोच कर सृष्टि पर अत्याचार करने लगा. सभी प्राणियों के भगवान विष्णु से मदद मांगने पर दैत्य मूर और भगवान विष्णु के बीच युद्ध हुआ, जो लंबे समय तक चलता रहा.

मूर दैत्य को मिला वरदान याद आने पर भगवान विष्णु हिमालय में स्थित सिकन्दरा धार पहाड़ी पर एक गुफा में जाकर लेट गए. मूर उनको ढूंढता हुआ वहां पहुंचा. उसने भगवान के नींद में होने पर हथियार से वार करने का सोचा. ऐसा सोचने पर भगवान के शरीर की इन्द्रियों से एक कन्या पैदा हुई, जिसने मूर दैत्य को मार डाला. मूर का वध करने के कारण भगवान विष्णु ने उस दिव्या कन्या को मुरारी देवी के नाम से संबोधित किया.

murari devi temple
मुरारी देवी मंदिर

एक अन्य मत के अनुसार भगवान विष्णु को मुरारी भी कहा जाता है, उनसे उत्पन्न होने के कारण ये देवी माता मुरारी के नाम से प्रसिद्ध हुईं और उसी पहाड़ी पर दो पिंडियों के रूप में स्थापित हो गईं, जिनमें से एक पिंडी को शांतकन्या और दूसरी को कालरात्री का स्वरूप माना गया है. मां मुरारी के कारण ये पहाड़ी मुरारी धार के नाम से प्रसिद्ध हुई.

मंदिर के पुजारी जगदीश शर्मा ने कहा कि वे पिछले सात साल से मंदिर में पुजारी का कार्य कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि अज्ञातवास के समय पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण किया था. साथ ही मंदिर में मौजूद माता की मूर्तियां उसी समय से स्थापित की गई है.

Devotees standing in queue to visit the temple
मंदिर में दर्शनों के लिए कतार में खड़े श्रद्धालु

वर्ष 1992 में इस क्षेत्र के लगभग एक दर्जन गांव के लोगों ने एक कमेटी का गठन किया. इसके बाद इस स्थल में भले ही विकास को पंख मंदिर कमेटी ने लगाए हैं, लेकिन सरकार के इस मंदिर को पर्यटन की दृष्टि से निखारने की दिशा में काम करने पर मुरारी धार पर्यटन की दृष्टि से उभरेगी और स्थानीय लोगों को रोजगार की भी अपार संभावनाएं बढ़ेंगी.

यहां हर साल 25-26-27 मई को तीन दिवसीय मेला आयोजित किया जाता है. इसमें कुश्ती प्रतियोगिता एक बड़ा आकर्षण का केंद्र रहती हैं, जिसमें बाहरी राज्यों के पहलवान भी भाग लेते हैं. बता दें कि मंदिर सराय में एक हजार से अधिक श्रद्धालुओं के ठहरने की व्यवस्था है.

road is in bad condition
सड़क की खस्ताहालत

मंदिर में पहुंचे श्रद्धालु आदित्य गुप्ता ने कहा कि वे पिछले 20 सालों से मंदिर में माता के दर्शन करने के लिए पहुंच रहे हैं. लोग दूर-दूर से माता के दर्शन करने यहां पहुंचते हैं. यहां पर लोगों के लिए लंगर भी लगा रहता है. इसके साथ साथ लोग यहां से सुंदरनगर, बल्ह घाटी के साथ साथ आसपास के दूसरे क्षेत्रों के नजारे भी देख सकते हैं.

माता मुरारी देवी मंदिर में साहसिक गतिविधियों को बढ़ावा देने पर यह क्षेत्र पर्यटन की दृष्टि से विकसित हो सकता है. समुद्र तल से 7 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर के लिए सड़क की हालत बदहाल है. कच्चा मार्ग होने से पर्यटक यहां आने से भी मुंह फेरते हैं. इस मंदिर के लिए सड़क मार्ग पक्का करने का काम लोक निर्माण विभाग और वन विभाग की भूमि होने के कारण लटका है.

वहीं, स्थानीय लोगों ने सरकार और प्रशासन से मांग की है कि मंदिर जाने वाले इस रास्ते को पक्का करवाया जाए, ताकि श्रद्धालुओं को परेशानियों का सामना ना करना पड़े. सुंदरनगर, बल्ह, सरकाघाट विधानसभा क्षेत्रों की सीमावर्ती क्षेत्र में आने के बावजूद भी इस धार्मिक स्थल को पर्याप्त तौर से विकसित नहीं किया गया है. वहीं, सरकार के मुरारी देवी मंदिर को पर्यटन की दृष्टि से निखारने की दिशा में काम करने पर ये जगह पर्यटन की दृष्टि से उभरेगी और रोजगार की भी अपार संभावनाएं बढ़ेंगी.

ये भी पढ़ें: अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव: 7 सेक्टरों में बंटा मंडी, 1200 जवान देंगे ड्यूटी

सुंदरनगर: हिमाचल प्रदेश को अपनी देव संस्कृति के लिए भी जाना जाता है. यहां पर सैकड़ों ऐसे मंदिर है, जिन्हें धार्मिक पर्यटन के नजरिए से संवारने की जरूरत है. आज ईटीवी भारत की खास सीरीज अनछुआ हिमाचल में हम आपको जिला मंडी के एक ऐसे ही मंदिर से रूबरू करवाएंगे, जिसे पर्यटन की दृष्टि से संवार कर देश के मानचित्र पर लाने की जरूरत है.

आज हम आपको जानकारी देने वाले हैं छोटी काशी मंडी की बल्ह घाटी में बसे मुरारी देवी मंदिर की. मुरारी देवी मंदिर का इतिहास पांडवों के अज्ञातवास से जुड़ा है. अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण किया था. साथ ही मंदिर में मौजूद माता की मूर्तियां उसी समय से स्थापित की गई हैं.

इस मंदिर का इतिहास दैत्य मूर के वध से जुड़ा है. कहा जाता है कि प्राचीन काल में पृथ्वी पर दैत्य मूर को घोर तपस्या करने पर ब्रह्मा ने वरदान दिया कि तुम्हारा वध कोई भी देवता, मानव या जानवर नहीं करेगा, बल्कि एक कन्या के हाथों से होगा.

वीडियो

घमंडी मूर दैत्य अपने आप को अमर सोच कर सृष्टि पर अत्याचार करने लगा. सभी प्राणियों के भगवान विष्णु से मदद मांगने पर दैत्य मूर और भगवान विष्णु के बीच युद्ध हुआ, जो लंबे समय तक चलता रहा.

मूर दैत्य को मिला वरदान याद आने पर भगवान विष्णु हिमालय में स्थित सिकन्दरा धार पहाड़ी पर एक गुफा में जाकर लेट गए. मूर उनको ढूंढता हुआ वहां पहुंचा. उसने भगवान के नींद में होने पर हथियार से वार करने का सोचा. ऐसा सोचने पर भगवान के शरीर की इन्द्रियों से एक कन्या पैदा हुई, जिसने मूर दैत्य को मार डाला. मूर का वध करने के कारण भगवान विष्णु ने उस दिव्या कन्या को मुरारी देवी के नाम से संबोधित किया.

murari devi temple
मुरारी देवी मंदिर

एक अन्य मत के अनुसार भगवान विष्णु को मुरारी भी कहा जाता है, उनसे उत्पन्न होने के कारण ये देवी माता मुरारी के नाम से प्रसिद्ध हुईं और उसी पहाड़ी पर दो पिंडियों के रूप में स्थापित हो गईं, जिनमें से एक पिंडी को शांतकन्या और दूसरी को कालरात्री का स्वरूप माना गया है. मां मुरारी के कारण ये पहाड़ी मुरारी धार के नाम से प्रसिद्ध हुई.

मंदिर के पुजारी जगदीश शर्मा ने कहा कि वे पिछले सात साल से मंदिर में पुजारी का कार्य कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि अज्ञातवास के समय पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण किया था. साथ ही मंदिर में मौजूद माता की मूर्तियां उसी समय से स्थापित की गई है.

Devotees standing in queue to visit the temple
मंदिर में दर्शनों के लिए कतार में खड़े श्रद्धालु

वर्ष 1992 में इस क्षेत्र के लगभग एक दर्जन गांव के लोगों ने एक कमेटी का गठन किया. इसके बाद इस स्थल में भले ही विकास को पंख मंदिर कमेटी ने लगाए हैं, लेकिन सरकार के इस मंदिर को पर्यटन की दृष्टि से निखारने की दिशा में काम करने पर मुरारी धार पर्यटन की दृष्टि से उभरेगी और स्थानीय लोगों को रोजगार की भी अपार संभावनाएं बढ़ेंगी.

यहां हर साल 25-26-27 मई को तीन दिवसीय मेला आयोजित किया जाता है. इसमें कुश्ती प्रतियोगिता एक बड़ा आकर्षण का केंद्र रहती हैं, जिसमें बाहरी राज्यों के पहलवान भी भाग लेते हैं. बता दें कि मंदिर सराय में एक हजार से अधिक श्रद्धालुओं के ठहरने की व्यवस्था है.

road is in bad condition
सड़क की खस्ताहालत

मंदिर में पहुंचे श्रद्धालु आदित्य गुप्ता ने कहा कि वे पिछले 20 सालों से मंदिर में माता के दर्शन करने के लिए पहुंच रहे हैं. लोग दूर-दूर से माता के दर्शन करने यहां पहुंचते हैं. यहां पर लोगों के लिए लंगर भी लगा रहता है. इसके साथ साथ लोग यहां से सुंदरनगर, बल्ह घाटी के साथ साथ आसपास के दूसरे क्षेत्रों के नजारे भी देख सकते हैं.

माता मुरारी देवी मंदिर में साहसिक गतिविधियों को बढ़ावा देने पर यह क्षेत्र पर्यटन की दृष्टि से विकसित हो सकता है. समुद्र तल से 7 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर के लिए सड़क की हालत बदहाल है. कच्चा मार्ग होने से पर्यटक यहां आने से भी मुंह फेरते हैं. इस मंदिर के लिए सड़क मार्ग पक्का करने का काम लोक निर्माण विभाग और वन विभाग की भूमि होने के कारण लटका है.

वहीं, स्थानीय लोगों ने सरकार और प्रशासन से मांग की है कि मंदिर जाने वाले इस रास्ते को पक्का करवाया जाए, ताकि श्रद्धालुओं को परेशानियों का सामना ना करना पड़े. सुंदरनगर, बल्ह, सरकाघाट विधानसभा क्षेत्रों की सीमावर्ती क्षेत्र में आने के बावजूद भी इस धार्मिक स्थल को पर्याप्त तौर से विकसित नहीं किया गया है. वहीं, सरकार के मुरारी देवी मंदिर को पर्यटन की दृष्टि से निखारने की दिशा में काम करने पर ये जगह पर्यटन की दृष्टि से उभरेगी और रोजगार की भी अपार संभावनाएं बढ़ेंगी.

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