सराज: हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के बड़ा देव कमरुनाग और कुल्लू -सराज के आराध्य देव अनंत बालूनाग का 22 वर्षों बाद भव्य मिलन रविवार को हुआ. बड़ी संख्या में देवलू नम आंखों के साथ देवताओं के इस मिलन के गवाह बने. देवता के 2 सप्ताह के पैदल दौरे में सैकड़ों भक्तों के साथ पारंपरिक वेशभूषा में ग्रामीण महिलाएं भी शामिल हैं.
250 किलोमीटर पैदल यात्रा करते हैं देवता: 2 अप्रैल को कमरुनाम झील पर देवता पूरे लाव -लश्कर के साथ पहुंचे. इस पैदल दौरे में देवरथ देवता के आदेशानुसार यहां सारी धार्मिक रस्में पूरी की गई. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवरथ देवता यहां सूक्ष्म रुप से शक्तियां अपने में समाहित करते हैं. इस दौरान सारी रस्में पूरी पवित्रता के साथ संपन्न करवाई जाती हैं. देवखेल के साथ ही गुर यात्रा के कारण भी यहीं बताएं जाते हैं.
देवलू के कंधों पर जाते हैं देवता: इस दो सप्ताह के पैदल दौरे की सबसे खास बात है कि इस यात्रा के दौरान देवलू देवता को कंधों पर उठाकर लगभग 250 किलोमीटर की पैदल यात्रा करते हैं. वहीं रात के समय देवलू जंगलों में अपने-अपने देवता के साथ टेंट लगाकर रात गुजारते हैं.
शेषावतार लक्ष्मण के स्वरूप हैं बालूनाग: देवताओं के कारदार ख्याली राम शर्मा, पुजारी जगदीश शर्मा और कारकून जगत मेहता ने बताया कि देवता की मान्यता शेषावतार लक्ष्मण स्वरूप बालूनाग के रूप में है. जिनका मूल स्थान बालो नामक स्थान में है. वहीं, तांदी गांव में निर्मित कोठी में देवता का निवास है. सराज के शुरागी इलाके में भी देवता निवास करते हैं. नाग देवताओं में कमरुनाग का पहला स्थान है. बालूनाग देवता साल 2000 में पहले भी यहां आए थे. बता दें की देवता जहां भी जाते हैं हमेशा पैदल यात्रा पूर्ण करते हैं.
तांदी गांव से शुरू हुई थी यात्रा: 3 दिन पहले देवता की यह यात्रा तांदी गांव से शुरू हुई थी और 2 अप्रैल को शैटाधार और जोगीपथर होते हुए निहरी लंबाथाच पहुंची. इससे अगला पड़ाव कमरुनाग झील रहा. जहां सभी पवित्र देव रस्में हो जाने के बाद शाला होते हुए चेलचौक, सयांज, पंडोह, हनोगी, थलोट, बालीचोकी से मंगलौर होते वापस एक सप्ताह बाद फिर देवता तांदी गांव पहुंचेंगे. इस साल के सीजन की देवता की यह पहली धार्मिक यात्रा है. इसके बाद प्रमुख स्थल शिकारी देवी, मुरारी माता, चुंजवाला, शैताधार, तूंगा माता, पराशर, देहनासर और शरौल की चोटियों पर धार्मिक यात्राएं शुरू होंगी.
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