मंडी: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी (IIT Mandi) के शोधकर्ताओं ने एक शोध में किया है. जिससे दुश्मन देश के रडार हमारे सैन्य उपकरणों को नहीं देख पाएंगे. दरअसल शोधकर्ताओं ने ऐसा आर्टिफिशियल मटीरियल तैयार किया है जो हमारे खुफिया सैन्य वाहनों या खुफिया ठिकानों को दुश्मन के रडार की नजरों से बचा सकता है. शोधकर्ताओं का दावा है कि यह मटीरियल रडार फ्रीक्वेंसी (सिग्नल) की बड़ी रेंज को एब्जॉर्ब करने में सक्षम है, फिर चाहे रडार के सिग्नल जिस दिशा से उनके टारगेट को निशाना बनाएं.
इस मटीरियल का इस्तेमाल खुफिया सैन्य वाहनों और खुफिया सैन्य ठिकानों की खिड़कियों और कांच के पैनलों को सुरक्षा कवच देने के लिए भी किया जा सकता है. आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं के अनुसार इस शोध से रक्षा क्षेत्र के हित में रडार फ्रीक्वेंस एब्जॉर्ब करने वाली सामग्री विकसित करने में अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी और सामग्रियों की अहमियत बढेगी.
![दुश्मन के रडार की नजर में नहीं आएंगे सैन्य ठिकाने और सैन्य वाहन](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/17682375_image.jpg)
इस शोध कार्य के निष्कर्ष आईईईई लेटर्स ऑन इलेक्ट्रोमैग्नेटिक कम्पैटिबिलिटी प्रैक्टिस एंड एप्लीकेशन नामक जर्नल में प्रकाशित किए गए हैं. जिसे आईआईटी मंडी में स्कूल ऑफ कंप्यूटिंग एंड इलेक्ट्रिकल इंजीनियर्स के प्रोफेसर डॉ. श्रीकांत रेड्डी और उनकी टीम के डॉ. अवनीश कुमार (प्रथम लेखक) और ज्योति भूषण पाधी ने किया है. रडार फ्रीक्वेंसी एब्जॉर्व करने वाली सामग्रियों का इस्तेमाल करके संचार टावरों, बिजली संयंत्रों और सैन्य ठिकानों को दुश्मन के रडार की नजरों से बचाना और देश के सैन्य ठिकानों को निशाना बनने से रोकना आसान होगा.
गौरतलब है कि रडार का उपयोग सैन्य और सार्वजनिक क्षेत्रों में भी निगरानी और नेविगेशन के लिए किया जाता है. इससे विमानों के अलावा पानी के जहाजों, जमीन पर चलने वाले वाहनों और गुप्त ठिकानों में होने वाली गतिविधियों का पता चलता है. इस तरह निगरानी रखना आसान होता है. रडार की नजरों से बचना सैन्य सुरक्षा की अहम रणनीति है और रडार से बच कर निकलने की क्षमता हो तो दुश्मन के हथियारों का निशाना बनने का खतरा कम हो सकता है. रडार की नजर से बचने के एक तरीका आरसीएस यानी रडार क्रॉस सेक्शन कम करना है. आरसीएस कम करने के लिए ऐसी सामग्रियों का इस्तेमाल होता है जो रडार के सिग्नल को सोख लें या फिर उस चीज का आकार ऐसा हो कि रडार के लिए पता करना कठिन हो जाए.
![आईआईटी ने तैयार किया आर्टिफिशियल मटीरियल](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/17682375_image22.jpg)
आईआईटी मंडी के डॉ. जी श्रीकांत रेड्डी ने इस शोध के बारे में बताया कि इस टेक्नोलॉजी का विकास फ्रीक्वेंसी सेलेक्टिव सर्फेस (एफएसएस) के आधार पर किया है. जो रडार द्वारा उपयोग किए जाने वाली फ्रीक्वेंसी की बड़ी रेंज को एब्जॉर्ब करती है. जिसके चलते ये सर्फेस रडार को नहीं दिखता है. इस संबंध में विभिन्न परीक्षणों से यह तथ्य सामने आया है कि एफएसएस टेक्नोलॉजी फ्रीक्वेंसी की बड़ी रेंज़ में 90% से अधिक रडार वेव्स एब्जॉर्ब करने में सक्षम है. शोधकर्ताओं की टीम ने इस डिजाइन के कई प्रायोगिक अध्ययन किए और प्राप्त परिणाम सैद्धांतिक विश्लेषण के अनुरूप पाए गए जो इसके प्रभावी होने की पुष्टि करते हैं
डॉ. जी श्रीकांत रेड्डी के मुताबिक ये टेक्नोलॉजी ट्रांसपेरेंट गुण की वजह से गुप्त सैन्य वाहनों और गुप्त प्रतिष्ठानों की खिड़कियों या ग्लास पैनलों पर इस्तेमाल की जा सकती है. इसके एक प्रोटोटाइप का विकास टीम कर चुकी है और शोध के परिणाम आईईई जर्नल में प्रकाशित हैं. यह टेक्नोलॉजी आरसीएस कम करने और रेडिएशन के अवांछित रिसाव को सोखने जैसे कार्यों में उपयोगी होने की संभावना सामने रखती है.
![आईआईटी मंडी के रिसर्चर्स ने बनाया प्रोटोटाइप](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/17682375_image33.jpg)
रडार एब्जॉर्ब करने वाली सामग्रियों का रक्षा क्षेत्र में अहम उपयोग है क्योंकि इनका उपयोग कर सैन्य विमानों, जल जहाजों और अन्य वाहनों का पता लगाने वाले रडार के सिग्नल कम या फिर समाप्त कर देना आसान होगा. साथ ही, संचार टावरों, बिजली संयंत्रों और सैन्य ठिकानों जैसे महत्वपूर्ण बुनियादी संरचानाओं को रडार की नजर से बचाने के लिए इसका उपयोग किया जा सकता है. यह सैन्य संघर्ष में दुश्मनों को हमारे महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों को निशाना बनाने से रोक सकती है.
ये भी पढ़ें: हिमाचल की छात्रा ने बनाया स्मार्ट हेलमेट, जो हादसा होने पर परिजनों को भेजेगा अलर्ट और लोकेशन