मंडी: आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने अब एक ऐसी आसान प्रक्रिया को विकसित कर लिया है, जिससे हिमालयी क्षेत्रों में रिइंफोर्सड कंक्रीट (Reinforced concrete) से बने घरों और इमारतों की भूकंप सहने की क्षमता का आसानी से पता लगाया जा सकेगा. यह सब एक खास तरह के डेटा प्रोग्राम रैपिड विजुअल स्क्रीनिंग सिस्टम यानी आरवीएस की सहायता से संभव हो सकता है. (Rapid Visual Screening System) (Researchers at IIT Mandi).
इस बारे में आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ सिविल एवं एनवायर्नमेंटल इंजीनियरिंग (Environmental engineering) में सहायक प्रोफेसर डॉक्टर संदीप कुमार साहा और उनकी सहायक पीएचडी छात्रा यती अग्रवाल ने अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया है, जिसका निष्कर्ष बुलेटिन ऑफ अर्थक्वेक इंजीनियरिंग में प्रकाशित हुए हैं. शोधकर्ताओं का दावा है कि आरवीएस प्रक्रिया से सटीक डाटा मिलना तो मुश्किल है लेकिन इसके माध्यम से आसानी से किसी भी भवन या इमारत में मौजूद कारकों की गणना कर उसके भूकंप सहने की क्षमता का आंकलन किया जा सकता है.
इसके साथ ही ऐसे भवनों में किसी प्रकार की कमी को दूर कर उन्हें और सुरक्षित बनाया जा सके, इस पर भी कार्य किया जा सकता है. इस प्रक्रिया से आंकड़ों और गणना के आधार पर कमजोर इमारतों का पता लगाया जा सकता है और उन्हें मजबूती के लिए आवश्यक कदम उठाए जा सकते हैं. इसके साथ ही शोधकर्ताओं का मानना है कि हिमालयी क्षेत्रों में आरवीएस के दिशानिर्देशों को लागू करना जरूरी है ताकि भूकंप से जानमाल की हानि को ज्यादा से ज्यादा कम किया जा सके.
शोध की विस्तृत जानकारी देते हुए डॉ. संदीप कुमार साहा ने बताया कि उन्होंने भारतीय हिमालयी क्षेत्र की रिइंफोर्सड कंकरीट इमारतों के परीक्षण की प्रभावी प्रक्रिया विकसित की है. इससे किसी इमारत की वर्तमान स्थिति और भूकंप से संभावित खतरों को न्यूनतम करने के लक्ष्य से मरम्मत कार्य की प्राथमिकता तय करना आसान होगा. इसके साथ ही उन्होंने मंडी के क्षेत्र का सर्वे कर यहां पर निर्माण और भवनों की मंजिलों की संख्या निर्धारण कर यहां के कमजोर पहलुओं को ध्यान में रखते हुए एक बेहतर आरवीएस प्रक्रिया लागू करने का प्रस्ताव भी रखा है.
डॉक्टर साहा ने बताया कि आरवीएस के लिए केवल एक फार्म भरना होता है और भवनों में इस्तेमाल हुए मटेरियल के हिसाब से भूकंप की स्थिति में कमजोर इमारतों को सुरक्षित करने के सुझाव दिए जा सकते हैं. साथ ही इसमें खतरे का स्कोर भी अनुमानित किया जा सकता है. इस शोध के लाभ बताते हुए यती अग्रवाल ने बताया कि इस प्रकार की प्रस्तावित प्रक्रिया से पहाड़ी क्षेत्रों में भी भवनों और इमारतों की आरवीएस कर उनका आंकलन किया जा सकता है.
इससे कमजोर और सुरक्षित भवनों का वर्गीकरण करना भी संभव है, जिससे आने वाले समय में भूकंप से लोग अपने घरों को काफी हद तक सुरक्षित रखने में कामयाब हो सकते हैं. उन्होंने बताया कि हिमालयी क्षेत्र भूकंप के लिहाज से संवेदनशील है, इसलिए यहां पर सुरक्षा के नाते यह प्रक्रिया आसान और सरल है, जिससे लोगों को लाभ मिलेगा.
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