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IIT Mandi Research: जानलेवा डेंगू का खतरा होगा कम, मच्छरों को किया जा सकेगा नियंत्रित, आईआईटी मंडी का नया शोध - हिमाचल प्रदेश

अब जानलेवा रोग डेंगू और मच्छरों से होने वाली बीमारियों को काफी हद तक रोका जा सकता है. आईआईटी मंडी और इंस्टीट्यूट फॉर स्टेम सेल साइंस एंड रीजेनरेटिव मेडिसिन, बेंगलुरु के शोधकर्ताओं ने साथ मिलकर डेंगू और बीमारियां फैलाने वाले मच्छरों की रोकथाम पर शोध किया है. (IIT Mandi Research) (IIT Mandi Research on Dengue Prevention)

IIT Mandi Research on Dengue Prevention
डेंगू की रोकथाम पर आईआईटी मंडी की रिसर्च
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Oct 26, 2023, 6:53 AM IST

मंडी: डेंगू की समस्या देशभर में सिरदर्द बनी हुई है. हर साल सैंकड़ों लोगों की डेंगू से मौत हो रही है. हिमाचल प्रदेश में भी डेंगू का कहर लगातार बना रहता है, लेकिन अब इस जानलेवा रोग डेंगू के संचरण को कम और मच्छरों पर नियंत्रण किया जा सकेगा. यह शोध आईआईटी मंडी और इंस्टीट्यूट फॉर स्टेम सेल साइंस एंड रीजेनरेटिव मेडिसिन, बेंगलुरु के शोधकर्ताओं ने साथ किया है. इस शोध के दूरगामी परिणाम निकलेंगे.

डेंगू के खिलाफ महत्वपूर्ण: जानकारी के मुताबिक टीम ने ऐसी बायोकेमिकल प्रक्रियाओं की खोज की है, जोकि डेंगू पैदा करने वाले मच्छर के अंडों को कठिन परिस्थितियों में जीवित रहने और अनुकूल परिस्थितियों में फिर से जीवित होने योग्य बनाती हैं. यह शोध मच्छरों द्वारा फैलाई जाने वाली बीमारियों के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण कदम होगा. जोकि अधिक प्रभावी वेक्टर नियंत्रण उपायों के लिए एक नई आशा प्रदान करता है.

कृषि कीटों के लिए फायदेमंद: इस शोध के विवरण को पीएलओएस बायोलॉजी जर्नल में प्रकाशित किया गया है. वहीं, कृषि कीटों के मामले में भी यह शोध अहम साबित होगा. इस शोध से प्राप्त जानकारी से संभावित रूप से मानसून की बारिश के बाद मच्छरों के पुनः प्रसार को रोका जा सकता है. मानसून के बाद मच्छरों और रोग संचरण के जोखिम बढ़ जाते हैं. इस शोध से प्राप्त जानकारी के रोग नियंत्रण के अलावा भी कई प्रयोग हो सकते हैं.

क्या कहते हैं प्रमुख शोधकर्ता: आईआईटी मंडी के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. बास्कर बक्तवाचलू ने बताया कि सूखे की स्थिति का सामना करने के लिए मच्छर के अंडे एक परिवर्तित मेटाबोलिक स्टेज में प्रवेश करते हैं. जिससे पॉली माइंस का उत्पादन काफी ज्यादा होता है. जो भ्रूण को पानी की कमी से होने वाले नुकसान का सामना करने में सक्षम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इसके अलावा वह पुनर्जलीकरण होने के बाद अपने विकास को पूरा करने के लिए ऊर्जा स्रोत के रूप में उच्च कैलोरी लिपिड का उपयोग करते हैं.

शोध में इनकी भी रही भूमिका: इस शोध पेपर को तैयार करने में आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ बायो साइंसेज एंड बायोइंजीनियरिंग विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. बस्कर बक्थावचालू के साथ अंजना प्रसाद, श्रीसा श्रीधरन और इंस्टीट्यूट फॉर स्टेम सेल साइंस एंड रीजेनरेटिव मेडिसिन (डीबीटी-इन स्टेम) से डॉ. सुनील लक्ष्मण का विशेष सहयोग रहा है.

ये भी पढ़ें: Dengue In India: भारत में रिपोर्ट किए गए डेंगू के मामले हिमशैल का सिर्फ टिप, गंभीर तौर पर विकसित होने का खतरा: आईसीएमआर

मंडी: डेंगू की समस्या देशभर में सिरदर्द बनी हुई है. हर साल सैंकड़ों लोगों की डेंगू से मौत हो रही है. हिमाचल प्रदेश में भी डेंगू का कहर लगातार बना रहता है, लेकिन अब इस जानलेवा रोग डेंगू के संचरण को कम और मच्छरों पर नियंत्रण किया जा सकेगा. यह शोध आईआईटी मंडी और इंस्टीट्यूट फॉर स्टेम सेल साइंस एंड रीजेनरेटिव मेडिसिन, बेंगलुरु के शोधकर्ताओं ने साथ किया है. इस शोध के दूरगामी परिणाम निकलेंगे.

डेंगू के खिलाफ महत्वपूर्ण: जानकारी के मुताबिक टीम ने ऐसी बायोकेमिकल प्रक्रियाओं की खोज की है, जोकि डेंगू पैदा करने वाले मच्छर के अंडों को कठिन परिस्थितियों में जीवित रहने और अनुकूल परिस्थितियों में फिर से जीवित होने योग्य बनाती हैं. यह शोध मच्छरों द्वारा फैलाई जाने वाली बीमारियों के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण कदम होगा. जोकि अधिक प्रभावी वेक्टर नियंत्रण उपायों के लिए एक नई आशा प्रदान करता है.

कृषि कीटों के लिए फायदेमंद: इस शोध के विवरण को पीएलओएस बायोलॉजी जर्नल में प्रकाशित किया गया है. वहीं, कृषि कीटों के मामले में भी यह शोध अहम साबित होगा. इस शोध से प्राप्त जानकारी से संभावित रूप से मानसून की बारिश के बाद मच्छरों के पुनः प्रसार को रोका जा सकता है. मानसून के बाद मच्छरों और रोग संचरण के जोखिम बढ़ जाते हैं. इस शोध से प्राप्त जानकारी के रोग नियंत्रण के अलावा भी कई प्रयोग हो सकते हैं.

क्या कहते हैं प्रमुख शोधकर्ता: आईआईटी मंडी के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. बास्कर बक्तवाचलू ने बताया कि सूखे की स्थिति का सामना करने के लिए मच्छर के अंडे एक परिवर्तित मेटाबोलिक स्टेज में प्रवेश करते हैं. जिससे पॉली माइंस का उत्पादन काफी ज्यादा होता है. जो भ्रूण को पानी की कमी से होने वाले नुकसान का सामना करने में सक्षम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इसके अलावा वह पुनर्जलीकरण होने के बाद अपने विकास को पूरा करने के लिए ऊर्जा स्रोत के रूप में उच्च कैलोरी लिपिड का उपयोग करते हैं.

शोध में इनकी भी रही भूमिका: इस शोध पेपर को तैयार करने में आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ बायो साइंसेज एंड बायोइंजीनियरिंग विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. बस्कर बक्थावचालू के साथ अंजना प्रसाद, श्रीसा श्रीधरन और इंस्टीट्यूट फॉर स्टेम सेल साइंस एंड रीजेनरेटिव मेडिसिन (डीबीटी-इन स्टेम) से डॉ. सुनील लक्ष्मण का विशेष सहयोग रहा है.

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