मंडी: ट्यूबरक्लोसिस रोग की जांच के लिए अब भारत को चीन या अन्य देशों में बनी रैपिड टेस्ट किट पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा. आईआईटी मंडी के बेसिक साइंस विभाग में स्वदेशी रैपिड किट तैयार करने में सफलता हासिल कर ली है. ये किट भारत के बाजारों में जल्द ही उतारी जाएगी. एक किट के माध्यम से आम लोगों की भी घर बैठे ट्यूबरक्लोसिस की जांच की जा सकेगी.
आईसीएमआर ने दी हरी झंडी
2017 में साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड ने आईआईटी मंडी को यह जिम्मा सौंपा था, जिसे अब आईसीएमआर ने हरी झंडी दे दी है. यह शोध प्रकाशित भी हो चुका है. कोरोना काल में अब इस शोध से देश भर में टीबी रोगियों की शीघ्र पहचान हो सकेगी. कुछ मिनट में किट के इस्तेमाल से रोगियों में टीबी का पता लग जाएगा. यह प्रेग्नेंसी किट की भांति होगी.
WHO ने विश्व टीबी उन्मूलन कार्यक्रम में किया शामिल
आईआईटी प्रोफेसर डॉ. सरिता आजाद ने बताया कि किट से संबंधित शोध साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड को सौंपा जा चुका है. आईसीएमआर ने हाल ही में टीबी रोगियों की ट्रूनेट तकनीक को भी विकसित किया है, जिसे डब्ल्यूएचओ ने विश्व टीबी उन्मूलन कार्यक्रम में शामिल किया है.
देश के 730 जिलों में अधिक प्रकोप
देश में टीबी रोगियों के इलाज के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कार्यक्रम चला है. वर्ष 1997 में भारत के संशोधित राष्ट्रीय टीबी रोग नियंत्रण कार्यक्रम (आरएनटीसीपी) के बाद डब्ल्यूएचओ ने डायरेक्टली ऑब्जर्ड ट्रीटमेंट शॉर्ट कोर्स (डाट्स) भारत में लागू किया. विश्व में भारत समेत छह देश ऐसे हैं, जिनमें दुनिया भर के 60 फीसदी टीबी रोगी हैं. भारत में आरएनटीसीपी के तहत हिमाचल के आठ जिलों समेत देश भर के 730 जिलों में यह कार्यक्रम चला है.
कोरोना से ज्यादा टीबी से मौतें
भारत में 2019 में ट्यूबर क्यूलॉसिस के 24 लाख केस सामने आए हैं. 79,000 लोगों की टीबी से मौत हुई है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हर तिमाही 20,000 लोगों की टीबी से मौत होती है. इसकी तुलना में कोविड-19 से पिछले साढ़े तीन महीनों में भारत में लगभग 15,000 लोगों की मौत हुई है.